सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विरोध प्रदर्शन और असंतोष जाहिर करने के अधिकार के साथ कुछ कर्तव्य जुड़े होते हैं और यह अधिकार 'कभी भी और हर जगह' नहीं हो सकता. By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब, बार एंड बेंच के मुताबिक, शीर्ष अदालत ने दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में हुए एंटी-CAA प्रोटेस्ट के मामले पर पुनर्विचार याचिका को खारिज करते हुए यह बात कही.इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के अक्टूबर 2020 के फैसले पर पुनर्विचार के लिए 12 लोगों ने याचिका दायर की थी, जिसे जस्टिस संजय किशन कौल, अनिरुद्ध बोस और कृष्ण मुरारी की बेंच ने खारिज कर दिया. कोर्ट ने 9 फरवरी को यह फैसला दे दिया था, जिसका ऑर्डर बाद में सामने आया है.बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 7 अक्टूबर 2020 को कहा था कि विरोध प्रदर्शन के लिए शाहीन बाग जैसे सार्वजनिक स्थानों पर अनिश्चितकाल के लिए कब्जा स्वीकार्य नहीं है. शाहीन बाग में दिसंबर 2019 में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को लेकर शुरू हुआ धरना प्रदर्शन काफी लंबा चला था.उस फैसले में कोर्ट ने कहा था कि धरना प्रदर्शन एक निर्धारित स्थान पर ही होना चाहिए और विरोध प्रदर्शन के लिए सार्वजनिक स्थानों या सड़कों पर कब्जा करके बड़ी संख्या में लोगों को असुविधा में डालने या उनके अधिकारों का हनन करने की कानून के तहत इजाजत नहीं है.सुप्रीम कोर्ट ने 9 फरवरी के अपने फैसले में कहा है, ''संवैधानिक योजना विरोध प्रदर्शन और असंतोष जाहिर करने के अधिकार के साथ आती है, लेकिन कुछ कर्तव्यों के लिए बाध्यता के साथ. विरोध प्रदर्शन का अधिकार कभी भी और हर जगह नहीं हो सकता. कुछ आकस्मिक विरोध प्रदर्शन हो सकते हैं, लेकिन लंबे समय तक असंतोष या विरोध के मामले में, दूसरों के अधिकारों को प्रभावित करते हुए सार्वजनिक स्थलों पर कब्जे को जारी नहीं रखा जा सकता.''पुनर्विचार की मांग करने वाले याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि शीर्ष अदालत के फैसले से ऐसी स्थिति पैदा होगी जहां प्रशासन कभी भी प्रदर्शनकारियों के साथ बातचीत में शामिल नहीं होगा, बल्कि उनके खिलाफ मुकदमा चलाने सहित कार्रवाई करेगा.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विरोध प्रदर्शन और असंतोष जाहिर करने के अधिकार के साथ कुछ कर्तव्य जुड़े होते हैं और यह अधिकार 'कभी भी और हर जगह' नहीं हो सकता. By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब, बार एंड बेंच के मुताबिक, शीर्ष अदालत ने दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में हुए एंटी-CAA प्रोटेस्ट के मामले पर पुनर्विचार याचिका को खारिज करते हुए यह बात कही.
इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के अक्टूबर 2020 के फैसले पर पुनर्विचार के लिए 12 लोगों ने याचिका दायर की थी, जिसे जस्टिस संजय किशन कौल, अनिरुद्ध बोस और कृष्ण मुरारी की बेंच ने खारिज कर दिया. कोर्ट ने 9 फरवरी को यह फैसला दे दिया था, जिसका ऑर्डर बाद में सामने आया है.बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 7 अक्टूबर 2020 को कहा था कि विरोध प्रदर्शन के लिए शाहीन बाग जैसे सार्वजनिक स्थानों पर अनिश्चितकाल के लिए कब्जा स्वीकार्य नहीं है. शाहीन बाग में दिसंबर 2019 में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को लेकर शुरू हुआ धरना प्रदर्शन काफी लंबा चला था.
उस फैसले में कोर्ट ने कहा था कि धरना प्रदर्शन एक निर्धारित स्थान पर ही होना चाहिए और विरोध प्रदर्शन के लिए सार्वजनिक स्थानों या सड़कों पर कब्जा करके बड़ी संख्या में लोगों को असुविधा में डालने या उनके अधिकारों का हनन करने की कानून के तहत इजाजत नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने 9 फरवरी के अपने फैसले में कहा है, ''संवैधानिक योजना विरोध प्रदर्शन और असंतोष जाहिर करने के अधिकार के साथ आती है, लेकिन कुछ कर्तव्यों के लिए बाध्यता के साथ. विरोध प्रदर्शन का अधिकार कभी भी और हर जगह नहीं हो सकता. कुछ आकस्मिक विरोध प्रदर्शन हो सकते हैं, लेकिन लंबे समय तक असंतोष या विरोध के मामले में, दूसरों के अधिकारों को प्रभावित करते हुए सार्वजनिक स्थलों पर कब्जे को जारी नहीं रखा जा सकता.''
पुनर्विचार की मांग करने वाले याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि शीर्ष अदालत के फैसले से ऐसी स्थिति पैदा होगी जहां प्रशासन कभी भी प्रदर्शनकारियों के साथ बातचीत में शामिल नहीं होगा, बल्कि उनके खिलाफ मुकदमा चलाने सहित कार्रवाई करेगा.
The Supreme Court has said that there are certain duties associated with the right to protest and express dissatisfaction and this right can never be 'anytime and everywhere'. By socialist Vanita Kasani Punjab,
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