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हिंदुस्तान मेंआलू की खेती कैसे करें, यहां जानें By वनिता कासनियां पंजाब Potato farming: सब्जियों का राजा है आलू। गरीब हो अमीर आलू खाए बिना शायद ही किसी का ऐसा दिन बीता हो। आलू रबी सीजन की प्रमुख फसलों में से एक है। आलू को अकालनाशक फसल भी कहते हैं।आपको बता दें, उत्पादन के मामले में आलू की फसल की उपज क्षमता दूसरे फसलों से ज्यादा है। भारत में आलू की खेती (aloo ki kheti) सबसे अधिक उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश राज्य में होती है। अधिक उपज के कारण आलू की खेती (Potato farming) किसानों की पहली पसंद है।आलू (Potato) एक ऐसी फसल है जो बढ़ती आबादी को कुपोषण और भूखमरी से बचाने में सहायक है। यह पोषक तत्वों से भरपूर सब्जी होती है। इसमें 14 प्रतिशत स्टार्च, 2 प्रतिशत शक्कर, 2 प्रतिशत प्रोटीन और 1 प्रतिशत खनिज लवण होता है। 0.1 प्रतिशत वसा और कुछ मात्रा में विटामिन्स भी होता है।आलू की मांग को देखते हुए इसके उत्पादन को बढ़ाने की और अधिक जरूरत है। इसलिए जरूरी है कि आलू की परम्परागत खेती की बजाय आलू की वैज्ञानिक खेती की जाए।तो आइए, द रुरल इंडिया के इस लेख में आलू की खेती कैसे करें (aaloo ki kheti kaise kare) जानें।आलू की खेती के लिए भूमि एवं जलवायुआलू की खेती के लिए समतल और मध्यम ऊंचाई वाले खेत ज्यादा उपयुक्त होते हैं। साथ ही अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी और बलुई दोमट मिट्टी जिसकी पीएच मान 5.5 से 5.7 के बीच हो। आलू की खेती (aaloo ki kheti) के लिए रबी अर्थात् ठंड की मौसम उपयुक्त है। इसके लिए दिन का तापमान 25 से 30 डिग्री सेल्सियस और रात का तापमान 15 से 20 डिग्री सेल्सियस तक होनी चाहिए। वहीं कंद बनने के समय 20 से 25 डिग्री सेल्सियस ज्यादा नहीं होनी चाहिए। क्योंकि इससे ज्यादा तापमान होने पर कंदों का विकास रूक जाता है।खेती की तैयारी कैसे करेंखेत की तैयारी की बात करें तो मिट्टी के प्रकार के अनुसार खेत को 3-4 जुताई करें।जहां तक संभव हो खेती की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और बाद की जुताई देसी हल से करें।प्रत्येक जुताई के बाद पाटा जरूर चलाएं ताकि मिट्टी भुरभूरी और खेत समतल हो जाए। इससे आलू के कंदो के विकास में आसानी होती है।आलू की बुआई का समयआलू की बुआई का समय इसकी किस्म पर भी निर्भर करता है। इसकी अच्छी उपज को लिए सितम्बर से अंतिम सप्ताह से नवंबर से प्रथम सप्ताह तक का समय उपयुक्त माना गया है।बीज का चयन करते समय रखे जाने वाले सावधानियांकिसानों के लिए किस्मों का चयन महत्वपूर्ण है। आलू के बीजों का चयन करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए।बीज हमेशा किसी विश्वसनीय स्रोत जैसे- सरकारी बीज भंडार, राज्य के कृषि और उद्यान विभाग, राष्ट्रीय बीज निगम, कृषि विश्वविद्यालय, कृषि विज्ञान केंद्र या क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र से ही खरीदें।इसके अलावा आप खुद के उत्पादित बीज या प्रगतिशील किसान किसान से खरीदा हुआ बीज का प्रयोग करते हैं तो प्रत्येक 3 से 4 साल बाद बीज को जरूर बदल दें। बीज के किस्मों का चयन आप बाजार में मांग एवं जलवायु के अनुसार कर सकते हैं।Potato farming : आलू की खेती कैसे करेंआलू के किस्मों का चयनयदि आप अगेती किस्म लगाना चाहते हैं तो इसके लिए कुफरी पुखराज या कुफरी अशोका का चयन कर सकते हैं। आपको बता दें, ये किस्में 80 से 90 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी औसत उपज 200 से 350 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक होती है।मध्यम किस्मों के लिए राजेन्द्र आलू-1, राजेंद्र आलू-2 राजेन्द्र आलू-3 और कुफरी कंचन जैसी किस्मों का चयन कर सकते हैं। आपको बता दें, ये किस्में 100 से 120 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी औसत उपज 200 कुंतल प्रति हेक्टेयर 300 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक होती है।पछेती किस्मों के लिए आप कुफरी सुंदरी, कुफरी अलंकार, कुफरी सफेद, कुफरी चमत्कार, कुफरी देवा और कुफरी किसान जैसी किस्मों का चयन कर सकते हैं। ये किस्में 120 से 130 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी औसत उपज 250 से 350 कुंतल प्रति हेक्टयर तक होती है।यदि आप आलू से चिप्स बनाना चाहते हैं तो इसके लिए भी विशेष किस्मों का विकास किया गया है। जैसे- कुफरी चिप्ससोना-1, कुफरी चिप्ससोना-2, कुफरी चिप्ससोना-3 और कुफरी आनन्द। ये सभी किस्में 100-110 दिनों में तैयार हो जाती है। जिसका औसत उत्पादन प्रति हेक्टेयर 300 से 350 कुंतल तक हो जाता है।बीजों का चुनाव और तैयारीकिसान भाइयों को बीजों का चुनाव करते समय बीज का आकार पर अवश्य ध्यान देना चाहिए।बीज की गोलाई 2.5 से 4 सेंटीमीटर और वजन 25 से 40 ग्राम होना चाहिए। इससे कम या अधिक भार का बीज आर्थिक दृष्टि से भी उपयुक्त नहीं होती है क्योंकि अधिक बड़े आलू लगाने से किसानों का अधिक खर्च होता है जबकि कम आकार की बीज बोने से उपज में कमी आती है।आलू लगाने से 15 से 30 दिन पहले उसे बोरे से निकाल कर ऐसे कमरे के फर्श पर फैला दें जहाँ धुँधली रोशनी आती हो।ध्यान रखें कि जिस कमरे में आलू का बीज रखा जाए वह हवादार हो, ऐसा करने से बीज का अंकुरण जल्दी होता है। जिससे न सिर्फ पौधों की बढ़वार अच्छी होती है, बल्कि प्रति पौधे तना भी अधिक निकलते हैं।अंकुरित करने के लिए रखे गए बीज को हर दूसरे दिन निरीक्षण करना चाहिए और सड़े-गले आलू को निकाल देना चाहिए।इस बात का भी ध्यान रखें कि जिस बीज के कमजोर और पतले कंद और आँख हो उसे भी निकाल देना चाहिए। ऐसे कंद बीमारी से जल्दी ग्रसित होते हैं।अंकुरित बीज खेत तक ले जाने के लिए सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है क्योंकि इस दौरान कंद की आँखे टूट सकती है।आलू के बीजों का उपचार कैसे करेंआलू को बोने से पहले बीजोपचार जरूरी है क्योंकि इससे फसल में बीमारी का प्रकोप नहीं हो। बीज उपचार करने से उत्पादन क्षमता में भी वृद्धि हो जाती है। बीज उपचार के लिए आलू के कंद को एक ग्राम कॉर्बनडाजिन या मैनकोजिब या कॉर्बोक्सिन दो ग्राम प्रति लीटर की पानी में घोल बना कर बीज को उपचारित करें। इस दौरान इस बात का भी ध्यान रखें कि उपचारित बीज को 24 घंटे के अंदर बुआई कर दें।आलू की बुआई विधिआलू की बुआई अन्य फसलों या सब्जियों की बुआई से एकदम अलग होती है।आलू की बुआई करते समय कतार से कतार और पौधा से पौधा की दूरी और गहराई का भी ख्याल रखें।आलू कम गहराई पर बोने से सूख जाते हैं जबकि अधिक गहराई पर बोने से नमी की अधिकता के कारण बीज सड़ जाते हैं।आलू की बुआई करते समय कतार से कतार 50 से 60 सेंटीमीटर और पौधा से पौधा 15 से 20 सेंटीमीटर की दूरी रखें।पछेती किस्मों में पौधों का विकास अधिक होती है। अतः इन किस्मों की बुआई 60 से 70 सेंटीमीटर और पौधा से पौधा दूरी 20 से 25 सेंटीमीटर रखा जाता है।अब बात करते हैं आलू की बुआई विधि की जिसमें किसान अपनी सुविधानुसार चुन सकते हैं।आलू की बुआई विधि में सबसे सरल और पहली विधि है समतल भूमि में आलू बोकर मिट्टी चढ़ाना।इस विधि में खेती में 60 सेंटीमीटर पर लाइन बना ली जाती है और इन बनी हुई लाइन पर 5 सेंटीमीटर का गढ्ढा बनाकर आलू के कंद को 15 से 20 सेंटीमीटर की दूरी पर बुआई की जाती है। इसके बाद इसपर मिट्टी चढ़ा दी जाती है।दूसरी विधि है- मेड़ों पर आलू की बुआई करना। इसके लिए सबसे पहले कुदाल या अन्य मशीनों से मेड़ बनाकर उस पर उचित दूरी और गहराई पर आलू की बीज को लगा सकते हैं। यह विधि अधिक नमी वाले जमीन के लिए उचित है।निराई-गुड़ाईआलू की बुआई के 20 से 25 दिन बाद खरपतवारों को हटा दें, इस दौरान आलू पर मिट्टी पर कुछ मिट्टी चढ़ाकर नालियों को व्यवस्थित कर सकते हैं।खाद और उर्वरक प्रबंधनकिसान भाइयों अब बात करते हैं आलू की फसल में खाद एवं पोषण देने की। आपको बता दें, आलू की फसल जमीन की ऊपरी सतह से ही भोजन प्राप्त करती है इसलिए इसे प्रचुर मात्रा में जैविक और रासायनिक खाद की आवश्यकता होती है। इसके लिए इसकी बुआई के से पहले ही 250 से 300 कुंतल सड़ी गोबर की खाद या 40 से 50 कुंतल वर्मी कंपोस्ट खाद प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग कर जुताई करें।इसके अलावा खेत की उर्वरता के अनुसार 120 से 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलो फॉस्फोरस और 100 से 120 किलोग्राम पोटॉश प्रति हेक्टेयर की जरूरत पड़ती है। रासायनिक खाद कभी भी आलू की कंद को सीधे नहीं दी जानी चाहिए अन्यथा कंद सड़ या खराब हो सकती है।सिंचाई प्रबंधनआलू की खेती (Aloo ki kheti) के लिए पानी की आवश्यकता कम होती है। पहली सिंचाई आलू की फसल में 10-20 दिनों के भीतर कर देनी चाहिए। इसके बाद 10-15 दिन के अंतराल में थोड़ी-थोड़ी सिंचाई करते रहने चाहिए। सिंचाई के दौरान इस बात का ख्याल रखें कि मेड़ 2 से 3 इंच से ज्यादा नहीं डूबे।रोग नियंत्रण एवं फसल सुरक्षाआलू की फसल में हानिकारक कीट एवं रोग का भी प्रकोप होता है अतः किसान भाइयों को इसका भी ख्याल रखें।आलू में लगने वाले प्रमुख रोग हैं।-अगेती झुलसा और पछेती झुलसा इससे बचने के लिए इंडोफिल एम-45 या रीडोमिल का 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर सकते हैं। कृषि वैज्ञानिकों इस रोग से बचने के लिए प्रत्येक 15 दिन पर इन दवाओं का छिड़काव का भी सलाह देते हैं।यदि कीटों की बात करें आलू की फसल में मुख्य रूप में लाही कीट का प्रकोप देखा गया है। इससे बचाव के लिए इमिडाक्लोरपिड का 1 मिली लीटर प्रति 3 लीटर पानी में मिलाकर छिड़ाकाव करें।आलू की खुदाई/कटाईआलू की फसल में जमीन के अंदर होती है आलू की कटाई की जगह पर किसानों को इसकी खुदाई करनी पड़ती है। अतः किसानों को फसल पकने के 15 दिन पहले ही सिंचाई बंद कर देनी चाहिए और आलू की खुदाई से पहले पत्तियों को 5 से 10 दिन पहले काट देनी चाहिए। इससे आलू की त्वचा मजबूत हो जाती है।आलू की खुदाई के बाद आलू को 3 से 4 दिन के लिए किसी छायेदार जगह पर ही रखें ताकि छिलके और भी मजबूत हो जाएं और आलू में लगी मिट्टी भी सूखकर अगल हो जाए।आलू की भंडारण और मार्केटिंगयदि आप आलू को फसल का सही दाम मिलने पर बेचना चाहते हैं तो इसके लिए आपको भंडारण की आवश्यकता होती है। कुछ समय के लिए आप अपने घर पर ही आलू पतली सतह लगाकर रख सकते हैं, लेकिन ज्यादा समय के लिए भंडारण के लिए आप शीत गोदामों में ही रखें। ताकि समय पर आलू निकासी कर उसे बाजार में बेच सकें।वनिता कासनियां पंजाबइस प्रकार आप आलू की वैज्ञानिक खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।

Potato farming: सब्जियों का राजा है आलू। गरीब हो अमीर आलू खाए बिना शायद ही किसी का ऐसा दिन बीता हो। आलू रबी सीजन की प्रमुख फसलों में से एक है। आलू को अकालनाशक फसल भी कहते हैं।

आपको बता दें, उत्पादन के मामले में आलू की फसल की उपज क्षमता दूसरे फसलों से ज्यादा है। भारत में आलू की खेती (aloo ki kheti) सबसे अधिक उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश राज्य में होती है। अधिक उपज के कारण आलू की खेती (Potato farming) किसानों की पहली पसंद है।

आलू (Potato) एक ऐसी फसल है जो बढ़ती आबादी को कुपोषण और भूखमरी से बचाने में सहायक है। यह पोषक तत्वों से भरपूर सब्जी होती है। इसमें 14 प्रतिशत स्टार्च, 2 प्रतिशत शक्कर, 2 प्रतिशत प्रोटीन और 1 प्रतिशत खनिज लवण होता है। 0.1 प्रतिशत वसा और कुछ मात्रा में विटामिन्स भी होता है।

आलू की मांग को देखते हुए इसके उत्पादन को बढ़ाने की और अधिक जरूरत है। इसलिए जरूरी है कि आलू की परम्परागत खेती की बजाय आलू की वैज्ञानिक खेती की जाए।

तो आइए, द रुरल इंडिया के इस लेख में आलू की खेती कैसे करें (aaloo ki kheti kaise kare) जानें।

आलू की खेती के लिए भूमि एवं जलवायु

आलू की खेती के लिए समतल और मध्यम ऊंचाई वाले खेत ज्यादा उपयुक्त होते हैं। साथ ही अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी और बलुई दोमट मिट्टी जिसकी पीएच मान 5.5 से 5.7 के बीच हो। 

आलू की खेती (aaloo ki kheti) के लिए रबी अर्थात् ठंड की मौसम उपयुक्त है। इसके लिए दिन का तापमान 25 से 30 डिग्री सेल्सियस और रात का तापमान 15 से 20 डिग्री सेल्सियस तक होनी चाहिए। वहीं कंद बनने के समय 20 से 25 डिग्री सेल्सियस ज्यादा नहीं होनी चाहिए। क्योंकि इससे ज्यादा तापमान होने पर कंदों का विकास रूक जाता है।

खेती की तैयारी कैसे करें

  • खेत की तैयारी की बात करें तो मिट्टी के प्रकार के अनुसार खेत को 3-4 जुताई करें।
  • जहां तक संभव हो खेती की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और बाद की जुताई देसी हल से करें।
  • प्रत्येक जुताई के बाद पाटा जरूर चलाएं ताकि मिट्टी भुरभूरी और खेत समतल हो जाए। इससे आलू के कंदो के विकास में आसानी होती है।

आलू की बुआई का समय

आलू की बुआई का समय इसकी किस्म पर भी निर्भर करता है। इसकी अच्छी उपज को लिए सितम्बर से अंतिम सप्ताह से नवंबर से प्रथम सप्ताह तक का समय उपयुक्त माना गया है।

बीज का चयन करते समय रखे जाने वाले सावधानियां

किसानों के लिए किस्मों का चयन महत्वपूर्ण है। आलू के बीजों का चयन करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए।

  • बीज हमेशा किसी विश्वसनीय स्रोत जैसे- सरकारी बीज भंडार, राज्य के कृषि और उद्यान विभाग, राष्ट्रीय बीज निगम, कृषि विश्वविद्यालय, कृषि विज्ञान केंद्र या क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र से ही खरीदें।
  • इसके अलावा आप खुद के उत्पादित बीज या प्रगतिशील किसान किसान से खरीदा हुआ बीज का प्रयोग करते हैं तो प्रत्येक 3 से 4 साल बाद बीज को जरूर बदल दें। बीज के किस्मों का चयन आप बाजार में मांग एवं जलवायु के अनुसार कर सकते हैं।

Potato farming : आलू की खेती कैसे करें

आलू के किस्मों का चयन

यदि आप अगेती किस्म लगाना चाहते हैं तो इसके लिए कुफरी पुखराज या कुफरी अशोका का चयन कर सकते हैं। आपको बता दें, ये किस्में 80 से 90 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी औसत उपज 200 से 350 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक होती है।

मध्यम किस्मों के लिए राजेन्द्र आलू-1, राजेंद्र आलू-2 राजेन्द्र आलू-3 और कुफरी कंचन जैसी किस्मों का चयन कर सकते हैं। आपको बता दें, ये किस्में 100 से 120 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी औसत उपज 200 कुंतल प्रति हेक्टेयर 300 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक होती है।

पछेती किस्मों के लिए आप कुफरी सुंदरी, कुफरी अलंकार, कुफरी सफेद, कुफरी चमत्कार, कुफरी देवा और कुफरी किसान जैसी किस्मों का चयन कर सकते हैं। ये किस्में 120 से 130 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी औसत उपज 250 से 350 कुंतल प्रति हेक्टयर तक होती है।

यदि आप आलू से चिप्स बनाना चाहते हैं तो इसके लिए भी विशेष किस्मों का विकास किया गया है। जैसे- कुफरी चिप्ससोना-1, कुफरी चिप्ससोना-2, कुफरी चिप्ससोना-3 और कुफरी आनन्द। ये सभी किस्में 100-110 दिनों में तैयार हो जाती है। जिसका औसत उत्पादन प्रति हेक्टेयर 300 से 350 कुंतल तक हो जाता है।

बीजों का चुनाव और तैयारी

किसान भाइयों को बीजों का चुनाव करते समय बीज का आकार पर अवश्य ध्यान देना चाहिए।

  • बीज की गोलाई 2.5 से 4 सेंटीमीटर और वजन 25 से 40 ग्राम होना चाहिए। इससे कम या अधिक भार का बीज आर्थिक दृष्टि से भी उपयुक्त नहीं होती है क्योंकि अधिक बड़े आलू लगाने से किसानों का अधिक खर्च होता है जबकि कम आकार की बीज बोने से उपज में कमी आती है।
  • आलू लगाने से 15 से 30 दिन पहले उसे बोरे से निकाल कर ऐसे कमरे के फर्श पर फैला दें जहाँ धुँधली रोशनी आती हो।
  • ध्यान रखें कि जिस कमरे में आलू का बीज रखा जाए वह हवादार हो, ऐसा करने से बीज का अंकुरण जल्दी होता है। जिससे न सिर्फ पौधों की बढ़वार अच्छी होती है, बल्कि प्रति पौधे तना भी अधिक निकलते हैं।
  • अंकुरित करने के लिए रखे गए बीज को हर दूसरे दिन निरीक्षण करना चाहिए और सड़े-गले आलू को निकाल देना चाहिए।
  • इस बात का भी ध्यान रखें कि जिस बीज के कमजोर और पतले कंद और आँख हो उसे भी निकाल देना चाहिए। ऐसे कंद बीमारी से जल्दी ग्रसित होते हैं।
  • अंकुरित बीज खेत तक ले जाने के लिए सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है क्योंकि इस दौरान कंद की आँखे टूट सकती है।

आलू के बीजों का उपचार कैसे करें

आलू को बोने से पहले बीजोपचार जरूरी है क्योंकि इससे फसल में बीमारी का प्रकोप नहीं हो। बीज उपचार करने से उत्पादन क्षमता में भी वृद्धि हो जाती है। बीज उपचार के लिए आलू के कंद को एक ग्राम कॉर्बनडाजिन या मैनकोजिब या कॉर्बोक्सिन दो ग्राम प्रति लीटर की पानी में घोल बना कर बीज को उपचारित करें। इस दौरान इस बात का भी ध्यान रखें कि उपचारित बीज को 24 घंटे के अंदर बुआई कर दें।

आलू की बुआई विधि

  • आलू की बुआई अन्य फसलों या सब्जियों की बुआई से एकदम अलग होती है।
  • आलू की बुआई करते समय कतार से कतार और पौधा से पौधा की दूरी और गहराई का भी ख्याल रखें।
  • आलू कम गहराई पर बोने से सूख जाते हैं जबकि अधिक गहराई पर बोने से नमी की अधिकता के कारण बीज सड़ जाते हैं।
  • आलू की बुआई करते समय कतार से कतार 50 से 60 सेंटीमीटर और पौधा से पौधा 15 से 20 सेंटीमीटर की दूरी रखें।
  • पछेती किस्मों में पौधों का विकास अधिक होती है। अतः इन किस्मों की बुआई 60 से 70 सेंटीमीटर और पौधा से पौधा दूरी 20 से 25 सेंटीमीटर रखा जाता है।

अब बात करते हैं आलू की बुआई विधि की जिसमें किसान अपनी सुविधानुसार चुन सकते हैं।

आलू की बुआई विधि में सबसे सरल और पहली विधि है समतल भूमि में आलू बोकर मिट्टी चढ़ाना।

इस विधि में खेती में 60 सेंटीमीटर पर लाइन बना ली जाती है और इन बनी हुई लाइन पर 5 सेंटीमीटर का गढ्ढा बनाकर आलू के कंद को 15 से 20 सेंटीमीटर की दूरी पर बुआई की जाती है। इसके बाद इसपर मिट्टी चढ़ा दी जाती है।

दूसरी विधि है- मेड़ों पर आलू की बुआई करना। 
इसके लिए सबसे पहले कुदाल या अन्य मशीनों से मेड़ बनाकर उस पर उचित दूरी और गहराई पर आलू की बीज को लगा सकते हैं। यह विधि अधिक नमी वाले जमीन के लिए उचित है।

निराई-गुड़ाई

आलू की बुआई के 20 से 25 दिन बाद खरपतवारों को हटा दें, इस दौरान आलू पर मिट्टी पर कुछ मिट्टी चढ़ाकर नालियों को व्यवस्थित कर सकते हैं।

खाद और उर्वरक प्रबंधन

किसान भाइयों अब बात करते हैं आलू की फसल में खाद एवं पोषण देने की। आपको बता दें, आलू की फसल जमीन की ऊपरी सतह से ही भोजन प्राप्त करती है इसलिए इसे प्रचुर मात्रा में जैविक और रासायनिक खाद की आवश्यकता होती है। इसके लिए इसकी बुआई के से पहले ही 250 से 300 कुंतल सड़ी गोबर की खाद या 40 से 50 कुंतल वर्मी कंपोस्ट खाद प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग कर जुताई करें।

इसके अलावा खेत की उर्वरता के अनुसार 120 से 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलो फॉस्फोरस और 100 से 120 किलोग्राम पोटॉश प्रति हेक्टेयर की जरूरत पड़ती है। रासायनिक खाद कभी भी आलू की कंद को सीधे नहीं दी जानी चाहिए अन्यथा कंद सड़ या खराब हो सकती है।

सिंचाई प्रबंधन

आलू की खेती (Aloo ki kheti) के लिए पानी की आवश्यकता कम होती है। पहली सिंचाई आलू की फसल में 10-20 दिनों के भीतर कर देनी चाहिए। इसके बाद 10-15 दिन के अंतराल में थोड़ी-थोड़ी सिंचाई करते रहने चाहिए। सिंचाई के दौरान इस बात का ख्याल रखें कि मेड़ 2 से 3 इंच से ज्यादा नहीं डूबे।

रोग नियंत्रण एवं फसल सुरक्षा

आलू की फसल में हानिकारक कीट एवं रोग का भी प्रकोप होता है अतः किसान भाइयों को इसका भी ख्याल रखें।

आलू में लगने वाले प्रमुख रोग हैं।-
  1. अगेती झुलसा 
  2. और पछेती झुलसा 
इससे बचने के लिए इंडोफिल एम-45 या रीडोमिल का 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर सकते हैं। कृषि वैज्ञानिकों इस रोग से बचने के लिए प्रत्येक 15 दिन पर इन दवाओं का छिड़काव का भी सलाह देते हैं।

यदि कीटों की बात करें आलू की फसल में मुख्य रूप में लाही कीट का प्रकोप देखा गया है। इससे बचाव के लिए इमिडाक्लोरपिड का 1 मिली लीटर प्रति 3 लीटर पानी में मिलाकर छिड़ाकाव करें।

आलू की खुदाई/कटाई

आलू की फसल में जमीन के अंदर होती है आलू की कटाई की जगह पर किसानों को इसकी खुदाई करनी पड़ती है। अतः किसानों को फसल पकने के 15 दिन पहले ही सिंचाई बंद कर देनी चाहिए और आलू की खुदाई से पहले पत्तियों को 5 से 10 दिन पहले काट देनी चाहिए। इससे आलू की त्वचा मजबूत हो जाती है।

आलू की खुदाई के बाद आलू को 3 से 4 दिन के लिए किसी छायेदार जगह पर ही रखें ताकि छिलके और भी मजबूत हो जाएं और आलू में लगी मिट्टी भी सूखकर अगल हो जाए।

आलू की भंडारण और मार्केटिंग

यदि आप आलू को फसल का सही दाम मिलने पर बेचना चाहते हैं तो इसके लिए आपको भंडारण की आवश्यकता होती है। कुछ समय के लिए आप अपने घर पर ही आलू पतली सतह लगाकर रख सकते हैं, लेकिन ज्यादा समय के लिए भंडारण के लिए आप शीत गोदामों में ही रखें। ताकि समय पर आलू निकासी कर उसे बाजार में बेच सकें।

इस प्रकार आप आलू की वैज्ञानिक खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।

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Sharad Purnima 2022 Date: शरद पूर्णिमा कब है? जानें इस दिन क्यों खाते हैं चांद की रोशनी में रखी खीर By #वनिता #कासनियां #पंजाब🌺🙏🙏🌺 Sharad Purnima 2022 Date: अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को रास पूर्णिमा या शरद पूर्णिमा कहा जाता है. शरद पूर्णिमा की रात्रि पर चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है. इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण रहता है. चंद्रमा की किरणें अमृत की वर्षा करती हैं. #facebook #twitter जानें, शरद पूर्णिमा की चमत्कारी खीर खाने से क्या होते हैं फायदे Sharad Purnima 2022 Date: हर माह में पूर्णिमा आती है, लेकिन शरद पूर्णिमा का महत्व ज्यादा खास बताया गया है. #हिंदू #धर्म #ग्रंथों में भी इस पूर्णिमा को विशेष बताया गया है. अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को रास पूर्णिमा या शरद पूर्णिमा कहा जाता है. शरद पूर्णिमा की रात्रि पर #चंद्रमा #पृथ्वी के सबसे निकट होता है. इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण रहता है. चंद्रमा की किरणें अमृत की वर्षा करती हैं. इस साल शरद पूर्णिमा 09 अक्टूबर को पड़ रही है. शरद पूर्णिमा की तिथि अश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा यानी शरद पूर्णिमा तिथि रविवार, 09 अक्टूबर 2022 को सुबह 03 बजकर 41 मिनट से शुरू होगी. पूर्णिमा तिथि अगले दिन सोमवार, 10 अक्टूबर 2022 को सुबह 02 बजकर 25 मिनट पर समाप्त होगी. #शास्त्रों के अनुसार, शरद पूर्णिमा पर मां लक्ष्मी अपनी सवारी उल्लू पर सवार होकर धरती पर भ्रमण करती हैं और अपने भक्तों की समस्याओं को दूर करने के लिए वरदान देती हैं. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, इसी दिन मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था. इसलिए धन प्राप्ति के लिए भी ये तिथि सबसे उत्तम मानी जाती है. #Vnita शरद पूर्णिमा पर खीर का सेवन मान्यता है कि शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा की किरणों में रखी खीर का सेवन करने से रोगों से मुक्ति मिलती है. इस खीर को चर्म रोग से परेशान लोगों के लिए भी अच्छा बताया जाता है. ये खीर आंखों से जुड़ी बीमारियों से परेशान लोगों को भी बहुत लाभ पहुंचाती है. इसके अलावा भी इसे कई मायनों में खास माना जाता है. अपार #धन पाने के लिए उपाय रात के समय मां लक्ष्मी के सामने #घी का #दीपक जलाएं. उन्हें #गुलाब के #फूलों की माला अर्पित करें. उन्हें सफेद मिठाई और सुगंध भी अर्पित करें. "ॐ ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद महालक्ष्मये नमः" का जाप करें. मां लक्ष्मी जीवन की तमाम समस्याओं का समाधान कर सकती हैं. बस उनते सच्चे मन से अपनी बात पहुंचानी होगी और जब धरती पर साक्षात आएं तो इससे पावन घड़ी और क्या हो सकती है. #शरद_पूर्णिमा #राजस्थान #हरियाणा #संगरिया वर्ष के बारह महीनों में ये पूर्णिमा ऐसी है, जो तन, मन और धन तीनों के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है। इस पूर्णिमा को चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है, तो धन की देवी महालक्ष्मी रात को ये देखने के लिए निकलती हैं कि कौन जाग रहा है और वह अपने कर्मनिष्ठ भक्तों को धन-धान्य से भरपूर करती हैं। शरद_ पूर्णिमा का एक नाम *कोजागरी पूर्णिमा* भी है यानी लक्ष्मी जी पूछती हैं- कौन जाग रहा है? अश्विनी महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा अश्विनी नक्षत्र में होता है इसलिए इस महीने का नाम अश्विनी पड़ा है। एक महीने में चंद्रमा जिन 27 नक्षत्रों में भ्रमण करता है, उनमें ये सबसे पहला है और #आश्विन_नक्षत्र की पूर्णिमा आरोग्य देती है। केवल शरद_पूर्णिमा को ही चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से संपूर्ण होता है और पृथ्वी के सबसे ज्यादा निकट भी। चंद्रमा की किरणों से इस पूर्णिमा को अमृत बरसता है। #बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम वर्ष भर इस #पूर्णिमा की प्रतीक्षा करते हैं। जीवनदायिनी रोगनाशक जड़ी-बूटियों को वह शरद पूर्णिमा की चांदनी में रखते हैं। अमृत से नहाई इन जड़ी-बूटियों से जब दवा बनायी जाती है तो वह रोगी के ऊपर तुंरत असर करती है। चंद्रमा को वेदं-पुराणों में मन के समान माना गया है- चंद्रमा_मनसो_जात:।वायु पुराण में चंद्रमा को जल का कारक बताया गया है। प्राचीन ग्रंथों में चंद्रमा को औषधीश यानी औषधियों का स्वामी कहा गया है। ब्रह्मपुराण के अनुसार- सोम या चंद्रमा से जो सुधामय तेज पृथ्वी पर गिरता है उसी से औषधियों की उत्पत्ति हुई और जब औषधी 16 कला संपूर्ण हो तो अनुमान लगाइए उस दिन औषधियों को कितना बल मिलेगा। #शरद_पूर्णिमा की शीतल चांदनी में रखी खीर खाने से शरीर के सभी रोग दूर होते हैं। ज्येष्ठ, आषाढ़, सावन और भाद्रपद मास में शरीर में पित्त का जो संचय हो जाता है, शरद पूर्णिमा की शीतल धवल चांदनी में रखी #खीर खाने से पित्त बाहर निकलता है। लेकिन इस #खीर को एक विशेष विधि से बनाया जाता है। पूरी रात चांद की चांदनी में रखने के बाद सुबह खाली पेट यह खीर खाने से सभी रोग दूर होते हैं, शरीर निरोगी होता है। #शरद_पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहते हैं। स्वयं सोलह कला संपूर्ण भगवान श्रीकृष्ण से भी जुड़ी है यह पूर्णिमा। इस रात को अपनी राधा रानी और अन्य सखियों के साथ श्रीकृष्ण महारास रचाते हैं। कहते हैं जब वृन्दावन में भगवान कृष्ण महारास रचा रहे थे तो चंद्रमा आसमान से सब देख रहा था और वह इतना भाव-विभोर हुआ कि उसने अपनी शीतलता के साथ पृथ्वी पर #अमृत_की_वर्षा आरंभ कर दी। गुजरात में #शरद_पूर्णिमा को लोग रास रचाते हैं और गरबा खेलते हैं। मणिपुर में भी श्रीकृष्ण भक्त रास रचाते हैं। पश्चिम बंगाल और ओडिशा में शरद पूर्णिमा की रात को महालक्ष्मी की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस पूर्णिमा को जो महालक्ष्मी का पूजन करते हैं और रात भर जागते हैं, उनकी सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। ओडिशा में #शरद_पूर्णिमा को #कुमार_पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है। आदिदेव महादेव और देवी पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म इसी पूर्णिमा को हुआ था। गौर वर्ण, आकर्षक, सुंदर कार्तिकेय की पूजा कुंवारी लड़कियां उनके जैसा पति पाने के लिए करती हैं। #शरद_पूर्णिमा ऐसे महीने में आती है, जब वर्षा ऋतु अंतिम समय पर होती है। शरद ऋतु अपने बाल्यकाल में होती है और हेमंत ऋतु आरंभ हो चुकी होती है और इसी पूर्णिमा से कार्तिक स्नान प्रारंभ हो जाता है। #घटता_बढ़ता_चांद यहाँ हर कोई #उस चांद सा है.. जो कभी बढ़ रहा है तो कभी घट रहा है.. वो कभी #पूर्णिमा की रात सा रोशनी बिखेर रहा है.. तो कभी #अमावस की रात में एक अंधेरे सा हो रहा है.. यहाँ हर किसी की यही फितरत है.. हम खुद भी इसका अपवाद नही है.. हम सब ऐसे ही बने हैं ऐसे ही बनाये गए हैं.. यकीं न हो तो पल भर को सोचिए की आखिर क्यूँ हर सुबह जब हम सोकर उठते हैं.. तो हम पिछली सुबह से अलग होते हैं.. #कभी_कमजोर.. तो कभी_ताकतवर महसूस करते हैं.. मसला बस इतना सा है, की #हम_हर_दिन दूसरों को बस पूर्णिमा का चांद सा देखना चाहते हैं.. इस सच से बेखबर की घटना/बढ़ना हम सभी की फितरत है.. इसमें कुछ भी नया नही है.. हम खुद भी अक्सर पूर्णिमा के चाँद से अमावस का चांद होने की राह पर होते हैं.. हम खुद भी कमजोर हो रहे होते हैं.. बस हम इसे देख नही पाते.. अपनी नासमझी में हम शायद कुदरत के इस सबसे बड़े कायदे को ही भूल बैठे हैं.. अगर इस तरह घटना बढ़ना ही हमारी फितरत है.. तो आखिर सुकून क्या है.. #अपने_अहंकार, #अपनी_ज़िद्द से कहीँ दूर किसी कोने में बैठकर.. खुद में और दूसरों में घटते बढ़ते इस चांद को देखना.. उसे महसूस करना.. इस कुदरत को समझना. उसके कायदों को समझना..#फिर_हल्के_से_मुस्कुराना.. बस यही सुकून है..🙏🙏 (ये पोस्ट वनिता कासनियां पंजाब किसी ने भेजा था l) ॐ। 9 अक्तूबर २०२२ रविवार #शरद #पूर्णिमा है , #अश्विन मास की शरद पूर्णिमा बेहद खास होती है क्योंकि साल में एक बार आने वाली ये पूर्णिमा शरद पूर्णिमा कहलाती है. इसे कुछ लोग #रास पूर्णिमा के नाम से भी जानते हैं. क्योंकि #श्रीकृष्ण ने महारास किया था। कहा जाता है कि इस रात में #खीर को खुले आसमान में चंद्रमा के प्रकाश में रखा जाता है और उसे प्रसाद के रूप में खाया जाता है. बता दें इस बार शरद पूर्णिमा 5 अक्टूबर गुरुवार आज है. सनातन परंपरा के अनुसार कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि पर चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है. मान्यता है की शरद पूर्णिमा की रात चन्द्रमा 16 कलाओं से संपन्न होकर अमृत वर्षा करता है. जो स्वास्थ्य के लिए गुणकारी होती है. इस रात लोग मान्यता के अनुसार खुले में खीर बनाकर रखते हैं और सुबह उसे सब के बीच में बांटा जाता है. यही कारण है कि इस रात लोग अपनी छतों पर या चंद्रमा के आगे खीर बनाकर रखते हैं और प्रसाद के रूप में खीर को बांटा जाता है। बड़ी ही उत्तम तिथि है शरद पूर्णिमा. इसे #कोजागरी व्रत के रूप में भी मनाया जाता है. कहते हैं ये दिन इतना शुभ और सकारात्मक होता है कि छोटे से उपाय से बड़ी-बड़ी विपत्तियां टल जाती हैं. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इसी दिन मां #लक्ष्मी का जन्म हुआ था. इसलिए धन प्राप्ति के लिए भी ये तिथि सबसे उत्तम मानी जाती है. इस दिन प्रेमावतार भगवान श्रीकृष्ण, धन की देवी मां लक्ष्मी और सोलह कलाओं वाले चंद्रमा की उपासना से अलग-अलग वरदान प्राप्त किए जाते है शरद पूर्णिमा का महत्व - शरद पूर्णिमा काफी महत्वपूर्ण तिथि है, इसी तिथि से शरद ऋतु का आरम्भ होता है. - इस दिन चन्द्रमा संपूर्ण और #सोलह कलाओं से युक्त होता है. - इस दिन चन्द्रमा से #अमृत की वर्षा होती है जो धन, प्रेम और सेहत तीनों देती है. - #प्रेम और #कलाओं से परिपूर्ण होने के कारण श्री कृष्ण ने इसी दिन महारास रचाया था. - इस दिन विशेष प्रयोग करके बेहतरीन #सेहत, अपार #प्रेम और खूब सारा #धन पाया जा सकता है - पर #प्रयोगों के लिए कुछ सावधानियों और नियमों के पालन की आवश्यकता है. इस बार शरद पूर्णिमा 05 अक्टूबर को होगी शरद पूर्णिमा पर यदि आप कोई महाप्रयोग कर रहे हैं तो पहले इस तिथि के नियमों और सावधानियों के बारे में जान लेना जरूरी है. शरद पूर्णिमा #व्रत विधि - पूर्णिमा के दिन सुबह में #इष्ट #देव का पूजन करना चाहिए. - #इन्द्र और #महालक्ष्मी जी का पूजन करके घी के दीपक जलाकर उसकी गन्ध पुष्प आदि से पूजा करनी चाहिए. - #गरीब बे #सहारा को खीर का भोजन कराना चाहिए और उन्हें दान दक्षिणा प्रदान करनी चाहिए. - लक्ष्मी प्राप्ति के लिए इस व्रत को विशेष रुप से किया जाता है. इस दिन जागरण करने वालों की धन-संपत्ति में वृद्धि होती है. - रात को चन्द्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही भोजन करना चाहिए. - #गरीबों में खीर आदि #दान करने का विधि-विधान है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन चांद की चांदनी से अमृत बरसता है. शरद पूर्णिमा की सावधानियां - इस दिन पूर्ण रूप से जल और फल ग्रहण करके उपवास रखने का प्रयास करें. - उपवास ना भी रखें तो भी इस दिन सात्विक आहार ही ग्रहण करना चाहिए. - इस दिन काले रंग का प्रयोग न करें, चमकदार सफेद रंग के वस्त्र धारण करें तो ज्यादा अच्छा होगा. अगर आप शरद पूर्णिमा का पूर्ण शुभ फल पाना चाहते हैं तो ऊपर दिए गए इन नियमों को ध्यान में जरूर रखिएगा। #शरद_पूर्णिमा के दिन इस #व्रत_कथा को पढ़ने और सुनने से #मां_लक्ष्मी होती हैं प्रसन्न। #शरद_पूर्णिमा ९ अक्टूबर को है. शरद पूर्णिमा आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा को कौमुदी यानी मूनलाइट में खीर को रखा जाता है. क्योंकि चंद्रमा की किरणों से अमृत की बारिश होती है. इस दिन शाम को मां लक्ष्मी का विधि-विधान से पूजन किया जाता है. मान्यता है कि सच्चे मन ने पूजा- अराधना करने वाले भक्तों पर मां लक्ष्मी कृपा बरसाती हैं. #शरद_पूर्णिमा_की_पौराणिक_कथा #शरद_पूर्णिमा की पौराणिक कथा के अनुसार, बहुत पुराने समय की बात है एक नगर में एक सेठ (साहूकार) को दो बेटियां थीं. दोनो पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थीं. लेकिन बड़ी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधूरा व्रत करती थी. इसका परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी. उसने पंडितों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी, जिसके कारण तुम्हारी संतान पैदा होते ही मर जाती है. पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक करने से तुम्हारी संतान जीवित रह सकती है. उसने हिंदू धर्म की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया. बाद में उसे एक लड़का पैदा हुआ. जो कुछ दिनों बाद ही फिर से मर गया. उसने लड़के को एक पाटे (पीढ़ा) पर लेटा कर ऊपर से कपड़ा ढंक दिया. फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पाटा दे दिया. बड़ी बहन जब उस पर बैठने लगी जो उसका घाघरा बच्चे को छू गया. बच्चा घाघरा छूते ही रोने लगा. तब बड़ी बहन ने कहा कि तुम मुझे कलंक लगाना चाहती थी. मेरे बैठने से यह मर जाता. तब छोटी बहन बोली कि यह तो पहले से मरा हुआ था. तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है. तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है. उसके बाद नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया. . #शरद_पूर्णिमा का वैज्ञानिक महत्व रोगियों के लिए वरदान हैं शरद पूर्णिमा की रात एक अध्ययन के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन औषधियों की स्पंदन क्षमता अधिक होती है। रसाकर्षण के कारण जब अंदर का पदार्थ सांद्र होने लगता है, तब रिक्तिकाओं से विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है। लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था। इस प्रक्रिया से उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी। चांदनी रात में 10 से मध्यरात्रि 12 बजे के बीच कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है। सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है। अध्ययन के अनुसार दुग्ध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है। शोध के अनुसार खीर को चांदी के पात्र में बनाना चाहिए। चांदी में प्रतिरोधकता अधिक होती है। इससे विषाणु दूर रहते हैं। हल्दी का उपयोग निषिद्ध है। प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम 30 मिनट तक शरद पूर्णिमा का स्नान करना चाहिए। रात्रि 10 से 12 बजे तक का समय उपयुक्त रहता है। वर्ष में एक बार शरद पूर्णिमा की रात दमा रोगियों के लिए वरदान बनकर आती है। इस रात्रि में दिव्य औषधि को खीर में मिलाकर उसे चांदनी रात में रखकर प्रात: 4 बजे सेवन किया जाता है। रोगी को रात्रि जागरण करना पड़ता है और औ‍षधि सेवन के पश्चात 2-3 किमी पैदल चलना लाभदायक रहता है।

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समस्त देशवासियों को ‘विजयादशमी’ की हार्दिक शुभकामनाएं।बुराई पर अच्छाई, अधर्म पर धर्म और असत्य पर सत्य की जीत का यह महापर्व सभी के जीवन में नई ऊर्जा व प्रेरणा का संचार करे। देशवासियों को विजय के प्रतीक-पर्व विजयादशमी की बहुत-बहुत बधाई। मेरी कामना है कि यह पावन अवसर हर किसी के जीवन में साहस, संयम और सकारात्मक ऊर्जा लेकर आए।#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम #संगरिया #राजस्थान #पंजाब #हरियाणा#देखना साथ हीं छूटे न #बुजुर्गों 👴👵का कहीं ,पत्ते🌿☘️ पेड़ों पर लगे हों तो हरे रहते हैं |🌳#अंतर्राष्ट्रीय_वृद्धजन_दिवस 🌺पर सभी देवतुल्य बुजुर्गों को मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं |🌹सुख ,समृद्धि और स्वाभिमान को संजोनेवाले बुजुर्ग हमारे समाज की धरोहर है उनका सम्मान करें।नतमस्तक नमन🌺💐☘️🌹💐🎖️🙏🙏🙏

समस्त देशवासियों को ‘विजयादशमी’ की हार्दिक शुभकामनाएं। बुराई पर अच्छाई, अधर्म पर धर्म और असत्य पर सत्य की जीत का यह महापर्व सभी के जीवन में नई ऊर्जा व प्रेरणा का संचार करे।  देशवासियों को विजय के प्रतीक-पर्व विजयादशमी की बहुत-बहुत बधाई। मेरी कामना है कि यह पावन अवसर हर किसी के जीवन में साहस, संयम और सकारात्मक ऊर्जा लेकर आए। #बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम #संगरिया #राजस्थान #पंजाब #हरियाणा #देखना साथ हीं छूटे न #बुजुर्गों 👴👵का कहीं , पत्ते🌿☘️ पेड़ों पर लगे हों तो हरे रहते हैं |🌳 #अंतर्राष्ट्रीय_वृद्धजन_दिवस 🌺 पर सभी देवतुल्य बुजुर्गों को मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं |🌹 सुख ,समृद्धि और स्वाभिमान को संजोनेवाले बुजुर्ग हमारे समाज की धरोहर है उनका सम्मान करें। नतमस्तक नमन🌺💐☘️🌹💐🎖️🙏🙏🙏

लोहड़ी 2021: आज देशभर में मनाई जा रही लोहड़ी, जानिए क्या है इस त्यौहार का महत्व ये त्योहार सुबह से शुरू होकर शाम तक चलता है. लोग पूजा के दौरान आग में मूंगफली रेवड़ी, पॉपकॉर्न और गुड़ चढ़ाते हैं. आग में ये चीजें चढ़ाते समय 'आधार आए दिलाथेर जाए' बोला जाता है. इसका मतलब होता है कि घर में सम्मान आए और गरीबी जाए. किसान सूर्य देवता को भी नमन कर धन्यवाद देते हैं. ये भी माना जाता है कि किसान खेतों में आग जलाकर अग्नि देव से खेतों की उत्पादन क्षमता बढ़ाने की प्रार्थना करते हैं.इसके बाद मूंगफली रेवड़ी, पॉपकॉर्न और गुड़ प्रसाद के रूप में बांटा जाता हैं. लोहड़ी के दिन पकवान के तौर पर मीठे गुड के तिल के चावल, सरसों का साग, मक्के की रोटी बनाई जाती है. लोग इस दिन गुड़-गज्जक खाना शुभ मानते हैं. पूजा के बाद लोग भांगड़ा और गिद्दा करते हैं.लोहड़ी का महत्वलोहड़ी का भारत में बहुत महत्व है. लोहड़ी एक ऐसे पर्व के रूप में मनाई जाती है जो सर्दियों के जाने और बसंत के आने का संकेत है. लोहड़ी यूं तो आग लगाकर सेलिब्रेट की जाती है लेकिन लकड़ियों के अलावा उपलों से भी आग लगाना शुभ माना जाता है.लोहड़ी के पावन मौके पर लोग रबी की फसल यानि गेहूं, जौ, चना, मसूर और सरसों की फसलों को आग को समर्पित करते हैं. इस तरीके से देवताओं को चढ़ावा और धन्यवाद दिया जाता है. ये वही समय होता है जब रबी की फसलें कटघर घर आने लगती हैं. आमतौर लोहड़ी का त्योहार सूर्य देव और अग्नि को आभार प्रकट करने, फसल की उन्नति की कामना करने के लिए मनाया जाता है.लोहड़ी का महत्व एक और वजह से हैं क्योंकि इस दिन सूर्य मकर राशि से गुजर कर उत्तर की ओर रूख करता है. ज्योतिष के मुताबिक, लोहड़ी के बाद से सूर्य उत्तारायण बनाता है जिसे जीवन और सेहत से जोड़कर देखा जाता है.आखिर क्यों मनाते हैं लोहड़ीआपने लोहड़ी तो खूब मनाई होगी लेकिन क्या असल में आप जानते हैं क्यों मनाई जाती है लोहड़ी. बहुत से लोग लोहड़ी को साल का सबसे छोटा दिन और रात सबसे लंबी के तौर पर मनाते हैं. पारंपरिक मान्यता के अनुसार, लोहड़ी फसल की कटाई और बुआई के तौर पर मनाई जाती है. लोहड़ी को लेकर एक मान्यता ये भी है कि इस दिन लोहड़ी का जन्म होलिका की बहन के रूप में हुआ था. बेशक होलिका का दहन हो गया था. किसान लोहड़ी के दिन को नए साल की आर्थिक शुरुआत के रूप में भी मनाते हैं.,