मानव की जब अचानक मस्तिष्क के किसी हिस्से मे रक्त आपूर्ति रुक जाती है या मस्तिष्क की कोई रक्त वाहिका फट जाती है और मस्तिष्क की कोशिकाओं के आस-पास की जगह में खून भर जाता है, तब पक्षाघात होता है। जिस तरह किसी व्यक्ति के हृदय में जब रक्त आपूर्ति का अभाव होता तो कहा जाता है कि उसे दिल का दौरा पड़ गया है उसी तरह जब मस्तिष्क में रक्त प्रवाह कम हो जाता है या मस्तिष्क में अचानक रक्तस्राव होने लगता है तो कहा जाता है कि आदमी को "मस्तिष्क का दौरा’’ पड़ गया है। (1–2)जब मस्तिष्क में रक्तप्रवाह बाधित होता है तो मस्तिष्क की कुछ कोशिकाएं तुरंत मर जाती हैं और शेष कोशिकाओं के मरने का ख़तरा पैदा हो जाता है। जिस व्यक्ति के मस्तिष्क के बायें गोलार्द्ध (हेमिस्फीयर) में पक्षघात लगता है उसके दायें अंग मे लकवा मारता है या अर्धांग होता है और जिस व्यक्ति के मस्तिष्क के दायें हेमिस्फ़ीयर में आघात लगता है उसका बायां अंग अर्धांग का शिकार होता है।पक्षाघात के लक्षण (Vnita) आसानी से पहचान में आ जाते हैं: आकस्मिक स्तब्धता या शरीर के एक हिस्से में; कमज़ोरी, आकस्मिक उलझन या बोलने, किसी की कही बात समझने, एक या दोनों आंखों से देखने में आकस्मिक तकलीफ़, अचानक या सामंजस्य का अभाव, बिना किसी ज्ञात कारण के अचानक सरदर्द या चक्कर आना।ये लक्षण संकेत देते हैं कि पक्षाघात हो गया है और तत्काल चिकित्सकीय देखभाल की ज़रूरत है।हमारे देश में हर साल 15-16 लाख लोग इसकी चपेट में आते हैं। सही जानकारी न होने या समय पर इलाज न मिलने से इनमें से एक-तिहाई लोगों की मौत हो जाती है, जबकि करीब एक-तिहाई लोग अपंग हो जाते हैं। करीब एक-तिहाई लोग वक्त पर सही इलाज मिलने से पूरी तरह ठीक हो जाते हैं।जनता को पक्षाघात के समय आपात चिकित्सा का सहारा लेने की शिक्षा देना अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि पक्षाघात के लक्षण दिखने शुरू होने के क्षण से आपात संपर्क के क्षण तक बीतने वाला हर पल चिकित्सकीय हस्तक्षेप की सीमित संभावना को कम करता जाता है।इसके इलाज में अटैक के बाद के 6 घंटे बहुत अहम होते हैं। इलाज में देरी होने से अपंग होने से लेकर जान जाने तक की आशंका रहती है।पक्षाघात के 10 प्रतिशत मरीज़ लगभग पूरी तरह ठीक हो जाते हैं।25 प्रतिशत कुछ मामूली विकृति के साथ ठीक हो जाते हैं।40 प्रतिशत हल्की से लेकर गंभीर विकलांगता के शिकार हो जाते हैं और उन्हें विशेष देख-रेख की ज़रूरत पड़ती है।10 प्रतिशत की नर्सिंगहोम में, या दीर्घकालिक देख-रेख करने वाली दूसरी सुविधाओं में रख कर उनकी देख-भाल करनी होती है।पक्षाघात जन्य विकलांगताओं में लकवा, संज्ञानात्मक कमियां, बोलने में परेशानी, भावानात्मक परेशानियां, दैन्य दिन जीवन की समस्याएं और दर्द शामिल होता है।पक्षाघात भावनात्मक समस्याएं भी पैदा कर सकता है। पक्षाघात के मरीज़ों को अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखने में परेशानी होती है या वे ख़ास स्थितियों में अनुचित भावनाएं व्यक्त कर सकते हैं। कई पक्षाघात पीड़ितों में अवसाद भी एक आम विकलांगता है । (1)जोख़िम के कारक: उच्च रक्तचाप, हृदयरोग, डाइबिटीज़ ,मोटापा और - बुढ़ापा के अलावा धूम्रपान पक्षाघात का जोख़िम पैदा करने वाले सबसे महत्वपूर्ण कारक हैं। इनके अलावा अल्कोहल का अत्यधिक सेवन, उच्च रक्त कॉलेस्टेराल स्तर, नशीली दवाइयों का सेवन, आनुवांशिक या जन्मजात परिस्थितियां, विशेषकर रक्त परिसंचारी तंत्र के विकार। (1)बढ़ती उम्र के साथ डायबिटिक , हृदय रोग और ब्लड प्रेशर के साइड इफ़ेक्ट भी दिखने लगते है और यही कारण है बुढ़ापे में पक्षाघात ( लकवा) की संभावनाए भी बढ़ जाती है। इसीलिए इसे बुढ़ापे का रोग माना जाता है, मगर सत्य यह है कि भारत में अधेड़ उम्र के मरीज ज्यादा हैं। इसकी वजह जिनेटिक और खराब लाइफस्टाइल है। भारत में आमतौर पर 55-60 साल की उम्र में खतरा बढ़ना शुरू हो जाता है, जबकि पश्चिमी देशों में इसके -चपेट में आने की औसत उम्र 70-75 साल है। (3)कैसे कर सकते हैं खतरा कम- बचाव के लिए हमें 20-25 साल की उम्र से ही सावधानियां बरतनी चाहिए। अगर हार्ट की बीमारी है तो उसकी उचित जांच और इलाज कराएं। 20-25 साल की उम्र से ही नियमित रूप से ब्लड प्रेशर चेक कराएं। डॉक्टर की सलाह पर खाने में परहेज करें और एक्सरसाइज बढ़ाएं।- अगर आपका ब्लड प्रेशर 120/ 80 है तो अच्छा है। ज्यादा है तो 135/85 से कम लाना लक्ष्य होना चाहिए।- अगर ब्लड प्रेशर की कोई दवा लेते हैं तो उसे नियमित रूप से लें। ब्लड प्रेशर ठीक जो जाए, तब भी डॉक्टर की सलाह पर दवा लेते रहें, वरना यह फिर बढ़ जाएगा। डॉक्टर से बिना पूछे न कोई दवा लें, न ही बंद करें।- 35-40 साल की उम्र के बाद साल में एक बार शुगर और कॉलेस्ट्रॉल की जांच जरूर कराएं। अगर बढ़ा हुआ हो तो डॉक्टर की सलाह से दवा लें और परहेज करें।- वजन कंट्रोल में रखें। 18 से कम और 25 से ज्यादा बॉडी मास इंडेक्स यानी बीएमआई (BMI) न हो। कोई बीमारी न हो तो भी 40 की उम्र के बाद ज्यादा नमक और फैट वाली चीजें कम खाएं।ऐसे बचे रहें लकवे सेएक्सरसाइज है जरूरी: नियमित रूप से एक्सरसाइज और प्राणायाम करें। रोजाना कम-से-कम तीन से चार किमी ब्रिस्क वॉक करें। 10 मिनट में एक किलोमीटर की रफ्तार से 30-40 मिनट रोज चलें। साइक्लिंग, स्वीमिंग, जॉगिंग भी बढ़िया एक्सरसाइज हैं। • आधा घंटा प्राणायाम और ध्यान जरूर करें। इनसे मन शांत रहता है।• ठंड में, खासकर जनवरी में इसका खतरा ज्यादा होता है। ऐसा अक्सर एक्सरसाइज में कमी के कारण होता है। ऐसे में घर पर ही सही, एक्सरसाइज जरूर करें।वनिता कासनियां पंजाबपरहेज जरूरी है: स्मोकिंग से तौबा करें। • शराब बिल्कुल न लें। अगर लेते हैं तो डॉक्टरी सलाह पर लें। • ज्यादा-से-ज्यादा ताजे फल और हरी सब्जियां खाएं। • नमक कम-से-कम खाना चाहिए। सलाद, रायता आदि में नमक न डालें। पैकेज्ड फूड या अचार न लें क्योंकि इनमें नमक अधिक होता है। • महीने में एक शख्स को आधा किलो से ज्यादा घी-तेल नहीं खाना चाहिए। • पानी खून के बहाव को बढ़ाता है इसलिए रोजाना कम-से-कम 8-10 गिलास पानी जरूर पिएं।रात में खाना खाने के बाद और सुबह में पैरालिसिस का अटैक ज्यादा होता है। अगर बोलने में अचानक समस्या होने लगे, शरीर का एक तरफ का हिस्सा भारी महसूस हो, चलने में दिक्कत हो, चीज उठाने में परेशानी हो, एक आंख की रोशनी कम होने लगे, चाल बिगड़ जाए तो फौरन डॉक्टर के पास जाएं। (3)images Google
मानव की जब अचानक मस्तिष्क के किसी हिस्से मे रक्त आपूर्ति रुक जाती है या मस्तिष्क की कोई रक्त वाहिका फट जाती है और मस्तिष्क की कोशिकाओं के आस-पास की जगह में खून भर जाता है, तब पक्षाघात होता है। जिस तरह किसी व्यक्ति के हृदय में जब रक्त आपूर्ति का अभाव होता तो कहा जाता है कि उसे दिल का दौरा पड़ गया है उसी तरह जब मस्तिष्क में रक्त प्रवाह कम हो जाता है या मस्तिष्क में अचानक रक्तस्राव होने लगता है तो कहा जाता है कि आदमी को "मस्तिष्क का दौरा’’ पड़ गया है। (1–2)
जब मस्तिष्क में रक्तप्रवाह बाधित होता है तो मस्तिष्क की कुछ कोशिकाएं तुरंत मर जाती हैं और शेष कोशिकाओं के मरने का ख़तरा पैदा हो जाता है। जिस व्यक्ति के मस्तिष्क के बायें गोलार्द्ध (हेमिस्फीयर) में पक्षघात लगता है उसके दायें अंग मे लकवा मारता है या अर्धांग होता है और जिस व्यक्ति के मस्तिष्क के दायें हेमिस्फ़ीयर में आघात लगता है उसका बायां अंग अर्धांग का शिकार होता है।
पक्षाघात के लक्षण (Vnita) आसानी से पहचान में आ जाते हैं: आकस्मिक स्तब्धता या शरीर के एक हिस्से में; कमज़ोरी, आकस्मिक उलझन या बोलने, किसी की कही बात समझने, एक या दोनों आंखों से देखने में आकस्मिक तकलीफ़, अचानक या सामंजस्य का अभाव, बिना किसी ज्ञात कारण के अचानक सरदर्द या चक्कर आना।
ये लक्षण संकेत देते हैं कि पक्षाघात हो गया है और तत्काल चिकित्सकीय देखभाल की ज़रूरत है।
हमारे देश में हर साल 15-16 लाख लोग इसकी चपेट में आते हैं। सही जानकारी न होने या समय पर इलाज न मिलने से इनमें से एक-तिहाई लोगों की मौत हो जाती है, जबकि करीब एक-तिहाई लोग अपंग हो जाते हैं। करीब एक-तिहाई लोग वक्त पर सही इलाज मिलने से पूरी तरह ठीक हो जाते हैं।
जनता को पक्षाघात के समय आपात चिकित्सा का सहारा लेने की शिक्षा देना अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि पक्षाघात के लक्षण दिखने शुरू होने के क्षण से आपात संपर्क के क्षण तक बीतने वाला हर पल चिकित्सकीय हस्तक्षेप की सीमित संभावना को कम करता जाता है।
इसके इलाज में अटैक के बाद के 6 घंटे बहुत अहम होते हैं। इलाज में देरी होने से अपंग होने से लेकर जान जाने तक की आशंका रहती है।
- पक्षाघात के 10 प्रतिशत मरीज़ लगभग पूरी तरह ठीक हो जाते हैं।
- 25 प्रतिशत कुछ मामूली विकृति के साथ ठीक हो जाते हैं।
- 40 प्रतिशत हल्की से लेकर गंभीर विकलांगता के शिकार हो जाते हैं और उन्हें विशेष देख-रेख की ज़रूरत पड़ती है।
- 10 प्रतिशत की नर्सिंगहोम में, या दीर्घकालिक देख-रेख करने वाली दूसरी सुविधाओं में रख कर उनकी देख-भाल करनी होती है।
पक्षाघात जन्य विकलांगताओं में लकवा, संज्ञानात्मक कमियां, बोलने में परेशानी, भावानात्मक परेशानियां, दैन्य दिन जीवन की समस्याएं और दर्द शामिल होता है।
पक्षाघात भावनात्मक समस्याएं भी पैदा कर सकता है। पक्षाघात के मरीज़ों को अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखने में परेशानी होती है या वे ख़ास स्थितियों में अनुचित भावनाएं व्यक्त कर सकते हैं। कई पक्षाघात पीड़ितों में अवसाद भी एक आम विकलांगता है । (1)
जोख़िम के कारक: उच्च रक्तचाप, हृदयरोग, डाइबिटीज़ ,मोटापा और - बुढ़ापा के अलावा धूम्रपान पक्षाघात का जोख़िम पैदा करने वाले सबसे महत्वपूर्ण कारक हैं। इनके अलावा अल्कोहल का अत्यधिक सेवन, उच्च रक्त कॉलेस्टेराल स्तर, नशीली दवाइयों का सेवन, आनुवांशिक या जन्मजात परिस्थितियां, विशेषकर रक्त परिसंचारी तंत्र के विकार। (1)
बढ़ती उम्र के साथ डायबिटिक , हृदय रोग और ब्लड प्रेशर के साइड इफ़ेक्ट भी दिखने लगते है और यही कारण है बुढ़ापे में पक्षाघात ( लकवा) की संभावनाए भी बढ़ जाती है। इसीलिए इसे बुढ़ापे का रोग माना जाता है, मगर सत्य यह है कि भारत में अधेड़ उम्र के मरीज ज्यादा हैं। इसकी वजह जिनेटिक और खराब लाइफस्टाइल है। भारत में आमतौर पर 55-60 साल की उम्र में खतरा बढ़ना शुरू हो जाता है, जबकि पश्चिमी देशों में इसके -चपेट में आने की औसत उम्र 70-75 साल है। (3)
कैसे कर सकते हैं खतरा कम
- बचाव के लिए हमें 20-25 साल की उम्र से ही सावधानियां बरतनी चाहिए। अगर हार्ट की बीमारी है तो उसकी उचित जांच और इलाज कराएं। 20-25 साल की उम्र से ही नियमित रूप से ब्लड प्रेशर चेक कराएं। डॉक्टर की सलाह पर खाने में परहेज करें और एक्सरसाइज बढ़ाएं।
- अगर आपका ब्लड प्रेशर 120/ 80 है तो अच्छा है। ज्यादा है तो 135/85 से कम लाना लक्ष्य होना चाहिए।
- अगर ब्लड प्रेशर की कोई दवा लेते हैं तो उसे नियमित रूप से लें। ब्लड प्रेशर ठीक जो जाए, तब भी डॉक्टर की सलाह पर दवा लेते रहें, वरना यह फिर बढ़ जाएगा। डॉक्टर से बिना पूछे न कोई दवा लें, न ही बंद करें।
- 35-40 साल की उम्र के बाद साल में एक बार शुगर और कॉलेस्ट्रॉल की जांच जरूर कराएं। अगर बढ़ा हुआ हो तो डॉक्टर की सलाह से दवा लें और परहेज करें।
- वजन कंट्रोल में रखें। 18 से कम और 25 से ज्यादा बॉडी मास इंडेक्स यानी बीएमआई (BMI) न हो। कोई बीमारी न हो तो भी 40 की उम्र के बाद ज्यादा नमक और फैट वाली चीजें कम खाएं।
ऐसे बचे रहें लकवे से
एक्सरसाइज है जरूरी: नियमित रूप से एक्सरसाइज और प्राणायाम करें। रोजाना कम-से-कम तीन से चार किमी ब्रिस्क वॉक करें। 10 मिनट में एक किलोमीटर की रफ्तार से 30-40 मिनट रोज चलें। साइक्लिंग, स्वीमिंग, जॉगिंग भी बढ़िया एक्सरसाइज हैं। • आधा घंटा प्राणायाम और ध्यान जरूर करें। इनसे मन शांत रहता है।• ठंड में, खासकर जनवरी में इसका खतरा ज्यादा होता है। ऐसा अक्सर एक्सरसाइज में कमी के कारण होता है। ऐसे में घर पर ही सही, एक्सरसाइज जरूर करें।
परहेज जरूरी है: स्मोकिंग से तौबा करें। • शराब बिल्कुल न लें। अगर लेते हैं तो डॉक्टरी सलाह पर लें। • ज्यादा-से-ज्यादा ताजे फल और हरी सब्जियां खाएं। • नमक कम-से-कम खाना चाहिए। सलाद, रायता आदि में नमक न डालें। पैकेज्ड फूड या अचार न लें क्योंकि इनमें नमक अधिक होता है। • महीने में एक शख्स को आधा किलो से ज्यादा घी-तेल नहीं खाना चाहिए। • पानी खून के बहाव को बढ़ाता है इसलिए रोजाना कम-से-कम 8-10 गिलास पानी जरूर पिएं।
रात में खाना खाने के बाद और सुबह में पैरालिसिस का अटैक ज्यादा होता है। अगर बोलने में अचानक समस्या होने लगे, शरीर का एक तरफ का हिस्सा भारी महसूस हो, चलने में दिक्कत हो, चीज उठाने में परेशानी हो, एक आंख की रोशनी कम होने लगे, चाल बिगड़ जाए तो फौरन डॉक्टर के पास जाएं। (3)
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