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#माँ दुर्गा को #दुर्गा क्यो कहते हैं?????#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता_कासनियां #पंजाब #संगरिया #राजस्थानहमारे सनातन #धर्म में प्रत्येक देवी-देवता से जुड़े तथ्य हमेशा से ही रोचकता पैदा करते रहे हैं, फिर वह चाहे अपने भक्तों को वरदान देने के संदर्भ में हो या फिर किसी दुष्ट प्राणी को दंड देने की बात हो, शास्त्रों की पौराणिक कथायें हमें पल-पल अचंभित करती हैं, कथाओं के साथ ही विभिन्न देवी-देवताओं के प्राकट्य, तथा उनके नाम से जुड़ी कथायें भी बहुत #रोचक हैं।माँ दुर्गा के नाम से जुड़ी एक कथा काफी प्रचलित है, माना जाता है कि मां दुर्गा जिन्हें मां काली के नाम से भी जाना जाता है, उनका नाम एक बड़ी घटना के बाद ही दुर्गा पड़ा था, श्री दुर्गा सप्तशती में वर्णित एक कथा के अनुसार एक दुष्ट प्राणी पर विजय प्राप्त करने के पश्चात् ही देवी को दुर्गा नाम से बुलाया गया।यह तब की बात है जब प्रह्लाद के वंश में दुर्गम नाम का एक अति भयानक, क्रूर और पराक्रमी दैत्य पैदा हुआ, इस दैत्य के जीवन का एक ही मकसद था- सभी देवी-देवताओं को पराजित कर समस्त सृष्टि पर राज करना, लेकिन जब तक महान देवता इस दुनिया में मौजूद थे, तब तक दुर्गम के लिए यह करना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन भी था।अपनी सूझ-बोझ से दुर्गम ने यह पता लगा लिया था, कि जब तक देवताओं के पास महान वेदों का बल है, तब तक वह उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकेगा, इसलिये उसने उन देवों को हड़पने की योजना बनायीं, उसका मानना था कि यदि यह वेद देवताओं से दूर हो जायेंगे तो वे शक्तिहीन होकर पराजित हो जायेंगे।दुर्गम ने हिमालय #पर्वत जा कर तपस्या करने का फैसला किया, वहां जाकर उसने सृष्टि के रचियता ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या आरम्भ कर दी, यदि उसकी #तपस्या से ब्रह्माजी खुश हो गये तो वे वरदान में उनसे जो चाहे वो मांग सकता था।दुर्गम ने तपस्या शुरू की, सैकड़ों साल बीत गये लेकिन दुर्गम तपस्या में लीन रहा, उसकी कठोर तपस्या के तेज से सभी देवता अचंभित और भयभीत हो गयें, वे समझ ही नहीं पा रहे थे कि आखिरकार ऐसा कौन है? जो इतने ध्यान से तप में लीन बैठा है, तीनों लोकों में हाहाकार मच गया।जहां एक तरफ सभी देवता दुर्गम के तप से हैरान-परेशान हो रहे थे, वहीं दूसरी ओर ब्रह्माजी ने उसे अपना दर्शन देने का निर्णय किया, ब्रह्माजी दुर्गम के सामने प्रकट हुये उस समय भी वह अपनी तपस्या में ध्यान लगाये बैठा था, उसे यह आभास भी नहीं हुआ कि ब्रह्माजी उसके निकट खड़े हैं।उसे समाधि में लीन देखकर ब्रह्माजी बोले- वत्स! अपने नेत्र खोलो, मैं तुम्हारी तपस्या से अत्यंत प्रसन्न हूंँ और तुम्हें मुंहमांगा वरदान देने आया हूंँ, मांगो तुम्हें क्या चाहियें, भगवान् ब्रह्माजी के वचन सुन दुर्गम ने अपने नेत्र खोले, ब्रह्माजी को अपने सामने देख उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा, उसे लगा कि अब उसकी सभी मनोकामनायें अवश्य पूर्ण होगी।वह बोला- हे पितामह! यदि आप मेरे इस कठोर तप से प्रसन्न हैं तो मुझे सभी वेद देने की कृपा कीजिये, सब वेद मेरे अधिकार में हो जायें, वेदों के साथ ही मुझे ऐसा अतुल्य बल प्रदान किजिये जिससे कि देवता, मनुष्य, गंधर्व, यक्ष, नाग कोई भी मुझे पराजित न कर सके, दुर्गम की प्रार्थना सुनते ही ब्रह्माजी ने तथास्तु कहा और वहां से ब्रह्मलोक लौट गये।#ब्रह्माजी द्वारा दुर्गम को वरदान देते ही देवी-देवता, ऋषि-मुनि सारे वेदों को भूल गये, इतना ही नहीं, सभी स्नान, संध्या, हवन, श्राद्ध, यज्ञ एवं जप आदि वैदिक क्रियाएं नष्ट हो गयीं, सारे भूमण्डल पर भीषण हाहाकार मच गया, वातावरण ने भी अपना प्रकोप दिखाना आरंभ कर दिया, वर्षा बंद हो गई और पृथ्वी पर चारों ओर अकाल पड़ गया।यह देख सभी देवता बहुत दुखी हुयें, केवल यही उनकी चिंता का कारण नहीं था, बल्कि शक्तिहीन हो जाने की वजह से वह दैत्यों से भी पराजित हो गये, अब हर जगह दैत्यों का राज था और देवता परेशान थे, अपनी परेशानी का हल उन्हें मिल नहीं रहा था, सभी देवताओं ने देवी भगवती से इस कठिनाई का समाधान मांगा, हिमालय पर उन्हें माँ भगवती के साक्षात दर्शन हुये। अपने हालात से परेशान देवताओं ने माता भगवती से मदद मांगी, तब देवी ने उन्हें यह भरोसा दिया कि वे किसी भी प्रकार से सभी वेदों को दुर्गम से वापस लाएंगी और देवताओं को सौंपेगी, जिसके फलस्वरूप उन्हें उनकी शक्तियां वापस मिलेंगी, यह कहकर देवी दुर्गम को पराजित करने के लिए हिमालय से निकल पड़ीं। दुर्गम को पहले ही देवी के आने की खबर मिल गई थी, जिसके बाद उसने दैत्यों की एक विशाल सेना खड़ी कर ली, देवी के साथ देवताओं की सेना भी थी, लेकिन फिर भी दैत्यों की सेना को नष्ट करना कठिन था, वहां पहुंचकर देवताओं और दैत्यों में भयंकर युद्ध आरम्भ हो गया, दोनों ओर से भीषण शक्तियों का प्रयोग होने लगा। लेकिन देवों के ऊपर दैत्यों की सेना भारी पड़ रही थी जिसका कारण था दुर्गम को ब्रह्माजी द्वारा मिला हुआ वरदान, इस वरदान के अनुसार देवता उसे किसी भी प्रकार से पराजित नहीं कर सकते थे, इसलिये उस पर हो रहे वार का कोई असर ही नहीं हो रहा था, तब माँ भगवती ने अपने अंश से आठ देवियों का निर्माण किया। यह आठ देवियां थी- कालिका, तारिणी, बगला, मातंगी, छिन्नमस्ता, तुलजा, कामाक्षी, और भैरवी, इन देवियों में माता भगवती की तरह ही अपार शक्तियां थीं, जिनसे वह दैत्यों से युद्ध करने की क्षमता रखती थीं, इन सभी देवियों को आज भी कलयुग में माना जाता है, लोग इनकी पूजा करते हैं तथा इन्हें प्रसन्न करने के लिये व्रत-उपवास भी रखते हैं।इसके बाद माता भगवती के साथ देवियों और दैत्यों के बीच भीषण युद्ध हुआ, धीरे-धीरे सभी दैत्य पराजित होने लगे, माता भगवती द्वारा प्रकट की गयीं देवियों के सामने दैत्यों की शक्तियां बेअसर होने लगीं, अंत में #माता जगदम्बा के वार से दुर्गम का वध हो गया, इस तरह दुष्ट एवं पापी #दैत्य दुर्गम के प्राण हर लिये गये। दुर्गम को पराजित करने की #खुशी में सभी देवतायें आकाश से माता पर #फूलों की वर्षा करने लगे, माता भगवती द्वारा दुर्गम को मार कर #देवताओं को वेद दिए गये, जिसके बाद उनकी सभी शक्तियां लौट आयीं, इस घटना के बाद ही दुर्गम का वध करने के कारण भगवती का नाम दुर्गा पड़ गया।जय हो माँ #भगवती!

#माँ दुर्गा को #दुर्गा क्यो कहते हैं?????

#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता_कासनियां #पंजाब #संगरिया #राजस्थान

हमारे सनातन #धर्म में प्रत्येक देवी-देवता से जुड़े तथ्य हमेशा से ही रोचकता पैदा करते रहे हैं, फिर वह चाहे अपने भक्तों को वरदान देने के संदर्भ में हो या फिर किसी दुष्ट प्राणी को दंड देने की बात हो, शास्त्रों की पौराणिक कथायें हमें पल-पल अचंभित करती हैं, कथाओं के साथ ही विभिन्न देवी-देवताओं के प्राकट्य,  तथा उनके नाम से जुड़ी कथायें भी बहुत #रोचक हैं।

माँ दुर्गा के नाम से जुड़ी एक कथा काफी प्रचलित है, माना जाता है कि मां दुर्गा जिन्हें मां काली के नाम से भी जाना जाता है, उनका नाम एक बड़ी घटना के बाद ही दुर्गा पड़ा था, श्री दुर्गा सप्तशती में वर्णित एक कथा के अनुसार एक दुष्ट प्राणी पर विजय प्राप्त करने के पश्चात् ही देवी को दुर्गा नाम से बुलाया गया।

यह तब की बात है जब प्रह्लाद के वंश में दुर्गम नाम का एक अति भयानक, क्रूर और पराक्रमी दैत्य पैदा हुआ, इस दैत्य के जीवन का एक ही मकसद था- सभी देवी-देवताओं को पराजित कर समस्त सृष्टि पर राज करना, लेकिन जब तक महान देवता इस दुनिया में मौजूद थे, तब तक दुर्गम के लिए यह करना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन भी था।

अपनी सूझ-बोझ से दुर्गम ने यह पता लगा लिया था, कि जब तक देवताओं के पास महान वेदों का बल है, तब तक वह उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकेगा, इसलिये उसने उन देवों को हड़पने की योजना बनायीं, उसका मानना था कि यदि यह वेद देवताओं से दूर हो जायेंगे तो वे शक्तिहीन होकर पराजित हो जायेंगे।

दुर्गम ने हिमालय #पर्वत जा कर तपस्या करने का फैसला किया, वहां जाकर उसने सृष्टि के रचियता ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या आरम्भ कर दी, यदि उसकी #तपस्या से ब्रह्माजी खुश हो गये तो वे वरदान में उनसे जो चाहे वो मांग सकता था।

दुर्गम ने तपस्या शुरू की, सैकड़ों साल बीत गये लेकिन दुर्गम तपस्या में लीन रहा, उसकी कठोर तपस्या के तेज से सभी देवता अचंभित और भयभीत हो गयें, वे समझ ही नहीं पा रहे थे कि आखिरकार ऐसा कौन है? जो इतने ध्यान से तप में लीन बैठा है, तीनों लोकों में हाहाकार मच गया।

जहां एक तरफ सभी देवता दुर्गम के तप से हैरान-परेशान हो रहे थे, वहीं दूसरी ओर ब्रह्माजी ने उसे अपना दर्शन देने का निर्णय किया, ब्रह्माजी  दुर्गम के सामने प्रकट हुये उस समय भी वह अपनी तपस्या में ध्यान लगाये बैठा था, उसे यह आभास भी नहीं हुआ कि ब्रह्माजी उसके निकट खड़े हैं।

उसे समाधि में लीन देखकर ब्रह्माजी बोले- वत्स! अपने नेत्र खोलो, मैं तुम्हारी तपस्या से अत्यंत प्रसन्न हूंँ और तुम्हें मुंहमांगा वरदान देने आया हूंँ, मांगो तुम्हें क्या चाहियें, भगवान् ब्रह्माजी के वचन सुन दुर्गम ने अपने नेत्र खोले, ब्रह्माजी को अपने सामने देख उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा, उसे लगा कि अब उसकी सभी मनोकामनायें अवश्य पूर्ण होगी।

वह बोला- हे पितामह! यदि आप मेरे इस कठोर तप से प्रसन्न हैं तो मुझे सभी वेद देने की कृपा कीजिये, सब वेद मेरे अधिकार में हो जायें, वेदों के साथ ही मुझे ऐसा अतुल्य बल प्रदान किजिये  जिससे कि देवता, मनुष्य, गंधर्व, यक्ष, नाग कोई भी मुझे पराजित न कर सके, दुर्गम की प्रार्थना सुनते ही ब्रह्माजी ने तथास्तु कहा और वहां से ब्रह्मलोक लौट गये।

#ब्रह्माजी द्वारा दुर्गम को वरदान देते ही देवी-देवता, ऋषि-मुनि सारे वेदों को भूल गये, इतना ही नहीं, सभी स्नान, संध्या, हवन, श्राद्ध, यज्ञ एवं जप आदि वैदिक क्रियाएं नष्ट हो गयीं, सारे भूमण्डल पर भीषण हाहाकार मच गया, वातावरण ने भी अपना प्रकोप दिखाना आरंभ कर दिया, वर्षा बंद हो गई और पृथ्वी पर चारों ओर अकाल पड़ गया।

यह देख सभी देवता बहुत दुखी हुयें, केवल यही उनकी चिंता का कारण नहीं था, बल्कि शक्तिहीन हो जाने की वजह से वह दैत्यों से भी पराजित हो गये, अब हर जगह दैत्यों का राज था और देवता परेशान थे, अपनी परेशानी का हल उन्हें मिल नहीं रहा था, सभी देवताओं ने  देवी भगवती से इस कठिनाई का समाधान मांगा, हिमालय पर उन्हें माँ भगवती के साक्षात दर्शन हुये। 

अपने हालात से परेशान देवताओं ने माता भगवती से मदद मांगी, तब देवी ने उन्हें यह भरोसा दिया कि वे किसी भी प्रकार से सभी वेदों को दुर्गम से वापस लाएंगी और देवताओं को सौंपेगी, जिसके फलस्वरूप उन्हें उनकी शक्तियां वापस मिलेंगी, यह कहकर देवी दुर्गम को पराजित करने के लिए हिमालय से निकल पड़ीं। 

दुर्गम को पहले ही देवी के आने की खबर मिल गई थी, जिसके बाद उसने दैत्यों की एक विशाल सेना खड़ी कर ली, देवी के साथ देवताओं की सेना भी थी, लेकिन फिर भी दैत्यों की सेना को नष्ट करना कठिन था, वहां पहुंचकर देवताओं और दैत्यों में भयंकर युद्ध आरम्भ हो गया, दोनों ओर से भीषण शक्तियों का प्रयोग होने लगा। 

लेकिन देवों के ऊपर दैत्यों की सेना भारी पड़ रही थी जिसका कारण था दुर्गम को ब्रह्माजी द्वारा मिला हुआ वरदान, इस वरदान के अनुसार देवता उसे किसी भी प्रकार से पराजित नहीं कर सकते थे, इसलिये उस पर हो रहे वार का कोई असर ही नहीं हो रहा था, तब माँ भगवती ने अपने अंश से आठ देवियों का निर्माण किया। 

यह आठ देवियां थी- कालिका, तारिणी, बगला, मातंगी, छिन्नमस्ता, तुलजा, कामाक्षी, और भैरवी, इन देवियों में माता भगवती की तरह ही अपार शक्तियां थीं, जिनसे वह दैत्यों से युद्ध करने की क्षमता रखती थीं, इन सभी देवियों को आज भी कलयुग में माना जाता है, लोग इनकी पूजा करते हैं तथा इन्हें प्रसन्न करने के लिये व्रत-उपवास भी रखते हैं।

इसके बाद माता भगवती के साथ देवियों और दैत्यों के बीच भीषण युद्ध हुआ, धीरे-धीरे सभी दैत्य पराजित होने लगे, माता भगवती द्वारा प्रकट की गयीं देवियों के सामने दैत्यों की शक्तियां बेअसर होने लगीं, अंत में #माता जगदम्बा के वार से दुर्गम का वध हो गया, इस तरह दुष्ट एवं पापी #दैत्य दुर्गम के प्राण हर लिये गये। 

दुर्गम को पराजित करने की #खुशी में सभी देवतायें आकाश से माता पर #फूलों की वर्षा करने लगे, माता भगवती द्वारा दुर्गम को मार कर #देवताओं को वेद दिए गये, जिसके बाद उनकी सभी शक्तियां लौट आयीं, इस घटना के बाद ही दुर्गम का वध करने के कारण भगवती का नाम दुर्गा पड़ गया।

जय हो माँ #भगवती!

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"ॐ ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद महालक्ष्मये नमः" का जाप करें. मां लक्ष्मी जीवन की तमाम समस्याओं का समाधान कर सकती हैं. बस उनते सच्चे मन से अपनी बात पहुंचानी होगी और जब धरती पर साक्षात आएं तो इससे पावन घड़ी और क्या हो सकती है. #शरद_पूर्णिमा #राजस्थान #हरियाणा #संगरिया वर्ष के बारह महीनों में ये पूर्णिमा ऐसी है, जो तन, मन और धन तीनों के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है। इस पूर्णिमा को चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है, तो धन की देवी महालक्ष्मी रात को ये देखने के लिए निकलती हैं कि कौन जाग रहा है और वह अपने कर्मनिष्ठ भक्तों को धन-धान्य से भरपूर करती हैं। शरद_ पूर्णिमा का एक नाम *कोजागरी पूर्णिमा* भी है यानी लक्ष्मी जी पूछती हैं- कौन जाग रहा है? अश्विनी महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा अश्विनी नक्षत्र में होता है इसलिए इस महीने का नाम अश्विनी पड़ा है। एक महीने में चंद्रमा जिन 27 नक्षत्रों में भ्रमण करता है, उनमें ये सबसे पहला है और #आश्विन_नक्षत्र की पूर्णिमा आरोग्य देती है। केवल शरद_पूर्णिमा को ही चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से संपूर्ण होता है और पृथ्वी के सबसे ज्यादा निकट भी। चंद्रमा की किरणों से इस पूर्णिमा को अमृत बरसता है। #बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम वर्ष भर इस #पूर्णिमा की प्रतीक्षा करते हैं। जीवनदायिनी रोगनाशक जड़ी-बूटियों को वह शरद पूर्णिमा की चांदनी में रखते हैं। अमृत से नहाई इन जड़ी-बूटियों से जब दवा बनायी जाती है तो वह रोगी के ऊपर तुंरत असर करती है। चंद्रमा को वेदं-पुराणों में मन के समान माना गया है- चंद्रमा_मनसो_जात:।वायु पुराण में चंद्रमा को जल का कारक बताया गया है। प्राचीन ग्रंथों में चंद्रमा को औषधीश यानी औषधियों का स्वामी कहा गया है। ब्रह्मपुराण के अनुसार- सोम या चंद्रमा से जो सुधामय तेज पृथ्वी पर गिरता है उसी से औषधियों की उत्पत्ति हुई और जब औषधी 16 कला संपूर्ण हो तो अनुमान लगाइए उस दिन औषधियों को कितना बल मिलेगा। #शरद_पूर्णिमा की शीतल चांदनी में रखी खीर खाने से शरीर के सभी रोग दूर होते हैं। ज्येष्ठ, आषाढ़, सावन और भाद्रपद मास में शरीर में पित्त का जो संचय हो जाता है, शरद पूर्णिमा की शीतल धवल चांदनी में रखी #खीर खाने से पित्त बाहर निकलता है। लेकिन इस #खीर को एक विशेष विधि से बनाया जाता है। पूरी रात चांद की चांदनी में रखने के बाद सुबह खाली पेट यह खीर खाने से सभी रोग दूर होते हैं, शरीर निरोगी होता है। #शरद_पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहते हैं। स्वयं सोलह कला संपूर्ण भगवान श्रीकृष्ण से भी जुड़ी है यह पूर्णिमा। इस रात को अपनी राधा रानी और अन्य सखियों के साथ श्रीकृष्ण महारास रचाते हैं। कहते हैं जब वृन्दावन में भगवान कृष्ण महारास रचा रहे थे तो चंद्रमा आसमान से सब देख रहा था और वह इतना भाव-विभोर हुआ कि उसने अपनी शीतलता के साथ पृथ्वी पर #अमृत_की_वर्षा आरंभ कर दी। गुजरात में #शरद_पूर्णिमा को लोग रास रचाते हैं और गरबा खेलते हैं। मणिपुर में भी श्रीकृष्ण भक्त रास रचाते हैं। पश्चिम बंगाल और ओडिशा में शरद पूर्णिमा की रात को महालक्ष्मी की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस पूर्णिमा को जो महालक्ष्मी का पूजन करते हैं और रात भर जागते हैं, उनकी सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। ओडिशा में #शरद_पूर्णिमा को #कुमार_पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है। आदिदेव महादेव और देवी पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म इसी पूर्णिमा को हुआ था। गौर वर्ण, आकर्षक, सुंदर कार्तिकेय की पूजा कुंवारी लड़कियां उनके जैसा पति पाने के लिए करती हैं। #शरद_पूर्णिमा 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बढ़ना ही हमारी फितरत है.. तो आखिर सुकून क्या है.. #अपने_अहंकार, #अपनी_ज़िद्द से कहीँ दूर किसी कोने में बैठकर.. खुद में और दूसरों में घटते बढ़ते इस चांद को देखना.. उसे महसूस करना.. इस कुदरत को समझना. उसके कायदों को समझना..#फिर_हल्के_से_मुस्कुराना.. बस यही सुकून है..🙏🙏 (ये पोस्ट वनिता कासनियां पंजाब किसी ने भेजा था l) ॐ। 9 अक्तूबर २०२२ रविवार #शरद #पूर्णिमा है , #अश्विन मास की शरद पूर्णिमा बेहद खास होती है क्योंकि साल में एक बार आने वाली ये पूर्णिमा शरद पूर्णिमा कहलाती है. इसे कुछ लोग #रास पूर्णिमा के नाम से भी जानते हैं. क्योंकि #श्रीकृष्ण ने महारास किया था। कहा जाता है कि इस रात में #खीर को खुले आसमान में चंद्रमा के प्रकाश में रखा जाता है और उसे प्रसाद के रूप में खाया जाता है. बता दें इस बार शरद पूर्णिमा 5 अक्टूबर गुरुवार आज है. सनातन परंपरा के अनुसार कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि पर चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है. मान्यता है की शरद पूर्णिमा की रात चन्द्रमा 16 कलाओं से संपन्न होकर अमृत वर्षा करता है. जो स्वास्थ्य के लिए गुणकारी होती है. इस रात लोग मान्यता के अनुसार खुले में खीर बनाकर रखते हैं और सुबह उसे सब के बीच में बांटा जाता है. यही कारण है कि इस रात लोग अपनी छतों पर या चंद्रमा के आगे खीर बनाकर रखते हैं और प्रसाद के रूप में खीर को बांटा जाता है। बड़ी ही उत्तम तिथि है शरद पूर्णिमा. इसे #कोजागरी व्रत के रूप में भी मनाया जाता है. कहते हैं ये दिन इतना शुभ और सकारात्मक होता है कि छोटे से उपाय से बड़ी-बड़ी विपत्तियां टल जाती हैं. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इसी दिन मां #लक्ष्मी का जन्म हुआ था. इसलिए धन प्राप्ति के लिए भी ये तिथि सबसे उत्तम मानी जाती है. इस दिन प्रेमावतार भगवान श्रीकृष्ण, धन की देवी मां लक्ष्मी और सोलह कलाओं वाले चंद्रमा की उपासना से अलग-अलग वरदान प्राप्त किए जाते है शरद पूर्णिमा का महत्व - शरद पूर्णिमा काफी महत्वपूर्ण तिथि है, इसी तिथि से शरद ऋतु का आरम्भ होता है. - इस दिन चन्द्रमा संपूर्ण और #सोलह कलाओं से युक्त होता है. - इस दिन चन्द्रमा से #अमृत की वर्षा होती है जो धन, प्रेम और सेहत तीनों देती है. - #प्रेम और #कलाओं से परिपूर्ण होने के कारण श्री कृष्ण ने इसी दिन महारास रचाया था. - इस दिन विशेष प्रयोग करके बेहतरीन #सेहत, अपार #प्रेम और खूब सारा #धन पाया जा सकता है - पर #प्रयोगों के लिए कुछ सावधानियों और नियमों के पालन की आवश्यकता है. इस बार शरद पूर्णिमा 05 अक्टूबर को होगी शरद पूर्णिमा पर यदि आप कोई महाप्रयोग कर रहे हैं तो पहले इस तिथि के नियमों और सावधानियों के बारे में जान लेना जरूरी है. शरद पूर्णिमा #व्रत विधि - पूर्णिमा के दिन सुबह में #इष्ट #देव का पूजन करना चाहिए. - #इन्द्र और #महालक्ष्मी जी का पूजन करके घी के दीपक जलाकर उसकी गन्ध पुष्प आदि से पूजा करनी चाहिए. - #गरीब बे #सहारा को खीर का भोजन कराना चाहिए और उन्हें दान दक्षिणा प्रदान करनी चाहिए. - लक्ष्मी प्राप्ति के लिए इस व्रत को विशेष रुप से किया जाता है. इस दिन जागरण करने वालों की धन-संपत्ति में वृद्धि होती है. - रात को चन्द्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही भोजन करना चाहिए. - #गरीबों में खीर आदि #दान करने का विधि-विधान है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन चांद की चांदनी से अमृत बरसता है. शरद पूर्णिमा की सावधानियां - इस दिन पूर्ण रूप से जल और फल ग्रहण करके उपवास रखने का प्रयास करें. - उपवास ना भी रखें तो भी इस दिन सात्विक आहार ही ग्रहण करना चाहिए. - इस दिन काले रंग का प्रयोग न करें, चमकदार सफेद रंग के वस्त्र धारण करें तो ज्यादा अच्छा होगा. अगर आप शरद पूर्णिमा का पूर्ण शुभ फल पाना चाहते हैं तो ऊपर दिए गए इन नियमों को ध्यान में जरूर रखिएगा। #शरद_पूर्णिमा के दिन इस #व्रत_कथा को पढ़ने और सुनने से #मां_लक्ष्मी होती हैं प्रसन्न। #शरद_पूर्णिमा ९ अक्टूबर को है. शरद पूर्णिमा आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा को कौमुदी यानी मूनलाइट में खीर को रखा जाता है. क्योंकि चंद्रमा की किरणों से अमृत की बारिश होती है. इस दिन शाम को मां लक्ष्मी का विधि-विधान से पूजन किया जाता है. मान्यता है कि सच्चे मन ने पूजा- अराधना करने वाले भक्तों पर मां लक्ष्मी कृपा बरसाती हैं. #शरद_पूर्णिमा_की_पौराणिक_कथा #शरद_पूर्णिमा की पौराणिक कथा के अनुसार, बहुत पुराने समय की बात है एक नगर में एक सेठ (साहूकार) को दो बेटियां थीं. दोनो पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थीं. लेकिन बड़ी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधूरा व्रत करती थी. इसका परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी. उसने पंडितों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी, जिसके कारण तुम्हारी संतान पैदा होते ही मर जाती है. पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक करने से तुम्हारी संतान जीवित रह सकती है. उसने हिंदू धर्म की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया. बाद में उसे एक लड़का पैदा हुआ. जो कुछ दिनों बाद ही फिर से मर गया. उसने लड़के को एक पाटे (पीढ़ा) पर लेटा कर ऊपर से कपड़ा ढंक दिया. फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पाटा दे दिया. बड़ी बहन जब उस पर बैठने लगी जो उसका घाघरा बच्चे को छू गया. बच्चा घाघरा छूते ही रोने लगा. तब बड़ी बहन ने कहा कि तुम मुझे कलंक लगाना चाहती थी. मेरे बैठने से यह मर जाता. तब छोटी बहन बोली कि यह तो पहले से मरा हुआ था. तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है. तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है. उसके बाद नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया. . #शरद_पूर्णिमा का वैज्ञानिक महत्व रोगियों के लिए वरदान हैं शरद पूर्णिमा की रात एक अध्ययन के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन औषधियों की स्पंदन क्षमता अधिक होती है। रसाकर्षण के कारण जब अंदर का पदार्थ सांद्र होने लगता है, तब रिक्तिकाओं से विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है। लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था। इस प्रक्रिया से उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी। चांदनी रात में 10 से मध्यरात्रि 12 बजे के बीच कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है। सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है। अध्ययन के अनुसार दुग्ध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है। शोध के अनुसार खीर को चांदी के पात्र में बनाना चाहिए। चांदी में प्रतिरोधकता अधिक होती है। इससे विषाणु दूर रहते हैं। हल्दी का उपयोग निषिद्ध है। प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम 30 मिनट तक शरद पूर्णिमा का स्नान करना चाहिए। रात्रि 10 से 12 बजे तक का समय उपयुक्त रहता है। वर्ष में एक बार शरद पूर्णिमा की रात दमा रोगियों के लिए वरदान बनकर आती है। इस रात्रि में दिव्य औषधि को खीर में मिलाकर उसे चांदनी रात में रखकर प्रात: 4 बजे सेवन किया जाता है। रोगी को रात्रि जागरण करना पड़ता है और औ‍षधि सेवन के पश्चात 2-3 किमी पैदल चलना लाभदायक रहता है।

    Sharad Purnima 2022 Date: शरद पूर्णिमा कब है? जानें इस दिन क्यों खाते हैं चांद की रोशनी में रखी खीर By #वनिता #कासनियां #पंजाब🌺🙏🙏🌺 Sharad Purnima 2022 Date: अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को रास पूर्णिमा या शरद पूर्णिमा कहा जाता है. शरद पूर्णिमा की रात्रि पर चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है. इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण रहता है. चंद्रमा की किरणें अमृत की वर्षा करती हैं. #facebook #twitter जानें, शरद पूर्णिमा की चमत्कारी खीर खाने से क्या होते हैं फायदे Sharad Purnima 2022 Date: हर माह में पूर्णिमा आती है, लेकिन शरद पूर्णिमा का महत्व ज्यादा खास बताया गया है. #हिंदू #धर्म #ग्रंथों में भी इस पूर्णिमा को विशेष बताया गया है. अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को रास पूर्णिमा या शरद पूर्णिमा कहा जाता है. शरद पूर्णिमा की रात्रि पर #चंद्रमा #पृथ्वी के सबसे निकट होता है. इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण रहता है. चंद्रमा की किरणें अमृत की वर्षा करती हैं. इस साल शरद पूर्णिमा 09 अक्टूबर को पड़ रही है. शरद पूर्णिमा की तिथि अश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्...

समस्त देशवासियों को ‘विजयादशमी’ की हार्दिक शुभकामनाएं।बुराई पर अच्छाई, अधर्म पर धर्म और असत्य पर सत्य की जीत का यह महापर्व सभी के जीवन में नई ऊर्जा व प्रेरणा का संचार करे। देशवासियों को विजय के प्रतीक-पर्व विजयादशमी की बहुत-बहुत बधाई। मेरी कामना है कि यह पावन अवसर हर किसी के जीवन में साहस, संयम और सकारात्मक ऊर्जा लेकर आए।#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम #संगरिया #राजस्थान #पंजाब #हरियाणा#देखना साथ हीं छूटे न #बुजुर्गों 👴👵का कहीं ,पत्ते🌿☘️ पेड़ों पर लगे हों तो हरे रहते हैं |🌳#अंतर्राष्ट्रीय_वृद्धजन_दिवस 🌺पर सभी देवतुल्य बुजुर्गों को मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं |🌹सुख ,समृद्धि और स्वाभिमान को संजोनेवाले बुजुर्ग हमारे समाज की धरोहर है उनका सम्मान करें।नतमस्तक नमन🌺💐☘️🌹💐🎖️🙏🙏🙏

समस्त देशवासियों को ‘विजयादशमी’ की हार्दिक शुभकामनाएं। बुराई पर अच्छाई, अधर्म पर धर्म और असत्य पर सत्य की जीत का यह महापर्व सभी के जीवन में नई ऊर्जा व प्रेरणा का संचार करे।  देशवासियों को विजय के प्रतीक-पर्व विजयादशमी की बहुत-बहुत बधाई। मेरी कामना है कि यह पावन अवसर हर किसी के जीवन में साहस, संयम और सकारात्मक ऊर्जा लेकर आए। #बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम #संगरिया #राजस्थान #पंजाब #हरियाणा #देखना साथ हीं छूटे न #बुजुर्गों 👴👵का कहीं , पत्ते🌿☘️ पेड़ों पर लगे हों तो हरे रहते हैं |🌳 #अंतर्राष्ट्रीय_वृद्धजन_दिवस 🌺 पर सभी देवतुल्य बुजुर्गों को मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं |🌹 सुख ,समृद्धि और स्वाभिमान को संजोनेवाले बुजुर्ग हमारे समाज की धरोहर है उनका सम्मान करें। नतमस्तक नमन🌺💐☘️🌹💐🎖️🙏🙏🙏

लोहड़ी 2021: आज देशभर में मनाई जा रही लोहड़ी, जानिए क्या है इस त्यौहार का महत्व ये त्योहार सुबह से शुरू होकर शाम तक चलता है. लोग पूजा के दौरान आग में मूंगफली रेवड़ी, पॉपकॉर्न और गुड़ चढ़ाते हैं. आग में ये चीजें चढ़ाते समय 'आधार आए दिलाथेर जाए' बोला जाता है. इसका मतलब होता है कि घर में सम्मान आए और गरीबी जाए. किसान सूर्य देवता को भी नमन कर धन्यवाद देते हैं. ये भी माना जाता है कि किसान खेतों में आग जलाकर अग्नि देव से खेतों की उत्पादन क्षमता बढ़ाने की प्रार्थना करते हैं.इसके बाद मूंगफली रेवड़ी, पॉपकॉर्न और गुड़ प्रसाद के रूप में बांटा जाता हैं. लोहड़ी के दिन पकवान के तौर पर मीठे गुड के तिल के चावल, सरसों का साग, मक्के की रोटी बनाई जाती है. लोग इस दिन गुड़-गज्जक खाना शुभ मानते हैं. पूजा के बाद लोग भांगड़ा और गिद्दा करते हैं.लोहड़ी का महत्वलोहड़ी का भारत में बहुत महत्व है. लोहड़ी एक ऐसे पर्व के रूप में मनाई जाती है जो सर्दियों के जाने और बसंत के आने का संकेत है. लोहड़ी यूं तो आग लगाकर सेलिब्रेट की जाती है लेकिन लकड़ियों के अलावा उपलों से भी आग लगाना शुभ माना जाता है.लोहड़ी के पावन मौके पर लोग रबी की फसल यानि गेहूं, जौ, चना, मसूर और सरसों की फसलों को आग को समर्पित करते हैं. इस तरीके से देवताओं को चढ़ावा और धन्यवाद दिया जाता है. ये वही समय होता है जब रबी की फसलें कटघर घर आने लगती हैं. आमतौर लोहड़ी का त्योहार सूर्य देव और अग्नि को आभार प्रकट करने, फसल की उन्नति की कामना करने के लिए मनाया जाता है.लोहड़ी का महत्व एक और वजह से हैं क्योंकि इस दिन सूर्य मकर राशि से गुजर कर उत्तर की ओर रूख करता है. ज्योतिष के मुताबिक, लोहड़ी के बाद से सूर्य उत्तारायण बनाता है जिसे जीवन और सेहत से जोड़कर देखा जाता है.आखिर क्यों मनाते हैं लोहड़ीआपने लोहड़ी तो खूब मनाई होगी लेकिन क्या असल में आप जानते हैं क्यों मनाई जाती है लोहड़ी. बहुत से लोग लोहड़ी को साल का सबसे छोटा दिन और रात सबसे लंबी के तौर पर मनाते हैं. पारंपरिक मान्यता के अनुसार, लोहड़ी फसल की कटाई और बुआई के तौर पर मनाई जाती है. लोहड़ी को लेकर एक मान्यता ये भी है कि इस दिन लोहड़ी का जन्म होलिका की बहन के रूप में हुआ था. बेशक होलिका का दहन हो गया था. किसान लोहड़ी के दिन को नए साल की आर्थिक शुरुआत के रूप में भी मनाते हैं.,