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नवंबर, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

*सभी से निवेदन है की पहले से ज्यादा *सतर्कता रखें *शहरों मे हॉस्पिटल में जगह नहीं है, *सारी पहचान पैसा कुछ भी काम नहीं आ रहा है! *सिर्फ और सिर्फ अपने आप को *बचाना ही एक मात्र उपाय है। *सभी परिवार के सदस्य कृपया ध्यान दें: *01 कोई भी खाली पेट न रहे *02 उपवास न करें *03 रोज एक घंटा धूप लें *04 AC का प्रयोग न करें *05 गरम पानी पिएं, गले को गीला रखें *06 सरसों का तेल नाक में लगाएं *07 घर में कपूर वह गूगल जलाएं *08 आधा चम्मच सोंठ हर सब्जी में डालें *09 दालचीनी का प्रयोग करें *10 रात को एक कप दुध में हल्दी डालकर पिये *11 हो सके तो एक चम्मच चवनप्राश खाएं *12 घर में कपूर और लौंग डाल कर धूनी दें *13 सुबह की चाय में एक लौंग डाल कर पिएं *14 फल में सिर्फ संतरा ज्यादा से ज्यादा खाएं *15. आंवला किसी भी रुप में चाहे अचार, मुरब्बा,चूर्ण इत्यादि खाएं। *यदि आप Corona को हराना चाहते हो तो कृपा करके ये सब अपनाइए। *हाथ जोड़ कर प्रार्थना है अपने जानने वालों को भी यह जानकारी भेजें। *दूध में हल्दी आपके शरीर में इम्यूनिटी को बढ़ाएगा। *🙏🏼 सभी से मेरी अपील है इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।🙏🌷🙏

 

रोजाना अलसी खाने के ये 10 फायदे, आपको हैरान कर देंगे By *समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब*🌹🌹🙏🙏🌹🌹🇮🇳 क्या आपको हार्ट प्रॉब्लम्स हैं...? क्या आपका कोलेस्ट्रॉल बढ़ा हुआ है....? यह क्या आपका वजन बढ़ रहा है ? यदि आपका जवाब हां में है, तो घबराने की जरूरत नहीं है। अलसी में छुपा हुआ है, आपकी इन समस्याओं का समाधान। जी हां, अलसी के छोटे- छोटे बीजों में आपकी सेहत के बड़े-बड़े राज छुपे हुए हैं। अगर आप नहीं जानते, तो जरूर पढ़ि‍ए और जानिए अलसी के यह बेहतरीन फायदे - 1 भूरे-काले रंग के यह छोटे छोटे बीज, हृदय रोगों से आपकी रक्षा करते हैं। इसमें उपस्थित घुलनशील फाइबर्स, प्राकृतिक रूप से आपके शरीर में कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने का काम करता है। इससे हृदय की धमनियों में जमा कोलेस्ट्रॉल घटने लगता है, और रक्त प्रवाह बेहतर होता है, नतीजतन हार्ट अटैक की संभावना नहीं के बराबर होती है ।2 अलसी में ओमेगा-3 भरपूर मात्रा में पाया जाता है जो रक्त प्रवाह को बेहतर कर, खून के जमने या थक्का बनने से रोकता है, जो हार्ट-अटैक का कारण बनता है। यह रक्त में मौजूद कोलेस्ट्रॉल को कम करने में भी सहायक है। 3 यह शरीर के अतिरिक्त वसा को भी कम करती है, जिसे आपका वजन कम होने में सहायता मिलती है। 4 अलसी में मौजूद एंटी-ऑक्सीडेंट्स और फाइटोकैमिकल्स, बढ़ती उम्र के लक्षणों को कम करती है, जिससे त्वचा पर झुर्रियां नहीं होती और कसाव बना रहता है। इससे त्वचा स्वस्थ व चमकदार बनती है। 5 अलसी में अल्फा लाइनोइक एसिड पाया जाता है, जो ऑथ्राईटिस, अस्थमा, डाइबिटीज और कैंसर से लड़ने में मदद करता है। खास तौर से कोलोन कैंसर से लड़ने में यह सहायक होता है। 6 सीमित मात्रा में अलसी का सेवन, खून में शर्करा के स्तर को नियंत्रित करता है। इससे शरीर के आंतरिक भाग स्वस्थ रहते हैं, और बेहतर कार्य करते हैं। 7 इसमें उपस्थित लाइगन नामक तत्व, आंतों में सक्रिय होकर, ऐसे तत्व का निर्माण करता है, जो फीमेल हार्मोन्स के संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 8 अलसी के तेल की मालिश से शरीर के अंग स्वस्थ होते हैं, और बेहतर तरीके से कार्य करते हैं। इस तेल की मसाज से चेहरे की त्वचा कांतिमय हो जाती है। 9 शाकाहारी लोगों के लिए अलसी, ओमेगा-3 का बेहतर विकल्प है, क्योंकि अब तक मछली को ओमेगा-3 का अच्छा स्त्रोत माना जाता था,जिसका सेवन नॉन-वेजिटेरियन लोग ही कर पाते हैं। 10 प्रतिदिन सुबह शाम एक चम्मच अलसी का सेवन आपको पूरी तरह से स्वस्थ रखने में सहायक होता है, इसे पीसकर पानी के साथ भी लिया जा सकता है । अलसी को नियमित दिनचर्या में शामिल कर आप कई तरह की बीमारियों से अपनी रक्षा कर सकते हैं, साथ ही आपको डॉक्टर के पास जाने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी।*सभी से निवेदन है की पहले से ज्यादा *सतर्कता रखें *शहरों मे हॉस्पिटल में जगह नहीं है, *सारी पहचान पैसा कुछ भी काम नहीं आ रहा है! *सिर्फ और सिर्फ अपने आप को *बचाना ही एक मात्र उपाय है। *सभी परिवार के सदस्य कृपया ध्यान दें: *01 कोई भी खाली पेट न रहे *02 उपवास न करें *03 रोज एक घंटा धूप लें *04 AC का प्रयोग न करें *05 गरम पानी पिएं, गले को गीला रखें *06 सरसों का तेल नाक में लगाएं *07 घर में कपूर वह गूगल जलाएं *08 आधा चम्मच सोंठ हर सब्जी में डालें *09 दालचीनी का प्रयोग करें *10 रात को एक कप दुध में हल्दी डालकर पिये *11 हो सके तो एक चम्मच चवनप्राश खाएं *12 घर में कपूर और लौंग डाल कर धूनी दें *13 सुबह की चाय में एक लौंग डाल कर पिएं *14 फल में सिर्फ संतरा ज्यादा से ज्यादा खाएं *15. आंवला किसी भी रुप में चाहे अचार, मुरब्बा,चूर्ण इत्यादि खाएं। *यदि आप Corona को हराना चाहते हो तो कृपा करके ये सब अपनाइए। *हाथ जोड़ कर प्रार्थना है अपने जानने वालों को भी यह जानकारी भेजें। *दूध में हल्दी आपके शरीर में इम्यूनिटी को बढ़ाएगा। *🙏🏼 सभी से मेरी अपील है इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।🙏🌷🙏https://vnita6.blogspot.com/?m=1

 

सुषुम्ना को प्राणायाम से कैसे जगाएं, जानिए *वनिता पंजाब* 🌹🙏🙏🌹 कबहु इडा स्वर चलत है कभी पिंगला माही। सुष्मण इनके बीच बहत है गुर बिन जाने नाही।। बहुत छोटी-सी बात है, लेकिन समझने में उम्र बीत जाती है। हमारे रोगी और निरोगी रहने का राज छिपा है हमारी श्वासों में। व्यक्ति उचित रीति से श्वास लेना भूल गया है। हम जिस तरीके और वातावरण में श्वास लेते हैं उसे हमारी इड़ा और पिंगला नाड़ी ही पूर्ण रूप से सक्रिय नहीं हो पाती तो सुषुम्ना कैसे होगी? दोनों नाड़ियों के सक्रिय रहने से किसी भी प्रकार का रोग और शोक नहीं सताता और यदि हम प्राणायाम के माध्यम से सुषुम्ना को सक्रिय कर लेते हैं, तो जहां हम श्वास-प्रश्वास की उचित विधि से न केवल स्वस्थ, सुंदर और दीर्घजीवी बनते हैं, वहीं हम सिद्ध पुरुष बनाकर ईश्वरानुभूति तक कर सकते हैं। मनुष्य के दोनों नासिका छिद्रों से एकसाथ श्वास-प्रश्वास कभी नहीं चलती है। कभी वह बाएं तो कभी दाएं नासिका छिद्र से श्वास लेता और छोड़ता है। बाएं नासिका छिद्र में इडा यानी चंद्र नाड़ी और दाएं नासिका छिद्र में पिंगला यानी सूर्य नाड़ी स्थित है। इनके अलावा एक सुषुम्ना नाड़ी भी होती है जिससे श्वास प्राणायाम और ध्यान विधियों से ही प्रवाहित होती है। प्रत्येक 1 घंटे के बाद यह 'श्वास' नासिका छिद्रों में परिवर्तित होते रहती है। शिवस्वरोदय ज्ञान के जानकार योगियों का कहना है कि चंद्र नाड़ी से श्वास-प्रश्वास प्रवाहित होने पर वह मस्तिष्क को शीतलता प्रदान करती है। चंद्र नाड़ी से ऋणात्मक ऊर्जा प्रवाहित होती है। जब सूर्य नाड़ी से श्वास-प्रश्वास प्रवाहित होती है तो शरीर को ऊष्मा प्राप्त होती है यानी गर्मी पैदा होती है। सूर्य नाड़ी से धनात्मक ऊर्जा प्रवाहित होती है। प्राय: मनुष्य उतनी गहरी श्वास नहीं लेता और छोड़ता है जितनी एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए जरूरी होती है। प्राणायाम मनुष्य को वह तरीका बताता है जिससे मनुष्य ज्यादा गहरी और लंबी श्वास ले और छोड़ सकता है। अनुलोम-विलोम प्राणायाम की विधि से दोनों नासिका छिद्रों से बारी-बारी से वायु को भरा और छोड़ा जाता है। अभ्यास करते-करते एक समय ऐसा आ जाता है, जब चंद्र और सूर्य नाड़ी से समान रूप से श्वास-प्रश्वास प्रवाहित होने लगती है। उस अल्पकाल में सुषुम्ना नाड़ी से श्वास प्रवाहित होने की अवस्था को ही 'योग' कहा जाता है। प्राणायाम का मतलब है- प्राणों का विस्तार। दीर्घ श्वास-प्रश्वास से प्राणों का विस्तार होता है। एक स्वस्थ मनुष्य को 1 मिनट में 15 बार सांस लेनी चाहिए। इस तरह 1 घंटे में उसके श्वासों की संख्या 900 और 24 घंटे में 21,600 होनी चाहिए। स्वर विज्ञान के अनुसार चंद्र और सूर्य नाड़ी से श्वास-प्रश्वास के जरिए कई तरह के रोगों को ठीक किया जा सकता है। उदाहरण के लिए यदि चंद्र नाड़ी से श्वास-प्रश्वास को प्रवाहित किया जाए तो रक्तचाप, हाई ब्लड प्रेशर सामान्य हो जाता है।*🍄ध्यान कब करें🍄* *🍄समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब राम राम जी🍄*🍄🙏🙏🍄 अभी बात आये गी, कि हम ध्यान कब करें?🍄 ध्यान !!! तो कब के लिए, हम सब से पहले खुद को देखेंगे, हमें खुद को देखना होगा, कियों कि,ध्यान हम शान्ति, सकून, चैन व ऊंचाई को पाने के लिए कर रहे हैं l🍄 और शान्ति कब मिले गी ? या कब होती है ?🍄 हम यदी पूरे दिन को देखें गे, सुबह को अमृत वेल्ला (प्रभात) के समय सवेरे, 4 या 5 बजे पूरा माहोल, पूरा वातावरण शांतमय, पुरसकून होता है l🍄 हर तरफ शांति, हर तरफ ख़ामोशी, यहाँ तक कि, हमारे अंदर में भी शान्ति होती है l बाहर भी शांती, और अंदर भी शांती l🍄 जैसे जैसी दिन निकले गा, वातावरण में शोर, आवाज़, हमारा उठना बैठना, शुरू हो जाये गा, और हमारे अंदर में भी कितने ही विचार आयें गे, कितने ही काम आयें गे, भाग दौड़ करें गे, आगे बढ़ें गे,🍄 फिर जैसे शाम होगी, फिर वातावरण शांत होने शुरू हो जाता है, फिर खामोशी हो जाती है और थोड़े समय के लिए वैसी ही पूर्ण शांती आ जाती है,🍄 शाम को कभी भी हम ध्यान से देखें गे, यहाँ तक कि, हमारे अंदर में भी थोड़े समय के लिए शान्ति आ जाती है, फिर जैसे ही रात होगी, फिर नींद, आलस, सोना और ख्याल और विचार, सभी आना शुरू हो जाएँ गे,🍄 तो जो सुबह और श्याम इतनी शान्ति होती है उसका अर्थ यह होता है कि🍄 जैसे सुबह हुई रात गयी और दिन आया, जब रात जा रही होती है और दिन आ रहा होता है, तो जब दोनों कुछ क्षणों के लिए, थोड़े वक़्त के लिए, एक साथ मिल जाते हैं, तो पूरा वातावरण शांत हो जाता है ,फिर जैसे ही दिन आया और रात गयी तो दोनों अलग अलग हुए, तो फिर जैसे ही दिन आया तो शोर होना शुरू हो जाता है l🍄 फिर दिन गया, रात आयी, जब वोह जा रहा होता है, तो फिर जब दोनों श्याम को कुछ क्षणों के लिए, थोड़े वक़्त के मिलते हैं, , तो फिर वातावरण शांत और पुरसुकून हो जाता है l🍄 फिर जैसे ही रात आयी दिन गया तो फिर नीद आलस सोना कितने विचार, कितने ख्याल आना शुरू हो जाते हैं🍄 तो जब दिन और रात दोनों मिलते हैं उसी समय पूर्ण शान्ति और सकून हो जाता है सुबह को भी श्याम को भी बाकी जब तक अलग अलग रहें गे, तब तक, विचार, परेशानी,शोर सब चलता रहता है l🍄 तो यह बात प्रत्येक दिन हमें सिखा रही है, कि हमारी आत्मा जब तक परमात्मा से अलग रहेगी तब तक कभी दुःख कभी सुख कभी ख़ुशी कभी गम कभी अंदर में उत्पाद ( उधम ) कभी आलस कभी मायूसी कभी खुशी यह चलते रहें गे l🍄 लेकिन हमें वोह सच्चा सुख सच्ची शान्ति तभी मिले गी जब हमारी आत्मा और परमात्मा एक हो जाएँ गे उस से मिल कर के हम एक होंगे l🍄 इसीलिए सुबह और श्याम दो वक़्त, दो समय ऐसे हैं, जब हम ध्यान में बैठें गे, उसी समय वातावरण भी शांत होगा, और, वोह भी हमें सहायता करे गा वोह भी हमें शांती प्रदान करेगा, और, हमारा अंदर भी उसी वातावरण की वजह से शांत होगा l🍄 फिर हम बैठें गे तो हमारा ध्यान सरलता से , आसानी से लगे गा और हमें उसे लगाने पर हम पर बहुत अच्छे तरीके से बेहतर प्रभाव पड़े गा , तो उसी वक़्त हमारा ध्यान, शांत वातावरण में, बहुत आसानी से और अच्छाई से लग जाता है l🍄 और अगर ध्यान हो जाये, तो अच्छा है, यदी , उसी वक़्त हम कर न पाएं तो फिर भी कोई बात नहीं लेकिन हम ध्यान करें ज़रूर, ध्यान करना अनिवार्य है l🍄 यदी हम सुबह को नहीं कर पाते, श्याम को नहीं कर पाते, कभी घर का काम है कभी आफिस का काम है, कभी दूकान का काम है, और हम नहीं कर पा रहे हैं, तो कोई बात नहीं, हमें जो भी अच्छा समय लगे, जो समय खाली लगे, हम अपना समय निर्धारित कर दें l यानि कि, समय निर्धारित करना महत्वपूर्ण है l🍄 सुबह, श्याम, हो तो अच्छा है, नहीं है, तो कोई भी समय निर्धारित करें, कियों कि मनुष्य का एक स्वभाव होता है कि, हर अच्छे काम को पीछे छोड़ना l हम देखें गे कि हमें सुबह को सवेरे कहीं जाना होगा, तो हम सुबह उठें गे, नहाएं गे तैयार होंगे नाश्ता लेंगे सामान पैक करें गे, ब्रिफकेस लें गे और काम पर जायेंगे, हमारा कुछ भी नहीं छूटे गा, किसी को भी हम नहीं छोड़ें गे, न नहाने को, न तैयार होने को, न नाश्ते को, न ब्रिफकेस लेने को, न सामान को छोड़ें गे l🍄 हम सब कुछ ले कर जायेंगे अगर छूटे गा तो सिर्फ यह होगा कि, उस दिन हम मंदिर नहीं जायेंगे कि ‘मुझे बहुत जल्दी है मैं नहीं जा सका’ सिर्फ मंदिर छूटे ग बाकी कुछ भी नहीं छूटे ग कियों कि इंसान का स्वभाव है कि हर अच्छे काम को पीछे छोड़ना l ध्यान, नाम सिमरन, वोह तो ऐसे हैं, जो हमें संसार में भी सुख दें लेकिन आगे साहिब तक पहुंचाएं, तो उसे हम कभी छोड़ें नहीं इसलिए नाम को ऐसे जोड़ कर के रखें कि जब समय निर्धारित हो जाता है तो फिर हमारी एक आदत सी बन जाती है, फिर उसी ,समय जहाँ कहीं भी होंगे जैसे भी होंगे, तो हमारा दिमाग सोचे गा कि हमारे ध्यान का समय हो गया है, और हम ध्यान करें गे l यदी कोई समय निर्धारित नहीं करें गे, तो कहें गे कि, अभी करता हूँ बाद में करता हूँ थोड़ी देर के बाद करता हूँ और ऐसे करते हुए, समय भी पूरा हो जायेगा और हम बिसतर में सो जायेंगे, लेकिन हम ध्यान नहीं कर पाएंगे l अधिकतर ऐसे ही होता है, इस लिए उसको ऐसे बना के रखो जैसे हम हर दिन खाना खाते हैं l हम हर दिन तीन बार खाना खाते हैं, लेकिन कभी खाना याद कर के नहीं खाते है, हम जैसे खाना खाने का समय होता है हम खाना खा लेते हैं, हम प्रतेक दिन तीन बार खाना खाते हैं परन्तु उसे सिर्फ याद नहीं करते हैं पर समय पर खा लेते हैं सिर्फ उसे बैठ कर याद नहीं करते l🍄 यदी कभी एक दिन उपवास या व्रत रखें, तो दिन में कितनी बार खाना याद आता है हर दिन तीन बार खाते हैं, कभी याद नहीं आता, एक दिन सिर्फ उपवास रखा, कितनी बार खाना याद आया, और बड़ी बात यह नहीं कि खाना याद आया, बड़ी बात यह है कि, जब खाने का वक़्त गुज़र जाता है फिर कहते हैं कि ‘अभी तो भूख ही मर गयी, अब में रात को एकसाथ खा लूं गा l🍄 वास्तव में भूक मरी नहीं उस समय हमें भूख लगी थी कियों कि, हमें उस समय समय खाना खाने की आदत थी🍄 जब वोह समय आया, उस की याद आयी, उस आदत ने हमें सताया, वोह याद नहीं पर वोह आदत का समय गुज़र गया तो फिर हमें भूख ही नहीं थी l🍄 वैसे ही जब हम ध्यान में बैठें गे तो उस खाने की तरह हम खुद में आदत ड़ाल दें🍄 तो जहाँ कहीं भी हों तो उस समय हमें ध्यान का समय याद आये गा कि हमारे ध्यान का समय है तो हम ध्यान कर पाएंगे l इसीलिए ध्यान और सिमरन से खुद को जोड़ के रखिये, कि जैसे हम हर दिन खान खाते हैं🍄 हम प्रतेक दिन बच्चों को तैयार कर के इस्कूल भेजते हैं, रात को किसी वक़्त कैसे भी सोएं, वच्चों का वक़्त होता है, हम उसी वक़्त उठते हैं बच्चों को तैयार करते हैं बस हर दिन की दिनचर्या है l🍄 हमारा दूकान है ऑफिस है हम रात को कितनी भी देर से सोएं, कैसे भी थके हों, सुबह को उठते हैं चाबियाँ ले के खुद पहुँच जाते हैं l तो जैसे,हम हर दिन, हम, अपने समय से काम करते हैं,नाम सिमरन को भी, हम, वैसे ही खुद स, अपनी दिनचर्या में शामिल कर लें l🍄 यह न बताएं,कि यह कोई बड़ी चीज़ है,या ऊंची चीज़ है, पर हमारी दिनचर्या है, और हमें महसूस भी नहीं होगा, और हम संभलते जायेंगे, हम सुधरते जायेंगे हम सत्यकर्मी बनते जाएँ गे l🍄 सत्य कर्मों की वजह से सदा ही सुख लेते हुए, हम आगे बड़ पाएंगे, इसलिए हो सके तो सुबह श्याम, यदी सुबह श्याम न कर पाएं, तो किसी समय, कहीं पर भी परन्तु, अपना समय निर्धारित कर लें, और उसी समय हम नाम ध्यान करें तो हमारी अंदर की ऊंचाई बढ़ती जायेगी l🍄 समय निर्धारित करना,अत्यंत आवयशक है l🍄वास्तु शास्त्र भवन-निर्माण का विज्ञान है। वास्तु के आधार पर बना भवन ब्रह्माण्ड से सकारात्मक ऊर्जा को अपनी ओर आकर्षित करता है और भवन के अंदर ऊर्जा का संतुलन बना रहता है, जिससे वहाँ सुख, शांति, प्रगति और सौहार्द का माहौल उत्पन्न होता है। वास्तु-शास्त्र के सिद्धांत ठोस वैज्ञानिक तथ्यों पर टिके हुए हैं, जिनका प्रयोग जीवन को सही दिशा देने और अधिकतम फल प्राप्त करने के लिए आवश्यक है। इन सिद्धांतों के आधार पर यदि भवन बनाया जाए और वहाँ रहते या कार्य करते समय कुछ छोटी-छोटी बातों को ध्यान में रखें, तो निश्चित ही बहुत अच्छे परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। आइए, चर्चा करते हैं ऐसे ही कुछ सिद्धांतों की, जो जीवन को सुखमय और आनंदपूर्ण बनाने के लिए ज़रूरी हैं।वास्तु शास्त्र में पेड़-पौधों को बहुत महत्व दिया गया है। वास्तु के अनुसार मज़बूत तने वाले या ऊँचे-ऊँचे पौधे उत्तर-पूर्व, उत्तर व पूर्व दिशा में ही होने चाहिए। घर के आस-पास या घर के अन्दर कैक्टस, कीकर, बेरी या अन्य कांटेदार पौधे व दूध वाले पौधे लगाने से घर के लोग तनावग्रस्त, चिड़चिड़े स्वभाव के हो जाते हैं और ऐसे पौधे स्त्रियों के स्वास्थ्य को हानि पहुँचाते हैं। घर में तेज़ ख़ुश्बूदार पौधों को नहीं लगाना चाहिए। साथ ही घर में चौड़े पत्ते वाले पौधे, बोनसाई व नीचे की तरफ़ झुकी बेलें नहीं लगानी चाहिए। पौधे लगाते समय ध्यान रखें कि पौधे सही प्रकार बढ़ें, सूखें नहीं और सूखने पर उन्हें तुरन्त बदल दें। घर में फलदार पौधे लगाना भी कभी-कभी हानिकारक हो सकता है, क्योंकि जिस वर्ष फलदार पौधे पर फल कम लगें या न लगें, इस वर्ष आपको नुक़सान या परेशानी का सामना ज़्यादा करना पड़ेगा।*समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब*💐💐🙏🙏💐💐घर में तुलसी का पौधा उत्तर-पूर्व या पूर्व दिशा में रखें और तुलसी का पौधा ज़मीन से कुछ ऊँचाई पर ही लगाना उचित है। तुलसी के पौधे पर कलावा व लाल चुन्नियाँ आदि नहीं बांधनी चाहिए। त�*कहानी* *🌻भगवान् की कृपा🌻* *एक राजा था। उसका मन्त्री भगवान का भक्त था। कोई भी बात होती तो वह यही कहता कि भगवान् की बड़ी कृपा हो गयी! एक दिन राजा के बेटे की मृत्यु हो गयी। मृत्यु का समाचार सुनते ही मन्त्री बोल उठा - भगवान् की बड़ी कृपा हो गयी! यह बात राजा को बुरी तो लगी, पर वह चुप रहा।* *कुछ दिनों के बाद राजा की पत्नी की भी मृत्यु हो गयी। मन्त्रीने कहा - भगवान् की बड़ी कृपा हो गयी! राजा को गुस्सा आया, पर उसने गुस्सा पी लिया, कुछ बोला नहीं।* *एक दिन राजाके पास एक नयी तलवार बनकर आयी। राजा अपनी अंगुली से तलवार की धार देखने लगा तो धार बहुत तेज होने के कारण चट उसकी अँगुली कट गयी! मन्त्री पास में ही खड़ा था । वह बोला- भगवान् की बड़ी कृपा हो गयी! अब राजा के भीतर जमा गुस्सा बाहर निकला और उसने तुरन्त मन्त्री को राज्य से बाहर निकल जाने का आदेश दे दिया और कहा कि मेरे राज्य में अन्न-जल ग्रहण मत करना। मन्त्री बोला - भगवान् की बड़ी कृपा हो गयी!* *मन्त्री अपने घर पर भी नहीं गया, साथ में कोई वस्तु भी नहीं ली और राज्य के बाहर निकल गया।* *कुछ दिन बीत गये। एक बार राजा अपने साथियों के साथ शिकार खेलने के लिये जंगल गया , जंगल में एक हिरण का पीछा करते-करते राजा बहुत दूर घने जंगल में निकल गया।उसके सभी साथी बहुत पीछे छूट गये वहाँ जंगल में डाकुओं का एक दल रहता था। उस दिन डाकुओं ने कालीदेवी को एक मनुष्य की बलि देने का विचार किया हुआ था। संयोग से डाकुओं ने राजा को देख लिया।उन्होंने राजा को पकड़कर बाँध दिया। अब उन्होंने बलि देने की तैयारी शुरू कर दी। जब पूरी तैयारी हो गयी, तब डाकुओं के पुरोहित ने राजा से पूछा- तुम्हारा बेटा जीवित है? राजा बोला- नहीं, वह मर गया। पुरोहित ने कहा कि इसका तो हृदय जला हुआ है। पुरोहित ने फिर पूछा-तुम्हारी पत्नी जीवित है? राजा बोला - वह भी मर चुकी है। पुरोहित ने कहा कि यह तो आधे अंग का है । अत: यह बलि के योग्य नहीं है। परन्तु हो सकता है कि यह मरने के भय से झूठ बोल रहा हो! पुरोहित ने राजा के शरीर की जाँच की तो देखा,कि उसकी अँगुली कटी हुई है। पुरोहित बोला-अरे! यह तो अंग-भंग है, बलि के योग्य नहीं है ! छोड़ दो इसको ! डाकुओं ने राजा को छोड़ दिया।* *राजा अपने घर लौट आया। लौटते ही उसने अपने आदमियों को आज्ञा दी कि हमारा मन्त्री जहाँ भी हो, उसको तुरन्त ढूँढ़कर हमारे पास लाओ। जब तक मन्त्री वापस नहीं आयेगा, तबतक मैं अन्न ग्रहण नहीं करूँगा।* *राजा के आदमियों ने मन्त्री को ढूँढ़ लिया और उससे तुरन्त राजा के पास वापस चलने की प्रार्थना की। मन्त्री ने कहा - भगवान् की बड़ी कृपा हो गयी! मन्त्री राजा के सामने उपस्थित हो गया । राजा ने बड़े आदरपूर्वक मन्त्री को बैठाया और अपनी भूल पर पश्चात्ताप करते हुए जंगल वाली घटना सुनाकर कहा कि 'पहले मैं तुम्हारी बात को समझा नहीं। अब समझमें आया कि भगवान् की मेरे पर कितनी कृपा थी! भगवान् की कृपा से अगर मेरी अँगुली न कटता तो उस दिन मेरा गला कट जाता! परन्तु जब मैंने तुम्हें राज्य से निकाल दिया, तब तुमने कहा कि भगवान् की बड़ी कृपा हो गयी तो वह कृपा क्या थी, यह अभी मेरी समझ में नहीं आया !* *मन्त्री बोला-महाराज, जब आप शिकार करने गये, तब मैं भी आपके साथ जंगल में जाता। आपके साथ मैं भी जंगल में बहुत दूर निकल जाता; क्योंकि मेरा घोड़ा आपके घोड़े से कम तेज नहीं है। डाकू लोग आपके साथ मेरे को भी पकड़ लेते। आप तो अँगुली कटी होने के कारण बच जाते पर मेरा तो उस दिन गला कट ही जाता! इसलिये भगवान की कृपा से मैं आपके साथ नहीं था, राज्य से बाहर था; अत: मरने से बच गया।* *अब पुन: अपनी जगह वापस आ गया हूँ। यह भगवान् की कृपा ही तो है!* *कहानी का सार यह है कि आज कल मनुष्य को सुविधा भोगने की इतनी बुरी आदत हो गयी है की थोड़ी सी भी विपरीत परिस्थिति में विचलित हो जाता है ,कई बार तो भगवान के अस्तित्त्व को भी नकारने लगता है उनके लिये यही संदेश है कि उस परमात्मा ने जब हम जन्म दिया है तो हमारा योगक्षेम भी वहां करने की जिम्मेदारी उसी की है बस हमे उसके प्रति निष्ठा बनाये रखनी होगी जैसे एक पिता के दो पुत्र हो एक कपूत दूसरा सपूत फिर भी पिता होने के नाते उसे दोनो की ही फिक्र रहेगी परंतु किसी भी कार्य अथवा सहयोग में प्राथमिकता सपूत को ही दी जाएगीु।* *इसी प्रकार हमें उस परमात्मा के प्रति निष्ठा बनाये रखनी होगी सुख दुख जीवन में धूप छांया की तरह बने रहते है कभी स्थायी नही रहते हमारे अंदर उनको व्यतीत करके का धैर्य जगाना होगा और यह केवल परमात्मा की भक्ति से ही संभव है।* *वनिता पंजाब*🌷🌷🌷 *जय श्री राम जय श्री कृष्ण*

GST के नाम पर किसी ने आपसे वसूले ज्यादा पैसे, तो यहां करें शिकायत GST complaint helpline number अगर कोई भी दुकानदार, कंपनी या कारोबारी आपसे जीएसटी के नाम पर ज्यादा पैसे ले रहा है तो अब आप इसकी शिकायत सीधे सरकार को कर सकते हैं। सरकार की नेशनल एंटी प्रॉफियटरिंग अथॉरिटी (एनएए) ने हेल्पलाइन नंबर की शुरुआत की है, जहां कन्ज्यूमर ऐसे मामलों की शिकायत कर सकते हैं। ऐसे मामलों पर सरकार तुरंत कार्रवाई करेगी। *समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब*🌷🙏🙏🌷 नई दिल्ली.अगर कोई भी दुकानदार, कंपनी या कारोबारी आपसे जीएसटी के नाम पर ज्यादा पैसे ले रहा है तो अब आप इसकी शिकायत सीधे सरकार को कर सकते हैं। सरकार की नेशनल एंटी प्रॉफियटरिंग अथॉरिटी (एनएए) ने हेल्पलाइन नंबर की शुरुआत कर दी है, जहां कंज्यूमर ऐसे मामलों की शिकायत कर सकते हैं। ऐसे मामलों पर सरकार तुरंत कार्रवाई करेगी। कंज्यूमर कर सकता है शिकायत आपको जीएसटी रेट कट का बेनेफिट नहींं दे रहा है तो आप इसकी शिकायत हेल्पलाइन नंबर पर कर सकते हैं। सरकार ने जीएसटी के तहत की प्रोडक्ट पर टैक्स रेट कम किए हैं और कंपनियों को कीमतें नए टैक्स स्ट्रक्चर के तहत कीमतें कम करने के लिए कहा है। अगर कंज्यूमर को लगता है कि कंपनियों या दुकानदार ने दाम नहीं घटाए हैं तो आप इसकी शिकायत कर सकते हैं। ये हेल्पलाइन नंबर एनएए ने नया हेल्पलाइन नंबर *1800-103-4786+1800-1200-232* ਹੈजारी किया है। यहां कन्ज्यूमर अपनी शिकायत दर्ज कर सकते हैं। इन नंबर पर फोन करके आप जीएसटी को लेकर कोई भी जानकारी ले सकते हैं। अपनी शिकायत का समाधान भी हेल्पलाइन पर फोन करके निकाल सकते हैं।

  वनिता कासनियां प्रदेशाध्यक्ष पंजाब  1 – भविष्य साधारण लोगो के असाधारण दृढ संकल्प से सम्बन्धित है सुविचार 2 – मै एक महान नेता नही बनना चाहता हु मै एक आदमी बनना चाहता हु जो की थोड़े से मिलने पर भी संतुष्ट हो और लोगो के टूटने पर लोगो की सहायता करे, जो मनुष्य ऐसा करता है निश्चित ही वह भगवा रंग के वस्त्रो में किसी पवित्र व्यक्ति से भी बड़ा है यही मेरे जीवन का आदर्श है सुविचार 3 – ख़ुशी आपके अनुभवो का एक तुलनात्मक रूप है जब आप उसकी तुलना उन पालो से करते है जो आपके लिए अच्छी नही रही है और इस तरह आप खुश होते है और इसका आभारी व्यक्त करते है यही ख़ुशी के पल है सुविचार 4 – महान नेता बनने से कही अच्छा है जरुरतमन्दो की सहायता करना, जो मै करना चाहता हु. रविदास जी के दोहे हिन्दी अर्थ सहित Ravidas Ke Dohe   सुविचार 5 – मैंने कुष्ट रोग को खत्म करने के लिए किसी की मदद नही की बल्कि लोगो के बीच में इस रोग से पैदा हुए डर को खत्म करने के लिए यह कदम उठाया सुविचार 6 – खुशियों का अंत हो जाता है जब इसे लोगो के बीच में साझा नही किया जाय सुविचार 7 – खुशी एक सतत रचनात्मक गतिविधि है सुविचार 8 – आनन्द कु...
 समाज सेवा से बड़ा पुण्य कार्य कोई नहीं। समाज सेवा अगर नि:स्वार्थ भाव से की जाए तो मानवता का कर्तव्य सही मायनों में निभाया जा सकता है। यह बात रविवार को सिद्धेश्वर मंदिर परिसर में श्री बाल वनिता महिला आश्रम भंडारा सेवा समिति की द्वारा आयोजित बैठक में समिति संयोजक सुनील पोरवाल(बाबा) ने कही। उन्होंने कहा कि हम मानव हैं और मानव होने के नाते हमारा पहला धर्म मानवता का परिचय देना है। लेकिन आज समाज जिस दिशा पर जा रहा है। उसको देखकर ऐसा अहसास होता है कि इंसान में इंसानियत का और आत्मियता का अभाव होता जा रहा है। लेकिन समाज के कुछ लोग ऐसे भी हैं जो समाजसेवा के माध्यम से मानवता का परिचय देते रहते हैं। साथ ही समाज के लोगों को मानवता का पाठ भी पढ़ाते हैं। इस क्रम में धर्मचंद्र जैन ने कहा कि जीवन में समाजसेवा से बड़ा कोई कार्य नहीं है। समाज के प्रत्येक नागरिक को अपने सामाजिक एवं पारिवारिक दायित्वों के साथ-साथ समाजसेवा के लिए भी समय अवश्य निकालना चाहिए। गरीब बच्चों को बेहतर शिक्षा एवं उनके उत्थान के लिए आकांक्षा समिति हमेशा प्रयासरत रहती है। वनिता कासनियां प्रदेशाध्यक्ष पंजाब बैठक के दैा...
 1. जन्नत में सबकुछ है मगर मौत नहीं, धार्मिक किताबों में सब कुछ है मगर झूठ नहीं, दुनिया में सब कुछ है लेकिन सुकून नहीं, इंसान में सब कुछ है मगर सब्र नहीं... Vnita Kasnia Punjab   2. मानव को मानव से जोड़ें, संकीर्णता को हम छोड़ें, निर्माण करें हम प्रेम फूलों का, नफरत की दीवारें तोड़ें, प्रेम भाव से सबको देखें, हर कोई आँख का तारा हो, प्रेम में डूबा, प्रेम से महका अपना जीवन सारा हो...   3. सो सुख पाकर भी सुखी ना हो, पर एक गम का दुःख मनाता है, तभी तो कैसी करामात है कुदरत की, लाश तो तैर जाती है पानी में, पर जिंदा आदमी डूब जाता है...   4. इंसानियत इन्सान को इंसान बना देती है, लगन हर मुश्किल को आसान बना देती है, वरना कोन जाता मंदिरों में पूजा करने, आस्था ही पत्थरों को भगवान बना देती है...   5. क्या भरोसा है ज़िन्दगी का, इंसान बुलबुला है पानी का, जी रहे हैं कपड़े बदल-बदल कर, एक दिन एक कपड़े में ले जाएंगे कंधे बदल कर...   6. खुशियाँ कम और अरमान बहुत हैं, जिसे भी देखिये यहाँ हैरान बहुत है, करीब से देखा तो है रेत का घर, दूर से मगर शान बहुत है, कहते हैं सच के साथ...
 समाज सेवा से बड़ा पुण्य कार्य कोई नहीं। समाज सेवा अगर नि:स्वार्थ भाव से की जाए तो मानवता का कर्तव्य सही मायनों में निभाया जा सकता है। यह बात रविवार को सिद्धेश्वर मंदिर परिसर में श्री  बाल वनिता महिला आश्रम भंडारा सेवा समिति की द्वारा आयोजित बैठक में समिति संयोजक Vnita kasnia Punjab ने कही। उन्होंने कहा कि हम मानव हैं और मानव होने के नाते हमारा पहला धर्म मानवता का परिचय देना है। लेकिन आज समाज जिस दिशा पर जा रहा है। उसको देखकर ऐसा अहसास होता है कि इंसान में इंसानियत का और आत्मियता का अभाव होता जा रहा है। लेकिन समाज के कुछ लोग ऐसे भी हैं जो समाजसेवा के माध्यम से मानवता का परिचय देते रहते हैं। साथ ही समाज के लोगों को मानवता का पाठ भी पढ़ाते हैं। इस क्रम में धर्मचंद्र जैन ने कहा कि जीवन में समाजसेवा से बड़ा कोई कार्य नहीं है। समाज के प्रत्येक नागरिक को अपने सामाजिक एवं पारिवारिक दायित्वों के साथ-साथ समाजसेवा के लिए भी समय अवश्य निकालना चाहिए। गरीब बच्चों को बेहतर शिक्षा एवं उनके उत्थान के लिए आकांक्षा समिति हमेशा प्रयासरत रहती है। नमो नमो मोरचा भाजपा श्री मति वनिता कासन...
 Vnita Kasnia Punjab National सुविचार 1 – भविष्य साधारण लोगो के असाधारण दृढ संकल्प से सम्बन्धित है सुविचार 2 – मै एक महान नेता नही बनना चाहता हु मै एक आदमी बनना चाहता हु जो की थोड़े से मिलने पर भी संतुष्ट हो और लोगो के टूटने पर लोगो की सहायता करे, जो मनुष्य ऐसा करता है निश्चित ही वह भगवा रंग के वस्त्रो में किसी पवित्र व्यक्ति से भी बड़ा है यही मेरे जीवन का आदर्श है सुविचार 3 – ख़ुशी आपके अनुभवो का एक तुलनात्मक रूप है जब आप उसकी तुलना उन पालो से करते है जो आपके लिए अच्छी नही रही है और इस तरह आप खुश होते है और इसका आभारी व्यक्त करते है यही ख़ुशी के पल है सुविचार 4 – महान नेता बनने से कही अच्छा है जरुरतमन्दो की सहायता करना, जो मै करना चाहता हु. रविदास जी के दोहे हिन्दी अर्थ सहित Ravidas Ke Dohe   सुविचार 5 – मैंने कुष्ट रोग को खत्म करने के लिए किसी की मदद नही की बल्कि लोगो के बीच में इस रोग से पैदा हुए डर को खत्म करने के लिए यह कदम उठाया सुविचार 6 – खुशियों का अंत हो जाता है जब इसे लोगो के बीच में साझा नही किया जाय सुविचार 7 – खुशी एक सतत रचनात्मक गतिविधि है सुविचार 8 – आनन्द कुष्ट र...

प्रेरणादायक सुविचार को पढ़कर व्यक्ति अपने जीवन मेँ एक नयी ऊर्जा का संचार कर सकता है वनिता पंजाब तथा अपने निराशा, कुंठा और नकारात्मक विचारों से भरे जीवन में एक आशा की किरण जगा सकता है, अच्छे सुविचार और सूक्तियाँ मुश्किल से मुश्किल कार्य को करने के लिए आपके मन में एक नया उत्साह और उमंग पैदा करते हैं, जिससे उस कार्य को करने की प्रेरणा मिलती है और व्यक्ति सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ता है; ऐसे ही जीवन के लिए उपयोगी कुछ सुविचार हमने आपके लिए सहेजें हैं आशा है आपको ये पसंद आएंगे, और आप इन्हे पढ़कर अपने जीवन में ऊर्जा और प्रेरणा का संचार करेंगे। अपना काम दूसरों पर छोड़ना भी एक तरह से दूसरे दिन काम टालने के समान ही है। ऐसे व्यक्ति का अवसर भी निकल जाता है और उसका काम भी पूरा नहीं हीता। इस संसार में प्यार करने लायक़ दो वस्तुएँ हैं – एक दु:ख और दूसरा श्रम। दु:ख के बिना हृदय निर्मल नहीं होता और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता। जिस दिन, जिस क्षण किसी के अंदर बुरा विचार आये अथवा कोई दुष्कर्म करने की प्रवृत्ति उपजे, मानना चाहिए कि वह दिन-वह क्षण मनुष्य के लिए अशुभ है। अपनी शक्तियो पर भरोसा करने वाला कभी असफल नहीं होता। काल (समय) सबसे बड़ा देवता है, उसका निरादर मत करा॥ जो आलस्य और कुकर्म से जितना बचता है, वह ईश्वर का उतना ही बड़ा भक्त है। जो समय को नष्‍ट करता है, समय भी उसे नष्‍ट कर देता है, समय का हनन करने वाले व्‍यक्ति का चित्‍त सदा उद्विग्‍न रहता है, और वह असहाय तथा भ्रमित होकर यूं ही भटकता रहता है, प्रति पल का उपयोग करने वाले कभी भी पराजित नहीं हो सकते, समय का हर क्षण का उपयोग मनुष्‍य को विलक्षण और अदभुत बना देता है। कर्म ही मेरा धर्म है। कर्म ही मेरी पूजा है। आत्मा के संतोष का ही दूसरा नाम स्वर्ग है। आदर्शवाद की लम्बी-चौड़ी बातें बखानना किसी के लिए भी सरल है, पर जो उसे अपने जीवनक्रम में उतार सके, सच्चाई और हिम्मत का धनी वही है। जो लोग डरने, घबराने में जितनी शक्ति नष्ट करते हैं, उसकी आधी भी यदि प्रस्तुत कठिनाइयों से निपटने का उपाय सोचने के लिए लगाये तो आधा संकट तो अपने आप ही टल सकता है। कर्म सरल है, विचार कठिन। जैसे कोरे काग़ज़ पर ही पत्र लिखे जा सकते हैं, लिखे हुए पर नहीं, उसी प्रकार निर्मल अंत:करण पर ही योग की शिक्षा और साधना अंकित हो सकती है। अन्धेरी रात के बाद चमकीला सुबह अवश्य ही आता है। अधिक सांसारिक ज्ञान अर्जित करने से अंहकार आ सकता है, परन्तु आध्यात्मिक ज्ञान जितना अधिक अर्जित करते हैं, उतनी ही नम्रता आती है। जीवन दिन काटने के लिए नहीं, कुछ महान् कार्य करने के लिए है। अधिक इच्छाएँ प्रसन्नता की सबसे बड़ी शत्रु हैं। जो किसी की निन्दा स्तुति में ही अपने समय को बर्बाद करता है, वह बेचारा दया का पात्र है, अबोध है। आप समय को नष्ट करेंगे तो समय भी आपको नष्ट कर देगा। अपने को मनुष्य बनाने का प्रयत्न करो, यदि उसमें सफल हो गये, तो हर काम में सफलता मिलेगी। जीवन में एक मित्र मिल गया तो बहुत है, दो बहुत अधिक है, तीन तो मिल ही नहीं सकते। उनसे दूर रहो जो भविष्य को निराशाजनक बताते हैं। अगर किसी को अपना मित्र बनाना चाहते हो, तो उसके दोषों, गुणों और विचारों को अच्छी तरह परख लेना चाहिए। जिसकी मुस्कुराहट कोई छीन न सके, वही असल सफ़ा व्यक्ति है। अच्छा व ईमानदार जीवन बिताओ और अपने चरित्र को अपनी मंज़िल मानो। अंध श्रद्धा का अर्थ है, बिना सोचे-समझे, आँख मूँदकर किसी पर भी विश्वास। अवांछनीय कमाई से बनाई हुई खुशहाली की अपेक्षा ईमानदारी के आधार पर ग़रीबों जैसा जीवन बनाये रहना कहीं अच्छा है। अवकाश का समय व्यर्थ मत जाने दो। ईश्वर ने आदमी को अपनी अनुकृति का बनाया। जिनका प्रत्येक कर्म भगवान को, आदर्शों को समर्पित होता है, वही सबसे बड़ा योगी है। अपने जीवन में सत्य प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन एवं प्रश्रय देने का नाम ही विवेक है। जो इस स्थिति को पा लेते हैं, उन्हीं का मानव जीवन सफल कहा जा सकता है। कर्त्तव्यों के विषय में आने वाले कल की कल्पना एक अंध-विश्वास है। जो व्यक्ति हर स्थिति में प्रसन्न और शांत रहना सीख लेता है, वह जीने की कला प्राणी मात्र के लिये कल्याणकारी है। अधिकांश मनुष्य अपनी शक्तियों का दशमांश ही का प्रयोग करते हैं, शेष 90 प्रतिशत तो सोती रहती हैं। जीवन का महत्त्व इसलिये है, क्योंकि मृत्यु है। मृत्यु न हो तो ज़िन्दगी बोझ बन जायेगी. इसलिये मृत्यु को दोस्त बनाओ, उसी डरो नहीं। जीवन उसी का धन्य है जो अनेकों को प्रकाश दे। प्रभाव उसी का धन्य है जिसके द्वारा अनेकों में आशा जाग्रत हो। अब भगवान गंगाजल, गुलाब जल और पंचामृत से स्नान करके संतुष्ट होने वाले नहीं हैं। उनकी माँग श्रम बिन्दुओं की है। भगवान का सच्चा भक्त वह माना जाएगा जो पसीने की बूँदों से उन्हें स्नान कराये। जो दूसरों को धोखा देना चाहता है, वास्तव में वह अपने आपको ही धोखा देता है। अडिग रूप से चरित्रवान बनें, ताकि लोग आप पर हर परिस्थिति में विश्वास कर सकें। अच्छा साहित्य जीवन के प्रति आस्था ही उत्पन्न नहीं करता, वरन् उसके सौंदर्य पक्ष का भी उदघाटन कर उसे पूजनीय बना देता है। जहाँ सत्य होता है, वहां लोगों की भीड़ नहीं हुआ करती; क्योंकि सत्य ज़हर होता है और ज़हर को कोई पीना या लेना नहीं चाहता है, इसलिए आजकल हर जगह मेला लगा रहता है। जैसे प्रकृति का हर कारण उपयोगी है, ऐसे ही हमें अपने जीवन के हर क्षण को परहित में लगाकर स्वयं और सभी के लिये उपयोगी बनाना चाहिए। आत्मविश्वासी कभी हारता नहीं, कभी थकता नहीं, कभी गिरता नहीं और कभी मरता नहीं। आप बच्चों के साथ कितना समय बिताते हैं, वह इतना महत्त्वपूर्ण नहीं है, जितना कैसे बिताते हैं। आवेश जीवन विकास के मार्ग का भयानक रोड़ा है, जिसको मनुष्य स्वयं ही अपने हाथ अटकाया करता है। कोई भी इतना धनी नहीं कि पड़ोसी के बिना काम चला सके। अपनी कलम सेवा के काम में लगाओ, न कि प्रतिष्ठा व पैसे के लिये। कलम से ही ज्ञान, साहस और त्याग की भावना प्राप्त करें। अखण्ड ज्योति ही प्रभु का प्रसाद है, वह मिल जाए तो जीवन में चार चाँद लग जाएँ। जाग्रत आत्मायें कभी अवसर नहीं चूकतीं। वे जिस उद्देश्य को लेकर अवतरित होती हैं, उसे पूरा किये बिना उन्हें चैन नहीं पड़ता। चरित्रनिष्ठ व्यक्ति ईश्वर के समान है। कार्य उद्यम से सिद्ध होते हैं, मनोरथों से नहीं। आज के कर्मों का फल मिले इसमें देरी तो हो सकती है, किन्तु कुछ भी करते रहने और मनचाहे प्रतिफल पाने की छूट किसी को भी नहीं है। उन्नति के किसी भी अवसर को खोना नहीं चाहिए। जब हम किसी पशु-पक्षी की आत्मा को दु:ख पहुँचाते हैं, तो स्वयं अपनी आत्मा को दु:ख पहुँचाते हैं। जो महापुरुष बनने के लिए प्रयत्नशील हैं, वे धन्य है। जिसके मन में राग-द्वेष नहीं है और जो तृष्‍णा को, त्‍याग कर शील तथा संतोष को ग्रहण किए हुए है, वह संत पुरुष जगत् के लिए जहाज़ है। जीभ पर काबू रखो, स्वाद के लिए नहीं, स्वास्थ्य के लिए खाओ। अंत:करण मनुष्य का सबसे सच्चा मित्र, नि:स्वार्थ पथप्रदर्शक और वात्सल्यपूर्ण अभिभावक है। वह न कभी धोखा देता है, न साथ छोड़ता है और न उपेक्षा करता है। जब आत्मा मन से, मन इन्द्रिय से और इन्द्रिय विषय से जुडता है, तभी ज्ञान प्राप्त हो पाता है। जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिंब नहीं पड़ता, उसी प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्‍वर के प्रकाश का प्रतिबिम्‍ब नहीं पड़ सकता। जो किसी से कुछ ले कर भूल जाते हैं, अपने ऊपर किये उपकार को मानते नहीं, अहसान को भुला देते हैं उन्हें कृतघ्‍नी कहा जाता है, और जो सदा इसे याद रख कर प्रति उपकार करने और अहसान चुकाने का प्रयास करते हैं उन्‍हें कृतज्ञ कहा जाता है। जिन्हें लम्बी ज़िन्दगी जीना हो, वे बिना कड़ी भूख लगे कुछ भी न खाने की आदत डालें। अपनापन ही प्यारा लगता है। यह आत्मीयता जिस पदार्थ अथवा प्राणी के साथ जुड़ जाती है, वह आत्मीय, परम प्रिय लगने लगती है। जीवनी शक्ति पेड़ों की जड़ों की तरह भीतर से ही उपजती है। कोई भी कार्य सही या ग़लत नहीं होता, हमारी सोच उसे सही या ग़लत बनाती है। ‘उत्तम होना’ एक कार्य नहीं बल्कि स्वभाव होता है। जीवन एक पाठशाला है, जिसमें अनुभवों के आधार पर हम शिक्षा प्राप्त करते हैं। अपना सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है। ‘इदं राष्ट्राय इदन्न मम’ मेरा यह जीवन राष्ट्र के लिए है। गृहस्थ एक तपोवन है, जिसमें संयम, सेवा और सहिष्णुता की साधना करनी पड़ती है। जो व्यक्ति आचरण की पोथी को नहीं पढता, उसके पृष्ठों को नहीं पलटता, वह भला दूसरों का क्या भला कर पायेगा। उनसे कभी मित्रता न कर, जो तुमसे बेहतर नहीं। कुमति व कुसंगति को छोड़ अगर सुमति व सुसंगति को बढाते जायेंगे तो एक दिन सुमार्ग को आप अवश्य पा लेंगे। अस्वस्थ मन से उत्पन्न कार्य भी अस्वस्थ होंगे। आयुर्वेद हमारी मिट्टी हमारी संस्कृति व प्रकृती से जुड़ी हुई निरापद चिकित्सा पद्धति है। ऊद्यम ही सफलता की कुंजी है। अज्ञान, अंधकार, अनाचार और दुराग्रह के माहौल से निकलकर हमें समुद्र में खड़े स्तंभों की तरह एकाकी खड़े होना चाहिये। भीतर का ईमान, बाहर का भगवान इन दो को मज़बूती से पकड़ें और विवेक तथा औचित्य के दो पग बढ़ाते हुये लक्ष्य की ओर एकाकी आगे बढ़ें तो इसमें ही सच्चा शौर्य, पराक्रम है। भले ही लोग उपहास उड़ाएं या असहयोगी, विरोधी रुख़ बनाए रहें। ऊंचे उद्देश्य का निर्धारण करने वाला ही उज्ज्वल भविष्य को देखता है। एक शेर को भी मक्खियों से अपनी रक्षा करनी पड़ती है। कोई भी कठिनाई क्यों न हो, अगर हम सचमुच शान्त रहें तो समाधान मिल जाएगा। आहार से मनुष्य का स्वभाव और प्रकृति तय होती है, शाकाहार से स्वभाव शांत रहता है, मांसाहार मनुष्य को उग्र बनाता है। आत्मबल ही इस संसार का सबसे बड़ा बल है। ऊँचे उठो, प्रसुप्त को जगाओं, जो महान् है उसका अवलम्बन करो ओर आगे बढ़ो। ठगना बुरी बात है, पर ठगाना उससे कम बुरा नहीं है। आत्म निर्माण ही युग निर्माण है। जहाँ मैं और मेरा जुड़ जाता है, वहाँ ममता, प्रेम, करुणा एवं समर्पण होते हैं। जीवन और मृत्यु में, सुख और दुःख मे ईश्वर समान रूप से विद्यमान है। समस्त विश्व ईश्वर से पूर्ण हैं। अपने नेत्र खोलों और उसे देखों। एक बार लक्ष्य निर्धारित करने के बाद बाधाओं और व्यवधानों के भय से उसे छोड़ देना कायरता है। इस कायरता का कलंक किसी भी सत्पुरुष को नहीं लेना चाहिए। गृहसि एक तपोवन है जिसमें संयम, सेवा, त्याग और सहिष्णुता की साधना करनी पड़ती है। असफलताओं की कसौटी पर ही मनुष्य के धैर्य, साहस तथा लगनशील की परख होती है। जो इसी कसौटी पर खरा उतरता है, वही वास्तव में सच्चा पुरुषार्थी है। ईर्ष्या आदमी को उसी तरह खा जाती है, जैसे कपड़े को कीड़ा। अच्छाई का अभिमान बुराई की जड़ है। आत्मा का परिष्कृत रूप ही परमात्मा है। खरे बनिये, खरा काम कीजिए और खरी बात कहिए। इससे आपका हृदय हल्का रहेगा। कुचक्र, छद्‌म और आतंक के बलबूते उपार्जित की गई सफलताएँ जादू के तमाशे में हथेली पर सरसों जमाने जैसे चमत्कार दिखाकर तिरोहित हो जाती हैं। बिना जड़ का पेड़ कब तक टिकेगा और किस प्रकार फलेगा-फूलेगा। इंसान को आंका जाता है अपने काम से। जब काम व उत्तम विचार मिलकर काम करें तो मुख पर एक नया – सा, अलग – सा तेज़ आ जाता है। उनकी प्रशंसा करो जो धर्म पर दृढ़ हैं। उनके गुणगान न करो, जिनने अनीति से सफलता प्राप्त की। जीवन का हर क्षण उज्ज्वल भविष्य की संभावना लेकर आता है। आत्मानुभूति यह भी होनी चाहिए कि सबसे बड़ी पदवी इस संसार में मार्गदर्शक की है। अर्जुन की तरह आप अपना चित्त केवल लक्ष्य पर केन्द्रित करें, एकाग्रता ही आपको सफलता दिलायेगी। जब तक आत्मविश्वास रूपी सेनापति आगे नहीं बढ़ता तब तक सब शक्तियाँ चुपचाप खड़ी उसका मुँह ताकती रहती हैं। अधिकार जताने से अधिकार सिद्ध नहीं होता। जो हमारे पास है, वह हमारे उपयोग, उपभोग के लिए है यही असुर भावना है। जिसका हृदय पवित्र है, उसे अपवित्रता छू तक नहीं सकता। जब आगे बढ़ना कठिन होता है, तब कठिन परिश्रमी ही आगे बढ़ता है। खेती, पाती, बीनती, औ घोड़े की तंग । अपने हाथ संवारिये चाहे लाख लोग हो संग ।। खेती करना, पत्र लिखना और पढ़ना, तथा घोड़ा या जिस वाहन पर सवारी करनी हो उसकी जॉंच और तैयारी मनुष्‍य को स्‍वयं ही खुद करना चाहिये भले ही लाखों लोग साथ हों और अनेकों सेवक हों, वरना मनुष्‍य का नुकसान तय शुदा है। जिस प्रकार हिमालय का वक्ष चीरकर निकलने वाली गंगा अपने प्रियतम समुद्र से मिलने का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए तीर की तरह बहती-सनसनाती बढ़ती चली जाती है और उसक मार्ग रोकने वाले चट्टान चूर-चूर होते चले जाते हैं उसी प्रकार पुषार्थी मनुष्य अपने लक्ष्य को अपनी तत्परता एवं प्रखरता के आधार पर प्राप्त कर सकता है। खुद साफ़ रहो, सुरक्षित रहो और औरों को भी रोगों से बचाओं। कई बच्चे हज़ारों मील दूर बैठे भी माता – पिता से दूर नहीं होते और कई घर में साथ रहते हुई भी हज़ारों मील दूर होते हैं। उत्कृष्ट जीवन का स्वरूप है- दूसरों के प्रति नम्र और अपने प्रति कठोर होना। ग़लती को ढूढना, मानना और सुधारना ही मनुष्य का बड़प्पन है। आशावाद और ईश्वरवाद एक ही रहस्य के दो नाम हैं। जो बच्चों को सिखाते हैं, उन पर बड़े खुद अमल करें, तो यह संसार स्वर्ग बन जाय। जिनकी तुम प्रशंसा करते हो, उनके गुणों को अपनाओ और स्वयं भी प्रशंसा के योग्य बनो। करना तो बड़ा काम, नहीं तो बैठे रहना, यह दुराग्रह मूर्खतापूर्ण है। जीवन के आनन्द गौरव के साथ, सम्मान के साथ और स्वाभिमान के साथ जीने में है। अनासक्त जीवन ही शुद्ध और सच्चा जीवन है। चिंतन और मनन बिना पुस्तक बिना साथी का स्वाध्याय-सत्संग ही है। अगर हर आदमी अपना-अपना सुधार कर ले तो, सारा संसार सुधर सकता है; क्योंकि एक-एक के जोड़ से ही संसार बनता है। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो इसलिए आत्महत्या नहीं करते क्योंकि उन्हें लगता है कि लोग क्या कहेंगे। जिस व्यक्ति का मन चंचल रहता है, उसकी कार्यसिद्धि नहीं होती। असत्‌ से सत्‌ की ओर, अंधकार से आलोक की ओर तथा विनाश से विकास की ओर बढ़ने का नाम ही साधना है। जीवन साधना का अर्थ है – अपने समय, श्रम ओर साधनों का कण-कण उपयोगी दिशा में नियोजित किये रहना। – वाङ्गमय कोई भी साधना कितनी ही ऊँची क्यों न हो, सत्य के बिना सफल नहीं हो सकती। आपकी बुद्धि ही आपका गुरु है। अपने दोषों की ओर से अनभिज्ञ रहने से बड़ा प्रमाद इस संसार में और कोई दूसरा नहीं हो सकता। अज्ञान और कुसंस्कारों से छूटना ही मुक्ति है। अपने आप को बचाने के लिये तर्क-वितर्क करना हर व्यक्ति की आदत है, जैसे क्रोधी व लोभी आदमी भी अपने बचाव में कहता मिलेगा कि, यह सब मैंने तुम्हारे कारण किया है। अपने व्यवहार में पारदर्शिता लाएँ। अगर आप में कुछ कमियाँ भी हैं, तो उन्हें छिपाएं नहीं; क्योंकि कोई भी पूर्ण नहीं है, सिवाय एक ईश्वर के। किसी से ईर्ष्या करके मनुष्य उसका तो कुछ बिगाड़ नहीं सकता है, पर अपनी निद्रा, अपना सुख और अपना सुख-संतोष अवश्य खो देता है। खुशामद बड़े-बड़ों को ले डूबती है। जो जैसा सोचता है और करता है, वह वैसा ही बन जाता है। गुण और दोष प्रत्येक व्यक्ति में होते हैं, योग से जुड़ने के बाद दोषों का शमन हो जाता है और गुणों में बढ़ोत्तरी होने लगती है। ईमानदार होने का अर्थ है – हज़ार मनकों में अलग चमकने वाला हीरा। ईमानदारी, खरा आदमी, भलेमानस-यह तीन उपाधि यदि आपको अपने अन्तस्तल से मिलती है तो समझ लीजिए कि आपने जीवन फल प्राप्त कर लिया, स्वर्ग का राज्य अपनी मुट्ठी में ले लिया। जनसंख्या की अभिवृद्धि हज़ार समस्याओं की जन्मदात्री है। जो प्रेरणा पाप बनकर अपने लिए भयानक हो उठे, उसका परित्याग कर देना ही उचित है। जहाँ भी हो, जैसे भी हो, कर्मशील रहो, भाग्य अवश्य बदलेगा; अतः मनुष्य को कर्मवादी होना चाहिए, भाग्यवादी नहीं। उद्धेश्य प्राप्ति हेतु कर्म, विचार और भावना का धु्रवीकरण करना चाहिये। गंगा की गोद, हिमालय की छाया, ऋषि विश्वामित्र की तप:स्थली, अजस्त्र प्राण ऊर्जा का उद्‌भव स्रोत गायत्री तीर्थ शान्तिकुञ्ज जैसा जीवन्त स्थान उपासना के लिए दूसरा ढूँढ सकना कठिन है। जब अंतराल हुलसता है, तो तर्कवादी के कुतर्की विचार भी ठण्डे पड़ जाते हैं। एकांगी अथवा पक्षपाती मस्तिष्क कभी भी अच्छा मित्र नहीं रहता। आरोग्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है। जैसे एक अच्छा गीत तभी सम्भव है, जब संगीत व शब्द लयबद्ध हों; वैसे ही अच्छे नेतृत्व के लिये ज़रूरी है कि आपकी करनी एवं कथनी में अंतर न हो। चिता मरे को जलाती है, पर चिन्ता तो जीवित को ही जला डालती है। जीवन का अर्थ है समय। जो जीवन से प्यार करते हों, वे आलस्य में समय न गँवाएँ। जिज्ञासा के बिना ज्ञान नहीं होता। आशावादी हर कठिनाई में अवसर देखता है, पर निराशावादी प्रत्येक अवसर में कठिनाइयाँ ही खोजता है। अतीत को कभी विस्म्रत न करो, अतीत का बोध हमें ग़लतियों से बचाता है। जिस आदर्श के व्यवहार का प्रभाव न हो, वह फिजूल और जो व्यवहार आदर्श प्रेरित न हो, वह भयंकर है। जैसा खाय अन्न, वैसा बने मन। अपवित्र विचारों से एक व्यक्ति को चरित्रहीन बनाया जा सकता है, तो शुद्ध सात्विक एवं पवित्र विचारों से उसे संस्कारवान भी बनाया जा सकता है। अपने अज्ञान को दूर करके मन-मन्दिर में ज्ञान का दीपक जलाना भगवान की सच्ची पूजा है। अपनी आन्तरिक क्षमताओं का पूरा उपयोग करें तो हम पुरुष से महापुरुष, युगपुरुष, मानव से महामानव बन सकते हैं। जो भौतिक महत्त्वाकांक्षियों की बेतरह कटौती करते हुए समय की पुकार पूरी करने के लिए बढ़े-चढ़े अनुदान प्रस्तुत करते और जिसमें महान् परम्परा छोड़ जाने की ललक उफनती रहे, यही है – प्रज्ञापुत्र शब्द का अर्थ। जो मनुष्य अपने समीप रहने वालों की तो सहायता नहीं करता, किन्तु दूरस्थ की सहायता करता है, उसका दान, दान न होकर दिखावा है। उठो, जागो और तब तक रुको नहीं जब तक मंज़िल प्राप्त न हो जाये। एक गुण समस्त दोषो को ढक लेता है। जो अपनी राह बनाता है वह सफलता के शिखर पर चढ़ता है; पर जो औरों की राह ताकता है सफलता उसकी मुँह ताकती रहती है। इस दुनिया में ना कोई ज़िन्दगी जीता है, ना कोई मरता है, सभी सिर्फ़ अपना-अपना कर्ज़ चुकाते हैं। आयुर्वेद वस्तुत: जीवन जीने का ज्ञान प्रदान करता है, अत: इसे हम धर्म से अलग नहीं कर सकते। इसका उद्देश्य भी जीवन के उद्देश्य की भाँति चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति ही है। जो न दान देता है, न भोग करता है, उसका धन स्वतः नष्ट हो जाता है। अतः योग्य पात्र को दान देना चाहिए। आत्म निर्माण का अर्थ है – भाग्य निर्माण। अपनी स्वंय की आत्मा के उत्थान से लेकर, व्यक्ति विशेष या सार्वजनिक लोकहितार्थ में निष्ठापूर्वक निष्काम भाव आसक्ति को त्याग कर समत्व भाव से किया गया प्रत्येक कर्म यज्ञ है। किसी समाज, देश या व्यक्ति का गौरव अन्याय के विरुद्ध लड़ने में ही परखा जा सकता है। जीवन उसी का सार्थक है, जो सदा परोपकार में प्रवृत्त है। अस्त-व्यस्त रीति से समय गँवाना अपने ही पैरों कुल्हाड़ी मारना है। जिस प्रकार सुगन्धित फूलों से लदा एक वृक्ष सारे जंगले को सुगन्धित कर देता है, उसी प्रकार एक सुपुत्र से वंश की शोभा बढती है। अज्ञानी वे हैं, जो कुमार्ग पर चलकर सुख की आशा करते हैं। जिनके भीतर-बाहर एक ही बात है, वही निष्कपट व्यक्ति धन्य है। अल्प ज्ञान ख़तरनाक होता है। आदर्शों के प्रति श्रद्धा और कर्तव्य के प्रति लगन का जहाँ भी उदय हो रहा है, समझना चाहिए कि वहाँ किसी देवमानव का आविर्भाव हो रहा है। अगर कुछ करना व बनाना चाहते हो तो सर्वप्रथम लक्ष्य को निर्धारित करें। वरना जीवन में उचित उपलब्धि नहीं कर पायेंगे। असत्‌ से सत्‌ की ओर, अंधकार से आलोक की और विनाश से विकास की ओर बढ़ने का नाम ही साधना है। उनकी नकल न करें जिनने अनीतिपूर्वक कमाया और दुव्र्यसनों में उड़ाया। बुद्धिमान कहलाना आवश्यक नहीं। चतुरता की दृष्टि से पक्षियों में कौवे को और जानवरों में चीते को प्रमुख गिना जाता है। ऐसे चतुरों और दुस्साहसियों की बिरादरी जेलखानों में बनी रहती है। ओछों की नकल न करें। आदर्शों की स्थापना करते समय श्रेष्ठ, सज्जनों को, उदार महामानवों को ही सामने रखें। उद्धेश्य निश्चित कर लेने से आपके मनोभाव आपके आशापूर्ण विचार आपकी महत्वकांक्षाये एक चुम्बक का काम करती हैं। वे आपके उद्धेश्य की सिद्धी को सफलता की ओर खींचती हैं। काम छोटा हो या बड़ा, उसकी उत्कृष्टता ही करने वाले का गौरव है। गायत्री उपासना का अधिकर हर किसी को है। मनुष्य मात्र बिना किसी भेदभाव के उसे कर सकता है। किसी भी व्यक्ति को मर्यादा में रखने के लिये तीन कारण ज़िम्मेदार होते हैं – व्यक्ति का मष्तिष्क, शारीरिक संरचना और कार्यप्रणाली, तभी उसके व्यक्तित्व का सामान्य विकास हो पाता है। गुणों की वृद्धि और क्षय तो अपने कर्मों से होता है। जो हम सोचते हैं सो करते हैं और जो करते हैं सो भुगतते हैं। अच्छाइयों का एक-एक तिनका चुन-चुनकर जीवन भवन का निर्माण होता है, पर बुराई का एक हलका झोंका ही उसे मिटा डालने के लिए पर्याप्त होता है। गुण, कर्म और स्वभाव का परिष्कार ही अपनी सच्ची सेवा है। गाली-गलौज, कर्कश, कटु भाषण, अश्लील मजाक, कामोत्तेजक गीत, निन्दा, चुगली, व्यंग, क्रोध एवं आवेश भरा उच्चारण, वाणी की रुग्णता प्रकट करते हैं। ऐसे शब्द दूसरों के लिए ही मर्मभेदी नहीं होते वरन्‌ अपने लिए भी घातक परिणाम उत्पन्न करते हैं। जिस राष्ट्र में विद्वान् सताए जाते हैं, वह विपत्तिग्रस्त होकर वैसे ही नष्ट हो जाता है, जैसे टूटी नौका जल में डूबकर नष्ट हो जाती है। त्रुटियाँ या भूल कैसी भी हो वे आपकी प्रगति में भयंकर रूप से बाधक होती है। आय से अधिक खर्च करने वाले तिरस्कार सहते और कष्ट भोगते हैं। किसी वस्तु की इच्छा कर लेने मात्र से ही वह हासिल नहीं होती, इच्छा पूर्ति के लिए कठोर परिश्रम व प्रयत्न आवश्यक होता हैं। जो बीत गया सो गया, जो आने वाला है वह है! लेकिन वर्तमान तो हमारे हाथ में है। अंत:मन्थन उन्हें ख़ासतौर से बेचैन करता है, जिनमें मानवीय आस्थाएँ अभी भी अपने जीवंत होने का प्रमाण देतीं और कुछ सोचने करने के लिये नोंचती-कचौटती रहती हैं। कोई अपनी चमड़ी उखाड़ कर भीतर का अंतरंग परखने लगे तो उसे मांस और हड्डियों में एक तत्व उफनता दृष्टिगोचर होगा, वह है असीम प्रेम। हमने जीवन में एक ही उपार्जन किया है प्रेम। एक ही संपदा कमाई है – प्रेम। एक ही रस हमने चखा है वह है प्रेम का। कंजूस के पास जितना होता है उतना ही वह उस के लिए तरसता है जो उस के पास नहीं होता। ईमान और भगवान ही मनुष्य के सच्चे मित्र है। ज़माना तब बदलेगा, जब हम स्वयं बदलेंगे। अपराध करने के बाद डर पैदा होता है और यही उसका दण्ड है। अपनों व अपने प्रिय से धोखा हो या बीमारी से उठे हों या राजनीति में हार गए हों या श्मशान घर में जाओ; तब जो मन होता है, वैसा मन अगर हमेशा रहे, तो मनुष्य का कल्याण हो जाए। कर्त्तव्य पालन ही जीवन का सच्चा मूल्य है। जो तुम दूसरों से चाहते हो, उसे पहले तुम स्वयं करो। अपने हित की अपेक्षा जब परहित को अधिक महत्त्व मिलेगा तभी सच्चा सतयुग प्रकट होगा। अपने आप को अधिक समझने व मानने से स्वयं अपना रास्ता बनाने वाली बात है। अपनी प्रशंसा आप न करें, यह कार्य आपके सत्कर्म स्वयं करा लेंगे। जो शत्रु बनाने से भय खाता है, उसे कभी सच्चे मित्र नहीं मिलेंगे। अपने कार्यों में व्यवस्था, नियमितता, सुन्दरता, मनोयोग तथा ज़िम्मेदार का ध्यान रखें। जीवन को विपत्तियों से धर्म ही सुरक्षित रख सकता है। जीवन चलते रहने का नाम है। सोने वाला सतयुग में रहता है, बैठने वाला द्वापर में, उठ खडा होने वाला त्रेता में, और चलने वाला सतयुग में, इसलिए चलते रहो। जो व्यक्ति शत्रु से मित्र होकर मिलता है, व धूल से धन बना सकता है। एक सत्य का आधार ही व्यक्ति को भवसागर से पार कर देता है। जो लोग पाप करते हैं उन्हें एक न एक विपत्ति सवदा घेरे ही रहती है, किन्तु जो पुण्य कर्म किया करते हैं वे सदा सुखी और प्रसन्न रह्ते हैं। काली मुरग़ी भी सफ़ेद अंडा देती है। जब तक मनुष्य का लक्ष्य भोग रहेगा, तब तक पाप की जड़ें भी विकसित होती रहेंगी। कुकर्मी से बढ़कर अभागा और कोई नहीं है; क्योंकि विपत्ति में उसका कोई साथी नहीं होता। चरित्र ही मनुष्य की श्रेष्ठता का उत्तम मापदण्ड है। अंध परम्पराएँ मनुष्य को अविवेकी बनाती हैं। अपने दोषों की ओर से अनभिज्ञ रहने से बढ़कर प्रमाद इस संसार में और कोई दूसरा नहीं हो सकता। एक ही पुत्र यदि विद्वान् और अच्छे स्वभाव वाला हो तो उससे परिवार को ऐसी ही खुशी होती है, जिस प्रकार एक चन्द्रमा के उत्पन्न होने पर काली रात चांदनी से खिल उठती है। अहंकार के स्थान पर आत्मबल बढ़ाने में लगें, तो समझना चाहिए कि ज्ञान की उपलब्धि हो गयी। जब मनुष्य दूसरों को भी अपना जीवन सार्थक करने को प्रेरित करता है तो मनुष्य के जीवन में सार्थकता आती है। जिस कर्म से किन्हीं मनुष्यों या अन्य प्राणियों को किसी भी प्रकार का कष्ट या हानि पहुंचे, वे ही दुष्कर्म कहलाते हैं। किसी का बुरा मत सोचो; क्योंकि बुरा सोचते-सोचते एक दिन अच्छा-भला व्यक्ति भी बुरे रास्ते पर चल पड़ता है। जिस में दया नहीं, उस में कोई सदगुण नहीं। जो दानदाता इस भावना से सुपात्र को दान देता है कि, तेरी (परमात्मा) वस्तु तुझे ही अर्पित है; परमात्मा उसे अपना प्रिय सखा बनाकर उसका हाथ थामकर उसके लिये धनों के द्वार खोल देता है; क्योंकि मित्रता सदैव समान विचार और कर्मों के कर्ता में ही होती है, विपरीत वालों में नहीं। ईश्वर उपासना की सर्वोपरि सब रोग नाशक औषधि का आप नित्य सेवन करें। कमज़ोरी का इलाज कमज़ोरी का विचार करना नहीं, पर शक्ति का विचार करना है। मनुष्यों को शक्ति की शिक्षा दो, जो पहले से ही उनमें हैं। आराम की जिन्गदी एक तरह से मौत का निमंत्रण है। जैसे बाहरी जीवन में युक्ति व शक्ति ज़रूरी है, वैसे ही आतंरिक जीवन के लिये मुक्ति व भक्ति आवश्यक है। असत्य से धन कमाया जा सकता है, पर जीवन का आनन्द, पवित्रता और लक्ष्य नहीं प्राप्त किया जा सकता। ईश्वर की शरण में गए बगैर साधना पूर्ण नहीं होती। जानकारी व वैदिक ज्ञान का भार तो लोग सिर पर गधे की तरह उठाये फिरते हैं और जल्द अहंकारी भी हो जाते हैं, लेकिन उसकी सरलता का आनंद नहीं उठा सकते हैं। किसी को हृदय से प्रेम करना शक्ति प्रदान करता है और किसी के द्वारा हृदय से प्रेम किया जाना साहस। जो जैसा सोचता और करता है, वह वैसा ही बन जाता है। किसी का मनोबल बढ़ाने से बढ़कर और अनुदान इस संसार में नहीं है। कुछ लोग दुर्भीति (Ph ia) के शिकार हो जाते हैं उन्हें उनकी क्षमता पर पूरा विश्वास नहीं रहता और वे सोचते हैं प्रतियोगिता के दौड़ में अन्य प्रतियोगी आगे निकल जायेंगे। अपनों के लिये गोली सह सकते हैं, लेकिन बोली नहीं सह सकते। गोली का घाव भर जाता है, पर बोली का नहीं। उत्कर्ष के साथ संघर्ष न छोड़ो! कर्म करने में ही अधिकार है, फल में नहीं। अपनी विकृत आकांक्षाओं से बढ़कर अकल्याणकारी साथी दुनिया में और कोई दूसरा नहीं। अहिंसा सर्वोत्तम धर्म है। अव्यवस्थित जीवन, जीवन का ऐसा दुरुपयोग है, जो दरिद्रता की वृद्धि कर देता है। काम को कल के लिए टालते रहना और आज का दिन आलस्य में बिताना एक बहुत बड़ी भूल है। आरामतलबी और निष्क्रियता से बढ़कर अनैतिक बात और दूसरी कोई नहीं हो सकती। कभी-कभी मौन से श्रेष्ठ उत्तर नहीं होता, यह मंत्र याद रखो और किसी बात के उत्तर नहीं देना चाहते हो तो हंसकर पूछो- आप यह क्यों जानना चाहते हों? अपने देश का यह दुर्भाग्य है कि आज़ादी के बाद देश और समाज के लिए नि:स्वार्थ भाव से खपने वाले सृजेताओं की कमी रही है। आस्तिकता का अर्थ है- ईश्वर विश्वास और ईश्वर विश्वास का अर्थ है एक ऐसी न्यायकारी सत्ता के अस्तित्व को स्वीकार करना जो सर्वव्यापी है और कर्मफल के अनुरूप हमें गिरने एवं उठने का अवसर प्रस्तुत करती है। इस युग की सबसे बड़ी शक्ति शस्त्र नहीं, सद्‌विचार है। जब तक तुम स्वयं अपने अज्ञान को दूर करने के लिए कटिबद्ध नहीं होत, तब तक कोई तुम्हारा उद्धार नहीं कर सकता। एकाग्रता से ही विजय मिलती है। ‘अखण्ड ज्योति’ हमारी वाणी है। जो उसे पढ़ते हैं, वे ही हमारी प्रेरणाओं से परिचित होते हैं। कर्म करनी ही उपासना करना है, विजय प्राप्त करनी ही त्याग करना है। स्वयं जीवन ही धर्म है, इसे प्राप्त करना और अधिकार रखना उतना ही कठोर है जितना कि इसका त्याग करना और विमुख होना। घृणा करने वाला निन्दा, द्वेष, ईर्ष्या करने वाले व्यक्ति को यह डर भी हमेशा सताये रहता है, कि जिससे मैं घृणा करता हूँ, कहीं वह भी मेरी निन्दा व मुझसे घृणा न करना शुरू कर दे। जो मन की शक्ति के बादशाह होते हैं, उनके चरणों पर संसार नतमस्तक होता है। उत्तम पुस्तकें जाग्रत्‌ देवता हैं। उनके अध्ययन-मनन-चिंतन के द्वारा पूजा करने पर तत्काल ही वरदान पाया जा सकता है। किसी बेईमानी का कोई सच्चा मित्र नहीं होता। चरित्रवान्‌ व्यक्ति ही किसी राष्ट्र की वास्तविक सम्पदा है। जो टूटे को बनाना, रूठे को मनाना जानता है, वही बुद्धिमान है। उत्तम ज्ञान और सद्‌विचार कभी भी नष्ट नहीं होते हैं। उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्ति होने तक मत रुको। किसी महान् उद्देश्य को लेकर न चलना उतनी लज्जा की बात नहीं होती, जितनी कि चलने के बाद कठिनाइयों के भय से रुक जाना अथवा पीछे हट जाना। इन्सान का जन्म ही, दर्द एवं पीडा के साथ होता है। अत: जीवन भर जीवन में काँटे रहेंगे। उन काँटों के बीच तुम्हें गुलाब के फूलों की तरह, अपने जीवन-पुष्प को विकसित करना है। ऊँचे सिद्धान्तों को अपने जीवन में धारण करने की हिम्मत का नाम है – अध्यात्म। आप अपनी अच्छाई का जितना अभिमान करोगे, उतनी ही बुराई पैदा होगी। इसलिए अच्छे बनो, पर अच्छाई का अभिमान मत करो। जिस भी भले बुरे रास्ते पर चला जाये उस पर साथी – सहयोगी तो मिलते ही रहते हैं। इस दुनिया में न भलाई की कमी है, न बुराई की। पसंदगी अपनी, हिम्मत अपनी, सहायता दुनिया की। जो कार्य प्रारंभ में कष्टदायक होते हैं, वे परिणाम में अत्यंत सुखदायक होते हैं। किसी आदर्श के लिए हँसते-हँसते जीवन का उत्सर्ग कर देना सबसे बड़ी बहादुरी है। गुण व कर्म से ही व्यक्ति स्वयं को ऊपर उठाता है। जैसे कमल कहाँ पैदा हुआ, इसमें विशेषता नहीं, बल्कि विशेषता इसमें है कि, कीचड़ में रहकर भी उसने स्वयं को ऊपर उठाया है। जिस तरह से एक ही सूखे वृक्ष में आग लगने से सारा जंगल जलकर राख हो सकता है, उसी प्रकार एक मूर्ख पुत्र सारे कुल को नष्ट कर देता है। किसी सदुद्देश्य के लिए जीवन भर कठिनाइयों से जूझते रहना ही महापुरुष होना है। जब कभी भी हारो, हार के कारणों को मत भूलो। अवसर उनकी सहायता कभी नहीं करता, जो अपनी सहायता नहीं करते। आत्मीयता को जीवित रखने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि ग़लतियों को हम उदारतापूर्वक क्षमा करना सीखें। जो विषपान कर सकता है, चाहे विष परा‍जय का हो, चाहे अपमान का, वही शंकर का भक्‍त होने योग्‍य है और उसे ही शिवत्‍व की प्राप्ति संभव है, अपमान और पराजय से विचलित होने वाले लोग शिव भक्‍त होने योग्‍य ही नहीं, ऐसे लोगों की शिव पूजा केवल पाखण्‍ड है। आँखों से देखा’ एक बार अविश्वसनीय हो सकता है किन्तु ‘अनुभव से सीका’ कभी भी अविश्वसनीय नहीं हो सकता। जीवन की सफलता के लिए यह नितांत आवश्यक है कि हम विवेकशील और दूरदर्शी बनें। अंतरंग बदलते ही बहिरंग के उलटने में देर नहीं लगती है। चिल्‍ला कर और झल्‍ला कर बातें करना, बिना सलाह मांगे सलाह देना, किसी की मजबूरी में अपनी अहमियत दर्शाना और सिद्ध करना, ये कार्य दुनिया का सबसे कमज़ोर और असहाय व्‍यक्ति करता है, जो खुद को ताकतवर समझता है और जीवन भर बेवकूफ बनता है, घृणा का पात्र बन कर दर दर की ठोकरें खाता है। जिनके अंदर ऐय्याशी, फिजूलखर्ची और विलासिता की कुर्बानी देने की हिम्मत नहीं, वे अध्यात्म से कोसों दूर हैं। अपना आदर्श उपस्थित करके ही दूसरों को सच्ची शिक्षा दी जा सकती है। चोर, उचक्के, व्यसनी, जुआरी भी अपनी बिरादरी निरंतर बढ़ाते रहते हैं । इसका एक ही कारण है कि उनका चरित्र और चिंतन एक होता है। दोनों के मिलन पर ही प्रभावोत्पादक शक्ति का उद्‌भव होता है। किंतु आदर्शों के क्षेत्र में यही सबसे बड़ी कमी है। अध्ययन, विचार, मनन, विश्वास एवं आचरण द्वार जब एक मार्ग को मज़बूति से पकड़ लिया जाता है, तो अभीष्ट उद्देश्य को प्राप्त करना बहुत सरल हो जाता है। जो व्यक्ति कभी कुछ कभी कुछ करते हैं, वे अन्तत: कहीं भी नहीं पहुँच पाते। इस संसार में अनेक विचार, अनेक आदर्श, अनेक प्रलोभन और अनेक भ्रम भरे पड़े हैं। उच्चस्तरीय महत्त्वाकांक्षा एक ही है कि अपने को इस स्तर तक सुविस्तृत बनाया जाय कि दूसरों का मार्गदर्शन कर सकना संभव हो सके। अपनी दिनचर्या में परमार्थ को स्थान दिये बिना आत्मा का निर्मल और निष्कलंक रहना संभव नहीं। कर्म भूमि पर फ़ल के लिए श्रम सबको करना पड़ता है। रब सिर्फ़ लकीरें देता है रंग हमको भरना पड़ता है। जब संकटों के बादल सिर पर मँडरा रहे हों तब भी मनुष्य को धैर्य नहीं छोड़ना चाहिए। धैर्यवान व्यक्ति भीषण परिस्थितियों में भी विजयी होते हैं। आत्मा को निर्मल बनाकर, इंद्रियों का संयम कर उसे परमात्मा के साथ मिला देने की प्रक्रिया का नाम योग है। जो सच्चाई के मार्ग पर चलता है, वह भटकता नहीं। जूँ, खटमल की तरह दूसरों पर नहीं पलना चाहिए, बल्कि अंत समय तक कार्य करते जाओ; क्योंकि गतिशीलता जीवन का आवश्यक अंग है। जो मन का ग़ुलाम है, वह ईश्वर भक्त नहीं हो सकता। जो ईश्वर भक्त है, उसे मन की ग़ुलामी न स्वीकार हो सकती है, न सहन। अपने गुण, कर्म, स्वभाव का शोधन और जीवन विकास के उच्च गुणों का अभ्यास करना ही साधना है। किसी को ग़लत मार्ग पर ले जाने वाली सलाह मत दो। जीवनोद्देश्य की खोज ही सबसे बड़ा सौभाग्य है। उसे और कहीं ढूँढ़ने की अपेक्षा अपने हृदय में ढूँढ़ना चाहिए। आज के काम कल पर मत टालिए। आर्थिक युद्ध में किसी राष्ट्र को नष्ट करने का सुनिश्चित तरीका है, उसकी मुद्रा को खोटा कर देना और किसी राष्ट्र की संस्कृति और पहचान को नष्ट करने का सुनिश्चित तरीका है, उसकी भाषा को हीन बना देना। अपने आपको जान लेने पर मनुष्य सब कुछ पा सकता है। जैसे का साथ तैसा वह भी ब्‍याज सहित व्‍यवहार करना ही सर्वोत्‍तम नीति है, शठे शाठयम और उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्‍तये के सूत्र को अमल मे लाना ही गुणकारी उपाय है। उपदेश देना सरल है, उपाय बताना कठिन। केवल ज्ञान ही एक ऐसा अक्षय तत्त्व है, जो कहीं भी, किसी अवस्था और किसी काल में भी मनुष्य का साथ नहीं छोड़ता। उत्कृष्टता का दृष्टिकोण ही जीवन को सुरक्षित एवं सुविकसित बनाने एकमात्र उपाय है। जो तुम दूसरे से चाहते हो, उसे पहले स्वयं करो। आनन्द प्राप्ति हेतु त्याग व संयम के पथ पर बढ़ना होगा। आज का मनुष्य अपने अभाव से इतना दुखी नहीं है, जितना दूसरे के प्रभाव से होता है। किसी के दुर्वचन कहने पर क्रोध न करना क्षमा कहलाता है। क्रोध बुद्धि को समाप्त कर देता है। जब क्रोध समाप्त हो जाता है तो बाद में बहुत पश्चाताप होता है। जिसकी इन्द्रियाँ वश में हैं, उसकी बुद्धि स्थिर है। जीवन एक पुष्प है और प्रेम उसका मधु है। जाग्रत आत्माएँ कभी चुप बैठी ही नहीं रह सकतीं। उनके अर्जित संस्कार व सत्साहस युग की पुकार सुनकर उन्हें आगे बढ़ने व अवतार के प्रयोजनों हेतु क्रियाशील होने को बाध्य कर देते हैं। अपने दोषों से सावधान रहो; क्योंकि यही ऐसे दुश्मन है, जो छिपकर वार करते हैं। जीवन के प्रकाशवान्‌ क्षण वे हैं, जो सत्कर्म करते हुए बीते। ज़्यादा पैसा कमाने की इच्छा से ग्रसित मनुष्य झूठ, कपट, बेईमानी, धोखेबाज़ी, विश्वाघात आदि का सहारा लेकर परिणाम में दुःख ही प्राप्त करता है। उसकी जय कभी नहीं हो सकती, जिसका दिल पवित्र नहीं है। कल की असफलता वह बीज है जिसे आज बोने पर आने वाले कल में सफलता का फल मिलता है। आत्म-विश्वास जीवन नैया का एक शक्तिशाली समर्थ मल्लाह है, जो डूबती नाव को पतवार के सहारे ही नहीं, वरन्‌ अपने हाथों से उठाकर प्रबल लहरों से पार कर देता है। जो संसार से ग्रसित रहता है, वह बुद्धू तो हो सकता; लेकिन बुद्ध नहीं हो सकता। असफलता केवल यह सिद्ध करती है कि सफलता का प्रयास पूरे मन से नहीं हुआ। क्रोध का प्रत्येक मिनट आपकी साठ सेकण्डों की खुशी को छीन लेता है। जो क्षमा करता है और बीती बातों को भूल जाता है, उसे ईश्वर पुरस्कार देता है। अभागा वह है, जो कृतज्ञता को भूल जाता है। क्या तुम नहीं अनुभव करते कि दूसरों के ऊपर निर्भर रहना बुद्धिमानी नहीं है। बुद्धिमान व्यक्ति को अपने ही पैरों पर दृढता पूर्वक खडा होकर कार्य करना चहिए। धीरे धीरे सब कुछ ठीक हो जाएगा। आत्म-निर्माण का ही दूसरा नाम भाग्य निर्माण है। जिसने शिष्टता और नम्रता नहीं सीखी, उनका बहुत सीखना भी व्यर्थ रहा। इतराने में नहीं, श्रेष्ठ कार्यों में ऐश्वर्य का उपयोग करो। खुश होने का यह अर्थ नहीं है कि जीवन में पूर्णता है बल्कि इसका अर्थ है कि आपने जीवन की अपूर्णता से परे रहने का निश्चय कर लिया है। जिसका मन-बुद्धि परमात्मा के प्रति वफ़ादार है, उसे मन की शांति अवश्य मिलती है। अपने आपको सुधार लेने पर संसार की हर बुराई सुधर सकती है। झूठे मोती की आब और ताब उसे सच्चा नहीं बना सकती। जब तक मानव के मन में मैं (अहंकार) है, तब तक वह शुभ कार्य नहीं कर सकता, क्योंकि मैं स्वार्थपूर्ति करता है और शुद्धता से दूर रहता है। कठिन परिश्रम का कोई भी विकल्प नहीं होता। गुण ही नारी का सच्चा आभूषण है। अपनी बुद्धि का अभिमान ही शास्त्रों की, सन्तों की बातों को अन्त: करण में टिकने नहीं देता। जब भी आपको महसूस हो, आपसे ग़लती हो गयी है, उसे सुधारने के उपाय तुरंत शुरू करो। जो असत्य को अपनाता है, वह सब कुछ खो बैठता है। इतिहास और पुराण साक्षी हैं कि मनुष्य के संकल्प के सम्मुख देव-दानव सभी पराजित हो जाते हैं। अतीत की स्म्रतियाँ और भविष्य की कल्पनाएँ मनुष्य को वर्तमान जीवन का सही आनंद नहीं लेने देतीं। वर्तमान में सही जीने के लिये आवश्य है अनुकूलता और प्रतिकूलता में सम रहना। उतावला आदमी सफलता के अवसरों को बहुधा हाथ से गँवा ही देता है। अहंकार छोड़े बिना सच्चा प्रेम नहीं किया जा सकता। ईश्वर एक ही समय में सर्वत्र उपस्थित नहीं हो सकता था , अतः उसने ‘मां’ बनाया। ईर्ष्या न करें, प्रेरणा ग्रहण करें। कायर मृत्यु से पूर्व अनेकों बार मर चुकता है, जबकि बहादुर को मरने के दिन ही मरना पड़ता है। अपनी महान् संभावनाओं पर अटूट विश्वास ही सच्ची आस्तिकता है। जिसने जीवन में स्नेह, सौजन्य का समुचित समावेश कर लिया, सचमुच वही सबसे बड़ा कलाकार है। इस संसार में कमज़ोर रहना सबसे बड़ा अपराध है। जिसके पास कुछ भी कर्ज़ नहीं, वह बड़ा मालदार है। किसी को आत्म-विश्वास जगाने वाला प्रोत्साहन देना ही सर्वोत्तम उपहार है। अपनों के चले जाने का दुःख असहनीय होता है, जिसे भुला देना इतना आसान नहीं है; लेकिन ऐसे भी मत खो जाओ कि खुद का भी होश ना रहे। अपनी भूलों को स्वीकारना उस झाडू के समान है जो गंदगी को साफ़ कर उस स्थान को पहले से अधिक स्वच्छ कर देती है। चरित्रवान व्यक्ति ही सच्चे अर्थों में भगवद्‌ भक्त हैं। ईश्वर अर्थात्‌ मानवी गरिमा के अनुरूप अपने को ढालने के लिए विवश करने की व्यवस्था। उदारता, सेवा, सहानुभूति और मधुरता का व्यवहार ही परमार्थ का सार है। जो मिला है और मिल रहा है, उससे संतुष्ट रहो। जीवन एक परीक्षा है। उसे परीक्षा की कसौटी पर सर्वत्र कसा जाता है। जब-जब हृदय की विशालता बढ़ती है, तो मन प्रफुल्लित होकर आनंद की प्राप्ति कर्ता है और जब संकीर्ण मन होता है, तो व्यक्ति दुःख भोगता है। जिस तेज़ी से विज्ञान की प्रगति के साथ उपभोग की वस्तुएँ प्रचुर मात्रा में बनना शुरू हो गयी हैं, वे मनुष्य के लिये पिंजरा बन रही हैं। कुसंगी है कोयलों की तरह, यदि गर्म होंगे तो जलाएँगे और ठंडे होंगे तो हाथ और वस्त्र काले करेंगे। जीवन की माप जीवन में ली गई साँसों की संख्या से नहीं होती बल्कि उन क्षणों की संख्या से होती है जो हमारी साँसें रोक देती हैं। आत्मा की पुकार अनसुनी न करें। उच्चस्तरीय स्वार्थ का नाम ही परमार्थ है। परमार्थ के लिये त्याग आवश्यक है पर यह एक बहुत बडा निवेश है जो घाटा उठाने की स्थिति में नहीं आने देता। अपना मूल्य समझो और विश्वास करो कि तुम संसार के सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हो। अश्लील, अभद्र अथवा भोगप्रधान मनोरंजन पतनकारी होते हैं। कामना करने वाले कभी भक्त नहीं हो सकते। भक्त शब्द के साथ में भगवान की इच्छा पूरी करने की बात जुड़ी रहती है। अनीति अपनाने से बढ़कर जीवन का तिरस्कार और कुछ हो ही नहीं सकता। असंयम की राह पर चलने से आनन्द की मंज़िल नहीं मिलती। आत्म-निरीक्षण इस संसार का सबसे कठिन, किन्तु करने योग्य कर्म है। चेतना के भावपक्ष को उच्चस्तरीय उत्कृष्टता के साथ एकात्म कर देने को ‘योग’ कहते हैं। अगर आपके पास जेब में सिर्फ दो पैसे हों तो एक पैसे से रोटी ख़रीदें तथा दूसरे से गुलाब की एक कली। इन दोनों व्यक्तियों के गले में पत्थर बाँधकर पानी में डूबा देना चाहिए- एक दान न करने वाला धनिक तथा दूसरा परिश्रम न करने वाला दरिद्र। कीर्ति वीरोचित कार्यों की सुगन्ध है। जैसा अन्न, वैसा मन। असफलता मुझे स्वीकार्य है किन्तु प्रयास न करना स्वीकार्य नहीं है। आलस्य से आराम मिल सकता है, पर यह आराम बड़ा महँगा पड़ता है। कर्म ही पूजा है और कर्त्तव्य पालन भक्ति है। किसी का अमंगल चाहने पर स्वयं पहले अपना अमंगल होता है। जिस आदर्श के व्यवहार का प्रभाव न हो, वह फिजूल है और जो व्यवहार आदर्श प्रेरित न हो, वह भयंकर है। अवतार व्यक्ति के रूप में नहीं, आदर्शवादी प्रवाह के रूप में होते हैं और हर जीवन्त आत्मा को युगधर्म निबाहने के लिए बाधित करते हैं। जहाँ वाद – विवाद होता है, वहां श्रद्धा के फूल नहीं खिल सकते और जहाँ जीवन में आस्था व श्रद्धा को महत्त्व न मिले, वहां जीवन नीरस हो जाता है। जिसके पास कुछ नहीं रहता, उसके पास भगवान रहता है। एक झूठ छिपाने के लिये दस झूठ बोलने पडते हैं। चरित्र का अर्थ है – अपने महान् मानवीय उत्तरदायित्वों का महत्त्व समझना और उसका हर कीमत पर निर्वाह करना। आत्मा की उत्कृष्टता संसार की सबसे बड़ी सिद्धि है। अवसर की प्रतीक्षा में मत बैठों। आज का अवसर ही सर्वोत्तम है। इस बात पर संदेह नहीं करना चाहिये कि विचारवान और उत्साही व्यक्तियों का एक छोटा सा समूह इस संसार को बदल सकता है। वास्तव मे इस संसार को छोटे से समूह ने ही बदला है। जीवन भगवान की सबसे बड़ी सौगात है। मनुष्य का जन्म हमारे लिए भगवान का सबसे बड़ा उपहार है। जो मनुष्य मन, वचन और कर्म से, ग़लत कार्यों से बचा रहता है, वह स्वयं भी प्रसन्न रहता है।। ग़लती करना मनुष्यत्व है और क्षमा करना देवत्व। जाग्रत्‌ आत्मा का लक्षण है सत्यम्‌, शिवम्‌ और सुन्दरम्‌ की ओर उन्मुखता। झूठ इन्सान को अंदर से खोखला बना देता है। जीवन एक परख और कसौटी है जिसमें अपनी सामथ्र्य का परिचय देने पर ही कुछ पा सकना संभव होता है। उपासना सच्ची तभी है, जब जीवन में ईश्वर घुल जाए। किसी महान् उद्देश्य को न चलना उतनी लज्जा की बात नहीं होती, जितनी कि चलने के बाद कठिनाइयों के भय से पीछे हट जाना। अवसर की प्रतीक्षा में मत बैठो। आज का अवसर ही सर्वोत्तम है। आत्मा का परिष्कृत रूप ही परमात्मा है। – वाङ्गमय इन दिनों जाग्रत्‌ आत्मा मूक दर्शक बनकर न रहे। बिना किसी के समर्थन, विरोध की परवाह किए आत्म-प्रेरणा के सहारे स्वयंमेव अपनी दिशाधारा का निर्माण-निर्धारण करें। डरपोक और शक्तिहीन मनुष्य भाग्य के पीछे चलता है। जब मेरा अन्तर्जागरण हुआ, तो मैंने स्वयं को संबोधि वृक्ष की छाया में पूर्ण तृप्त पाया। अन्याय में सहयोग देना, अन्याय के ही समान है। आसक्ति संकुचित वृत्ति है। ऊपर की ओर चढ़ना कभी भी दूसरों को पैर के नीचे दबाकर नहीं किया जा सकता वरना ऐसी सफलता भूत बनकर आपका भविष्य बिगाड़ देगी। Prev Post काश ! कि आप आकर संभाल लो हमे – Good Morning Quotes Next Post संसार की चाबियां You May Also Like image यदि विश्व में जो कुछ है, यह सब ईश्वर से व्याप्त है | In Mahatma Gandhi image हम सब उसी मिट्टी से बने हैं, हम सब विशाल मानव परिवार के सदस्य हैं *वनिता कासनियां पंजाब* 🌷🌷🙏🙏🌷🌷

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  सहायता केन्द्रघोषणाएं वनिता पंजाब COVID-19 को ध्यान में रखते हुए, Google सहायता विशेषज्ञों को स्वास्थ्य संबंधी खतरों से बचाने के लिए हमने कुछ ज़रूरी कदम उठाए हैं. इसलिए, हो सकता है कि कुछ सहायता सुविधाएं उपलब्ध न हों या फिर उनमें देरी हो सकती है. असुविधा के लिए हमें खेद है. धैर्य बनाए रखने के लिए आपका धन्यवाद. स्थिति में सुधार होते ही इस मैसेज को अपडेट कर दिया जाएगा. URL वनिता कासनियां पंजाब इंटरनेट पर किसी वेबपृष्ठ या फ़ाइल का स्थान. Google के कुछ URL में www.google.com, adwords.googleblog.com और http://www.google.com/intl/en/privacy शामिल होते हैं. जिस प्रकार भवनों और मकानों के पते होते हैं, उसी प्रकार वेबपृष्ठों के भी अनन्य पते होते हैं, जिनकी सहायता से लोग उन तक पहुंच सकते हैं. इंटरनेट पर इन पतों को URL (युनिफ़ॉर्म रिसोर्स लोकेटर) पता कहा जाता है. कोई वेबपृष्ठ URL—जैसे http://support.google.com/google-ads—एक डोमेन नाम (यहां यह "google" है), एक डोमेन श्रेणी (".com") और उप डोमेन ("support") और पथ ("/google-ads") जैसे अन्य घटकों से ...
 ਫ਼ਾਇਦਾ ਵਿਚਾਰ - ਦੋਸਤ ਵਿਚਾਰ | ਅੱਚੀ ਵੀਚਾਰ ਹਿੰਦੀ ਵਿਚ ਲੋਕ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹਨ ਕਿ ਤੁਹਾਨੂੰ ਜ਼ਰੂਰ ਦੱਸੋ, ਪਰ ਇਹ ਵੀ ਸੱਚ ਹੈ ਕਿ ਕਦੇ ਕਦੇ ਤੁਸੀਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪਸੰਦ ਨਹੀਂ ਕਰਦੇ. Vnita kasnia Punjab ਜਦੋਂ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਖਵਾਸੀ ਭਾਵਨਾ ਨੂੰ ਮਹਿਸੂਸ ਕਰੋ ਤਾਂ ਯਕੀਨ ਕਰ ਲੋ, ਕਿਤੇ ਕੋਈ ਨਹੀਂ, ਜਿੱਥੇ ਵੀ ਨਹੀਂ - ਤੁਸੀਂ ਦੁਆ ਕਰ ਰਹੇ ਹੋ. ਵੀ ਸਾਰਿਆਂ ਤੋਂ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਹੀ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਹੈ. ਗਿਆਨ ਧੰਨ ਧੰਨ ਹੈ ਅਤੇ ਸਾਡੀ ਰੱਖਿਆ ਕਰੋਨੀ ਰੱਖਣਾ ਹੈ ਅਤੇ ਗਿਆਨ ਤੁਹਾਡੀ ਰੱਖਿਆ ਹੈ। ਜੀਂਦਗੀ ਵਿੱਚ ਦੋਸਤਾਂ ਦੀ ਭਾਲ ਕਰੋ, ਸਵੈ-ਦੋਸਤ ਬਣ ਜਾਓ. ਤੁਸੀਂ ਮਿਲਕ ਹੋਵੋਗੇ ਕਿਸੇ ਦੀ ਵੀ ਪੂਰੀ ਖੋਜ ਕਰੋ. ਹੋ, ਤਾਂ ਇਕੋ ਜਿਹਾ ਕਰਨਾ ਹੈ; जो क्योंकि जो........... -.......................... ਭੁੱਲ ਜਾਓ ਪ੍ਰਕਿਰਤੀ ਹੈ, ਮੰਨਣਾ ਸਭਿਆਚਾਰ ਹੈ, ਸੁਧਾਰ ਲੈਣਾ ਹੈ. ਉਪਲਬਧਤਾ ਇਕ ਅਜਿਹੀ ਚੀਜ਼ ਹੈ ਜੋ ਦਿਲ ਵਿਚ ਆਤਮ-ਨਿਰਭਰ ਭਾਵਨਾ ਅਤੇ ਆਤਮ ਨਿਰਮਾਣ ਪੈਦਾ ਕਰਦੀ ਹੈ. ਕੀ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹੈ? ਕੀ कर रहा है? ਕੀ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹੈ? ਇਹ ਸਾਰੇ ਤੁਸੀਂ ਜੀਣਾ ਦੂਰ ਰਹਿ ਜਾਓਗੇ ਖੁਸ਼ ਰਹੋ. ਸਾਡੀ ਵਿਹਾਰਕ ਗਣਿਤ ਨੂੰ 'ਸ਼ੂਨਯ' ਮੰਨਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਕਿ ਖੁਦ ਕੋਈ ਕੀਮਤ ਨਹੀਂ ਰੱਖਣਾ ਪਰ ਦੂਜਿਆਂ ਦੇ ਨਾਲ ਜੁੜਨਾ, 'ਕੀਮਤ' ਵਧਾਉਣਾ ਹੈ. ਇਸ ਦੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਣ ਕਵੀ ਕਦੇ ਕਦੇ ਨਹੀਂ ਕਰਦੇ, ਲੋਕ ਕਾਟੀ ਪਤੰਗਾਂ ਦੇ ਜਮਕਰ ਲੁਟਾਏ...