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कन्याकुमारीBy समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब:🥦🌹🙏🙏🌹🥦कन्याकुमारी भारत के दक्षिणी छोर पर तमिलनाडु राज्य का एक तटीय शहर हैकिसी अन्य भाषा में पढ़ेंडाउनलोड करेंध्यान रखेंसंपादित करेंकन्याकुमारी (Kanyakumari) भारत के तमिल नाडु राज्य के कन्याकुमारी ज़िले में स्थित एक नगर है। यह भारत की मुख्यभूमि का दक्षिणतम नगर है। यहाँ से दक्षिण में हिन्द महासागर, पूर्व में बंगाल की खाड़ी और पश्चिम में अरब सागर है। इनके साथ सटा हुआ तट 71.5 किमी तक विस्तारित है। समुद्र के साथ तिरुवल्लुवर मूर्ति और विवेकानन्द स्मारक शिला खड़े हैं। कन्याकुमारी एक महत्वपूर्ण हिन्दू तीर्थस्थल भी है।[1][2]कन्याकुमारीKanyakumariகன்னியாகுமரிविवेकानंद स्मारक, कन्याकुमारीकन्याकुमारीतमिल नाडु में स्थितिनिर्देशांक: 8°05′02″N 77°32′46″E / 8.084°N 77.546°Eदेश भारतप्रान्ततमिल नाडुज़िलाकन्याकुमारी ज़िलाजनसंख्या (2011) • कुल29,761भाषा • प्रचलिततमिलसमय मण्डलभारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30)पिनकोड629 702दूरभाष कोड91-4652 और 91-4651वाहन पंजीकरणTN 74 और TN 75वेबसाइटwww.kanyakumari.tn.nic.inविवरणसंपादित करेंकन्याकुमारी हिन्द महासागर, बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर का संगम स्थल है, जहां भिन्न सागर अपने विभिन्न रंगो से मनोरम छटा बिखेरते हैं। भारत के सबसे दक्षिण छोर पर बसा कन्याकुमारी वर्षो से कला, संस्कृति, सभ्यता का प्रतीक रहा है। भारत के पर्यटक स्थल के रूप में भी इस स्थान का अपना ही महत्च है। दूर-दूर फैले समुद्र के विशाल लहरों के बीच यहां का सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा बेहद आकर्षक लगता हैं। समुद्र बीच पर फैले रंग बिरंगी रेत इसकी सुंदरता में चार चांद लगा देता है।इतिहाससंपादित करेंकन्याकुमारी दक्षिण भारत के महान शासकों चोल, चेर, पांड्य के अधीन रहा है। यहां के स्मारकों पर इन शासकों की छाप स्पष्ट दिखाई देती है। इस जगह का नाम कन्‍याकुमारी पड़ने के पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने असुर बानासुरन को वरदान दिया था कि कुंवारी कन्या के अलावा किसी के हाथों उसका वध नहीं होगा। प्राचीन काल में भारत पर शासन करने वाले राजा भरत को आठ पुत्री और एक पुत्र था। भरत ने अपना साम्राज्य को नौ बराबर हिस्सों में बांटकर अपनी संतानों को दे दिया। दक्षिण का हिस्सा उसकी पुत्री कुमारी को मिला। कुमारी को शक्ति देवी का अवतार माना जाता था। कुमारी ने दक्षिण भारत के इस हिस्से पर कुशलतापूर्वक शासन किया। उसकी ईच्‍छा थी कि वह शिव से विवाह करें। इसके लिए वह उनकी पूजा करती थी। शिव विवाह के लिए राजी भी हो गए थे और विवाह की तैयारियां होने लगीं थी। लेकिन नारद मुनि चाहते थे कि बानासुरन का कुमारी के हाथों वध हो जाए। इस कारण शिव और देवी कुमारी का विवाह नहीं हो पाया। इस बीच बानासुरन को जब कुमारी की सुंदरता के बारे में पता चला तो उसने कुमारी के समक्ष शादी का प्रस्ताव रखा। कुमारी ने कहा कि यदि वह उसे युद्ध में हरा देगा तो वह उससे विवाह कर लेगी। दोनों के बीच युद्ध हुआ और बानासुरन को मृत्यु की प्राप्ति हुई। कुमारी की याद में ही दक्षिण भारत के इस स्थान को कन्याकुमारी कहा जाता है। माना जाता है कि शिव और कुमारी के विवाह की तैयारी का सामान आगे चलकर रंग बिरंगी रेत में परिवर्तित हो गया।दर्शनीय स्थलसंपादित करेंकन्याकुमारी अम्मन मंदिरसंपादित करेंसागर के मुहाने के दाई ओर स्थित यह एक छोटा सा मंदिर है जो पार्वती को समर्पित है। मंदिर तीनों समुद्रों के संगम स्थल पर बना हुआ है। यहां सागर की लहरों की आवाज स्वर्ग के संगीत की भांति सुनाई देती है। भक्तगण मंदिर में प्रवेश करने से पहले त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाते हैं जो मंदिर के बाई ओर 500 मीटर की दूरी पर है। मंदिर का पूर्वी प्रवेश द्वार को हमेशा बंद करके रखा जाता है क्योंकि मंदिर में स्थापित देवी के आभूषण की रोशनी से समुद्री जहाज इसे लाइटहाउस समझने की भूल कर बैठते है और जहाज को किनारे करने के चक्‍कर में दुर्घटनाग्रस्‍त हो जाते है।गांधी स्मारकसंपादित करेंगाँधी मंडपयह स्मारक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को समर्पित है। यही पर महात्मा गांधी की चिता की राख रखी हुई है। इस स्मारक की स्थापना 1956 में हुई थी। महात्मा गांधी 1937 में यहां आए थे। उनकी मृत्‍यु के बाद 1948 में कन्याकुमारी में ही उनकी अस्थियां विसर्जित की गई थी। स्मारक को इस प्रकार डिजाइन किया गया है कि महात्मा गांधी के जन्म दिवस पर सूर्य की प्रथम किरणें उस स्थान पर पड़ती हैं जहां महात्मा की राख रखी हुई है।तिरूवल्लुवर मूर्तिसंपादित करें133 फीट ऊंचा संत तिरुवल्लुवर मूर्तितिरुक्कुरुल की रचना करने वाले अमर तमिल कवि तिरूवल्लुवर की यह प्रतिमा पर्यटकों को बहुत लुभाती है। 38 फीट ऊंचे आधार पर बनी यह प्रतिमा 95 फीट की है। इस प्रतिमा की कुल उंचाई 133 फीट है और इसका वजन 2000 टन है। इस प्रतिमा को बनाने में कुल 1283 पत्थर के टुकड़ों का उपयोग किया गया था।विवेकानंद रॉक मेमोरियलसंपादित करेंसमुद्र में बने इस स्थान पर बड़ी संख्या में पर्यटक आते है। इस पवित्र स्थान को विवेकानंद रॉक मेमोरियल कमेटी ने 1970 में स्वामी विवेकानंद के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए बनवाया था। इसी स्थान पर स्वामी विवेकानंद गहन ध्यान लगाया था। इस स्थान को श्रीपद पराई के नाम से भी जाना जाता है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार इस स्थान पर कन्याकुमारी ने भी तपस्या की थी। कहा जाता है कि यहां कुमारी देवी के पैरों के निशान मुद्रित हैं। यह स्मारक विश्व प्रसिद्ध है।सुचीन्द्रमसंपादित करेंमुख्य लेख: सुचीन्द्रमयह छोटा-सा गांव कन्याकुमारी से लगभग 12 किमी दूर स्थित है। यहां का थानुमलायन मंदिर काफी प्रसिद्ध है। मंदिर में स्‍थापित हनुमान की छह मीटर की उंची मूर्ति काफी आकर्षक है। मंदिर के मुख्य गर्भगृह में ब्रह्मा, विष्‍णु और महेश जोकि इस ब्रह्मांड के रचयिता समझे जाते है उनकी मूर्ति स्‍थापित है। यहां नौवीं शताब्दी के प्राचीन अभिलेख भी पाए गए हैं। सुचीन्द्रम शक्तिपीठ हिन्दूओं के लिए प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर भारत के तमिलनाडु राज्य, कन्याकुमारी में स्थित है। माना जाता है कि सुचिंद्रम में ‘सुची’ शब्द संस्कृत से लिया गया है जिसका अर्थ है ‘शुद्ध’ होना। सुचीन्द्रम शक्ति पीठ को ठाँउमालयन या स्तानुमालय मंदिर भी कहा जाता है।यह मंदिर सात मंजिला है जिसका सफेद गोपुरम काफी दूर से दिखाई देता है। इस मंदिर का निर्माण 17वीं शताब्दी में किया गया था। सुचीन्द्रम शक्तिपीठ, मंदिर में बनी हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर का प्रवेश द्वार लगभग 24 फीट उंचा है जिसके दरवाजे पर सुंदर नक्काशी की गई है। यह मंदिर बड़ी संख्या में वैष्णव और सैवियों दोनों को आकर्षित करता है। मंदिर परिसर में विभिन्न देवी-देवताओं के लिए लगभग 30 मंदिर है जिसमें पवित्र स्थान में बड़ा लिंगम, आसन्न मंदिर में विष्णु की मूर्ति और उत्तरी गलियारे के पूर्वी छोर पर हनुमान की एक बड़ी मूर्ति है। यह मंदिर हिंदू धर्म के लगभग सभी देवी-देवताओं का प्रतिनिधित्व करता है।मंदिर के मुख्य देवता भगवान शिव, भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा को एक ही रूप में स्तरनुमल्याम कहा जाता है। स्तरनुमल्याम तीन देवताओं को दर्शाता है जिसमें ‘स्तानु’ का अर्थ ‘शिव’ है, ‘माल’ का अर्थ ‘विष्णु’ है और ‘आयन’ का अर्थ ‘ब्रह्मा’ है। भारत के उन मंदिरों में से एक है जिसमें त्रीमूर्ति व तीनों देवताओं की पूजा एक मंदिर में की जाती है। यह मंदिर माता के 51 शक्तिपीठों में से एक है। इस मंदिर में शक्ति को नारायणी के रूप पूजा जाता है और भैरव को संहार भैरव के रूप में पूजा जाता है। पुराणों के अनुसार जहाँ-जहाँ सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाते हैं। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हुए हैं।पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती ने उनके पिता दक्षेस्वर द्वारा किये यज्ञ कुण्ड में अपने प्राण त्याग दिये थे, तब भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण चक्कर लगा रहे थे इसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था, जिसमें से सती की ऊपर के दांत इस स्थान पर गिरे थे। पौराणिक कथा के अनुसार देवों के राजा इन्द्र को महर्षि गौतम द्वारा दिये गए अभिशाप से इस स्थान पर मुक्ति मिली थी।सुचीन्द्रम शक्तिपीठ में सभी त्यौहार मनाये जाते है विशेष कर शिवरात्रि, दुर्गा पूजा और नवरात्र के त्यौहार पर विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। लेकिन दो प्रमुख त्यौहार है, जो इस मंदिर का प्रमुख आकर्षण का केन्द्र हैं, ‘सुचंद्रम मर्गली त्यौहार’ और ‘रथ यात्रा’ हैं। इन त्यौहारों के दौरान, कुछ लोग भगवान की पूजा के प्रति सम्मान और समर्पण के रूप में व्रत (भोजन नहीं खाते) रखते हैं। त्यौहार के दिनों में मंदिर को फूलो व लाईट से सजाया जाता है। मंदिर का आध्यात्मिक वातावरण श्रद्धालुओं के दिल और दिमाग को शांति प्रदान करता है।कन्याकुमारी में घूमने की जगह: विवेकानन्द शिला , विवेकानन्द की मूर्ति एवं विवेकानन्द मठनागराज मंदिरसंपादित करेंकन्याकुमारी से 20 किमी दूर नगरकोल का नागराज मंदिर नाग देव को समर्पित है। यहां भगवान विष्णु और शिव के दो अन्य मंदिर भी हैं। मंदिर का मुख्य द्वार चीन की बुद्ध विहार की कारीगरी की याद दिलाता है।पद्मनाभपुरम महलसंपादित करेंमुख्य लेख: पद्मनाभपुरमपद्मनाभपुरम महल की विशाल हवेलियां त्रावनकोर के राजा द्वारा बनवाया हैं। ये हवेलियां अपनी सुंदरता और भव्यता के लिए जानी जाती हैं। कन्याकुमारी से इनकी दूरी 45 किमी है। यह महल केरल सरकार के पुरातत्व विभाग के अधीन हैं।कोरटालम झरनासंपादित करेंयह झरना 167 मीटर ऊंची है। इस झरने के जल को औषधीय गुणों से युक्त माना जाता है। यह कन्याकुमारी से 137 किमी दूरी पर स्थित है।तिरूचेन्दूरसंपादित करें85 किमी दूर स्थित तिरूचेन्दूर के खूबसूरत मंदिर भगवान सुब्रमण्यम को समर्पित हैं। बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित इस मंदिर को भगवान सुब्रमण्यम के 6 निवासों में से एक माना जाता है।उदयगिरी किलासंपादित करेंकन्याकुमारी से 34 किमी दूर यह किला राजा मरतड वर्मा द्वारा 1729-1758 ई. दौरान बनवाया गया था। इसी किले में राजा के विश्वसनीय यूरोपियन दोस्त जनरल डी लिनोय की समाधि भी है।चित्रदीर्घासंपादित करेंसूर्योदय में विवेकानंद स्मारक और वल्लुवर मूर्ति फ्रान्सिस ज़ेवियर गिरजा सूर्योदय में विवेकानंद स्मारक शिला वट्टकोट्टई फोर्ट से पश्चिमी घाट का दृश्य रात्रि में 133 फुट ऊँची तिरुवल्लुवर मूर्ति पद्मनाभपुरम महल चितराल जैन स्थापत्य मातूर जलवाही (एक्वेडक्ट) तीरपरप्पु जलप्रपात तेंगीपट्टिनम नदीमुख नागराज मंदिर, नागरकोविल उदयगिरि दुर्ग से पहाड़ियों का दृश्य सुचींद्रम मंदिर, नागरकोविल के समीप मुट्टोम गाँव कीरीपरई के वन में जलधारा पेचीपरई बाँध, पृष्ठभूमि में पश्चिमी घाट तीरपरप्पु मंदिर, तीरपरप्पु जलप्रपात के समीप तिरुवट्टार का आदि केशव मंदिर - भीतरी मंदिर 2000 वर्ष से अधिक पुरातन है मुट्टोम तट के पास दृश्य चितराल के पहाड़ी-मंदिर पर कला व तक्षित-शिला पेचीपरई में रबड़ कृषि कन्याकुमारी के समीप मारुतिवाड़ मलई - मान्यता है कि सीता की सहायता करने लंका को जाते हुए हनुमान ने यहाँ पहाड़ धर दिया था कन्याकुमारी के समीप ग्राम-दृश्य वट्टकोट्टई दुर्ग से सागर-दृश्य तीर्थयात्रि कन्याकुमारी में त्रिसागर-मिलन पर स्नान करते हुए नागरकोविल-तिरुवनंतपुरम राजमार्ग के रास्ते में कमल-ताल वट्टकोट्टई दुर्ग के पास काले रेत का बालूतट (बीच) कीरीपरई के समीप वट्टपरई मुट्टोम प्रकाशस्तम्भ (लाइटहाउस), सौ वर्षों से भी पुराना रात्रि में गाँधी मंडपम, कन्याकुमारी कन्याकुमारी के पास कोवलम गाँव तिरुपरप्पु जलप्रपात मुट्टोम तट उदयगिरि दुर्ग में कप्तान दे लान्नोय की कब्र सुनामी स्मारकBy समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब:🥦🌹🙏🙏🌹🥦आवागमनसंपादित करेंवायुमार्ग-नजदीकी एयरपोर्ट तिरूअनंतपुरम है जो कन्याकुमारी से 89 किलोमीटर दूर है। यहां से बस या टैक्सी के माध्यम से कन्याकुमारी पहुंचा जा सकता है। यहां से लक्जरी कार भी किराए पर उपलब्ध हैं।रेलमार्ग-कन्याकुमारी चैन्नई सहित भारत के प्रमुख शहरों से रेल मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। चैन्नई से कन्याकुमारी एक्सप्रेस द्वारा यहां जाया जा सकता है।सड़क मार्ग-बस द्वारा कन्याकुमारी जाने के लिए त्रिची, मदुरै, चैन्नई, तिरूअनंतपुरम और तिरूचेन्दूर से नियमित बस सेवाएं हैं। तमिलनाड़ पर्यटन विभाग कन्याकुमारी के लिए सिंगल डे बस टूर की व्यवस्था भी करता है। राष्ट्रीय राजमार्ग 44 का दक्षिणी छोर यहाँ है और यह उत्तर दिशा में जम्मू और कश्मीर तक जाता है।भ्रमण समयसंपादित करेंसमुद्र के किनारे होने के कारण कन्याकुमारी में साल भर मनोरम वातावरण रहता है। यूं तो पूरा साल कन्याकुमारी जाने लायक होता है लेकिन फिर भी पर्यटन के लिहाज से अक्टूबर से मार्च की अवधि सबसे बेहतर मानी जाती है।खरीददारीसंपादित करेंपर्यटक अक्सर यहां से विभिन्न रंगों के रेत के पैकेट खरीदतें हैं। यहां से सीप और शंख के अलावा प्रवाली शैलभित्ती के टुकड़ों की खरीददारी की जा सकती है। साथ ही केरल शैली की नारियल जटाएं और लकड़ी की हैंडीक्राफ्ट भी खरीदी जा सकती हैं।इन्हें भी देखेंसंपादित करेंकन्याकुमारी ज़िलासन्दर्भसंपादित करें↑ "Lonely Planet South India & Kerala," Isabella Noble et al, Lonely Planet, 2017, ↑ "Tamil Nadu, Human Development Report," Tamil Nadu Government, Berghahn Books, 2003, ISBN Last edited 4 months ago By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब:🥦🌹🙏🙏🌹🥦RELATED PAGESकन्याकुमारी जिलातमिलनाडु का जिलानैना देवी मंदिर, हिमाचल प्रदेश By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब:🥦🌹🙏🙏🌹🥦मरुंगूरसामग्री CC BY-SA 3.0 के अधीन है जब तक अलग से उल्लेख ना किया गया हो।गोपनीयता नीति उपयोग की शर्तेंडेस्कटॉप

कन्याकुमारी

कन्याकुमारी भारत के दक्षिणी छोर पर तमिलनाडु राज्य का एक तटीय शहर है

कन्याकुमारी (Kanyakumari) भारत के तमिल नाडु राज्य के कन्याकुमारी ज़िले में स्थित एक नगर है। यह भारत की मुख्यभूमि का दक्षिणतम नगर है। यहाँ से दक्षिण में हिन्द महासागर, पूर्व में बंगाल की खाड़ी और पश्चिम में अरब सागर है। इनके साथ सटा हुआ तट 71.5 किमी तक विस्तारित है। समुद्र के साथ तिरुवल्लुवर मूर्ति और विवेकानन्द स्मारक शिला खड़े हैं। कन्याकुमारी एक महत्वपूर्ण हिन्दू तीर्थस्थल भी है।[1][2]

कन्याकुमारी
Kanyakumari
கன்னியாகுமரி
विवेकानंद स्मारक, कन्याकुमारी
विवेकानंद स्मारक, कन्याकुमारी
कन्याकुमारी की तमिलनाडु के मानचित्र पर अवस्थिति
कन्याकुमारी
कन्याकुमारी
तमिल नाडु में स्थिति
निर्देशांक: 8°05′02″N 77°32′46″E / 8.084°N 77.546°E
देश भारत
प्रान्ततमिल नाडु
ज़िलाकन्याकुमारी ज़िला
जनसंख्या (2011)
 • कुल29,761
भाषा
 • प्रचलिततमिल
समय मण्डलभारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30)
पिनकोड629 702
दूरभाष कोड91-4652 और 91-4651
वाहन पंजीकरणTN 74 और TN 75
वेबसाइटwww.kanyakumari.tn.nic.in


विवरणसंपादित करें

कन्याकुमारी हिन्द महासागर, बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर का संगम स्थल है, जहां भिन्न सागर अपने विभिन्न रंगो से मनोरम छटा बिखेरते हैं। भारत के सबसे दक्षिण छोर पर बसा कन्याकुमारी वर्षो से कला, संस्कृति, सभ्यता का प्रतीक रहा है। भारत के पर्यटक स्थल के रूप में भी इस स्थान का अपना ही महत्च है। दूर-दूर फैले समुद्र के विशाल लहरों के बीच यहां का सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा बेहद आकर्षक लगता हैं। समुद्र बीच पर फैले रंग बिरंगी रेत इसकी सुंदरता में चार चांद लगा देता है।

इतिहाससंपादित करें

कन्याकुमारी दक्षिण भारत के महान शासकों चोल, चेर, पांड्य के अधीन रहा है। यहां के स्मारकों पर इन शासकों की छाप स्पष्ट दिखाई देती है। इस जगह का नाम कन्‍याकुमारी पड़ने के पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने असुर बानासुरन को वरदान दिया था कि कुंवारी कन्या के अलावा किसी के हाथों उसका वध नहीं होगा। प्राचीन काल में भारत पर शासन करने वाले राजा भरत को आठ पुत्री और एक पुत्र था। भरत ने अपना साम्राज्य को नौ बराबर हिस्सों में बांटकर अपनी संतानों को दे दिया। दक्षिण का हिस्सा उसकी पुत्री कुमारी को मिला। कुमारी को शक्ति देवी का अवतार माना जाता था। कुमारी ने दक्षिण भारत के इस हिस्से पर कुशलतापूर्वक शासन किया। उसकी ईच्‍छा थी कि वह शिव से विवाह करें। इसके लिए वह उनकी पूजा करती थी। शिव विवाह के लिए राजी भी हो गए थे और विवाह की तैयारियां होने लगीं थी। लेकिन नारद मुनि चाहते थे कि बानासुरन का कुमारी के हाथों वध हो जाए। इस कारण शिव और देवी कुमारी का विवाह नहीं हो पाया। इस बीच बानासुरन को जब कुमारी की सुंदरता के बारे में पता चला तो उसने कुमारी के समक्ष शादी का प्रस्ताव रखा। कुमारी ने कहा कि यदि वह उसे युद्ध में हरा देगा तो वह उससे विवाह कर लेगी। दोनों के बीच युद्ध हुआ और बानासुरन को मृत्यु की प्राप्ति हुई। कुमारी की याद में ही दक्षिण भारत के इस स्थान को कन्याकुमारी कहा जाता है। माना जाता है कि शिव और कुमारी के विवाह की तैयारी का सामान आगे चलकर रंग बिरंगी रेत में परिवर्तित हो गया।

दर्शनीय स्थलसंपादित करें

कन्याकुमारी अम्मन मंदिरसंपादित करें

सागर के मुहाने के दाई ओर स्थित यह एक छोटा सा मंदिर है जो पार्वती को समर्पित है। मंदिर तीनों समुद्रों के संगम स्थल पर बना हुआ है। यहां सागर की लहरों की आवाज स्वर्ग के संगीत की भांति सुनाई देती है। भक्तगण मंदिर में प्रवेश करने से पहले त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाते हैं जो मंदिर के बाई ओर 500 मीटर की दूरी पर है। मंदिर का पूर्वी प्रवेश द्वार को हमेशा बंद करके रखा जाता है क्योंकि मंदिर में स्थापित देवी के आभूषण की रोशनी से समुद्री जहाज इसे लाइटहाउस समझने की भूल कर बैठते है और जहाज को किनारे करने के चक्‍कर में दुर्घटनाग्रस्‍त हो जाते है।

गांधी स्मारकसंपादित करें

गाँधी मंडप

यह स्मारक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को समर्पित है। यही पर महात्मा गांधी की चिता की राख रखी हुई है। इस स्मारक की स्थापना 1956 में हुई थी। महात्मा गांधी 1937 में यहां आए थे। उनकी मृत्‍यु के बाद 1948 में कन्याकुमारी में ही उनकी अस्थियां विसर्जित की गई थी। स्मारक को इस प्रकार डिजाइन किया गया है कि महात्मा गांधी के जन्म दिवस पर सूर्य की प्रथम किरणें उस स्थान पर पड़ती हैं जहां महात्मा की राख रखी हुई है।

तिरूवल्लुवर मूर्तिसंपादित करें

133 फीट ऊंचा संत तिरुवल्लुवर मूर्ति

तिरुक्कुरुल की रचना करने वाले अमर तमिल कवि तिरूवल्लुवर की यह प्रतिमा पर्यटकों को बहुत लुभाती है। 38 फीट ऊंचे आधार पर बनी यह प्रतिमा 95 फीट की है। इस प्रतिमा की कुल उंचाई 133 फीट है और इसका वजन 2000 टन है। इस प्रतिमा को बनाने में कुल 1283 पत्थर के टुकड़ों का उपयोग किया गया था।

विवेकानंद रॉक मेमोरियलसंपादित करें

समुद्र में बने इस स्थान पर बड़ी संख्या में पर्यटक आते है। इस पवित्र स्थान को विवेकानंद रॉक मेमोरियल कमेटी ने 1970 में स्वामी विवेकानंद के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए बनवाया था। इसी स्थान पर स्वामी विवेकानंद गहन ध्यान लगाया था। इस स्थान को श्रीपद पराई के नाम से भी जाना जाता है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार इस स्थान पर कन्याकुमारी ने भी तपस्या की थी। कहा जाता है कि यहां कुमारी देवी के पैरों के निशान मुद्रित हैं। यह स्मारक विश्व प्रसिद्ध है।

सुचीन्द्रमसंपादित करें

यह छोटा-सा गांव कन्याकुमारी से लगभग 12 किमी दूर स्थित है। यहां का थानुमलायन मंदिर काफी प्रसिद्ध है। मंदिर में स्‍थापित हनुमान की छह मीटर की उंची मूर्ति काफी आकर्षक है। मंदिर के मुख्य गर्भगृह में ब्रह्मा, विष्‍णु और महेश जोकि इस ब्रह्मांड के रचयिता समझे जाते है उनकी मूर्ति स्‍थापित है। यहां नौवीं शताब्दी के प्राचीन अभिलेख भी पाए गए हैं। सुचीन्द्रम शक्तिपीठ हिन्दूओं के लिए प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर भारत के तमिलनाडु राज्य, कन्याकुमारी में स्थित है। माना जाता है कि सुचिंद्रम में ‘सुची’ शब्द संस्कृत से लिया गया है जिसका अर्थ है ‘शुद्ध’ होना। सुचीन्द्रम शक्ति पीठ को ठाँउमालयन या स्तानुमालय मंदिर भी कहा जाता है।

यह मंदिर सात मंजिला है जिसका सफेद गोपुरम काफी दूर से दिखाई देता है। इस मंदिर का निर्माण 17वीं शताब्दी में किया गया था। सुचीन्द्रम शक्तिपीठ, मंदिर में बनी हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर का प्रवेश द्वार लगभग 24 फीट उंचा है जिसके दरवाजे पर सुंदर नक्काशी की गई है। यह मंदिर बड़ी संख्या में वैष्णव और सैवियों दोनों को आकर्षित करता है। मंदिर परिसर में विभिन्न देवी-देवताओं के लिए लगभग 30 मंदिर है जिसमें पवित्र स्थान में बड़ा लिंगम, आसन्न मंदिर में विष्णु की मूर्ति और उत्तरी गलियारे के पूर्वी छोर पर हनुमान की एक बड़ी मूर्ति है। यह मंदिर हिंदू धर्म के लगभग सभी देवी-देवताओं का प्रतिनिधित्व करता है।

मंदिर के मुख्य देवता भगवान शिव, भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा को एक ही रूप में स्तरनुमल्याम कहा जाता है। स्तरनुमल्याम तीन देवताओं को दर्शाता है जिसमें ‘स्तानु’ का अर्थ ‘शिव’ है, ‘माल’ का अर्थ ‘विष्णु’ है और ‘आयन’ का अर्थ ‘ब्रह्मा’ है। भारत के उन मंदिरों में से एक है जिसमें त्रीमूर्ति व तीनों देवताओं की पूजा एक मंदिर में की जाती है। यह मंदिर माता के 51 शक्तिपीठों में से एक है। इस मंदिर में शक्ति को नारायणी के रूप पूजा जाता है और भैरव को संहार भैरव के रूप में पूजा जाता है। पुराणों के अनुसार जहाँ-जहाँ सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाते हैं। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हुए हैं।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती ने उनके पिता दक्षेस्वर द्वारा किये यज्ञ कुण्ड में अपने प्राण त्याग दिये थे, तब भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण चक्कर लगा रहे थे इसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था, जिसमें से सती की ऊपर के दांत इस स्थान पर गिरे थे। पौराणिक कथा के अनुसार देवों के राजा इन्द्र को महर्षि गौतम द्वारा दिये गए अभिशाप से इस स्थान पर मुक्ति मिली थी।

सुचीन्द्रम शक्तिपीठ में सभी त्यौहार मनाये जाते है विशेष कर शिवरात्रि, दुर्गा पूजा और नवरात्र के त्यौहार पर विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। लेकिन दो प्रमुख त्यौहार है, जो इस मंदिर का प्रमुख आकर्षण का केन्द्र हैं, ‘सुचंद्रम मर्गली त्यौहार’ और ‘रथ यात्रा’ हैं। इन त्यौहारों के दौरान, कुछ लोग भगवान की पूजा के प्रति सम्मान और समर्पण के रूप में व्रत (भोजन नहीं खाते) रखते हैं। त्यौहार के दिनों में मंदिर को फूलो व लाईट से सजाया जाता है। मंदिर का आध्यात्मिक वातावरण श्रद्धालुओं के दिल और दिमाग को शांति प्रदान करता है।

कन्याकुमारी में घूमने की जगह: विवेकानन्द शिला , विवेकानन्द की मूर्ति एवं विवेकानन्द मठ

नागराज मंदिरसंपादित करें

कन्याकुमारी से 20 किमी दूर नगरकोल का नागराज मंदिर नाग देव को समर्पित है। यहां भगवान विष्णु और शिव के दो अन्य मंदिर भी हैं। मंदिर का मुख्य द्वार चीन की बुद्ध विहार की कारीगरी की याद दिलाता है।

पद्मनाभपुरम महलसंपादित करें

पद्मनाभपुरम महल की विशाल हवेलियां त्रावनकोर के राजा द्वारा बनवाया हैं। ये हवेलियां अपनी सुंदरता और भव्यता के लिए जानी जाती हैं। कन्याकुमारी से इनकी दूरी 45 किमी है। यह महल केरल सरकार के पुरातत्व विभाग के अधीन हैं।

कोरटालम झरनासंपादित करें

यह झरना 167 मीटर ऊंची है। इस झरने के जल को औषधीय गुणों से युक्त माना जाता है। यह कन्याकुमारी से 137 किमी दूरी पर स्थित है।

तिरूचेन्दूरसंपादित करें

85 किमी दूर स्थित तिरूचेन्दूर के खूबसूरत मंदिर भगवान सुब्रमण्यम को समर्पित हैं। बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित इस मंदिर को भगवान सुब्रमण्यम के 6 निवासों में से एक माना जाता है।

उदयगिरी किलासंपादित करें

कन्याकुमारी से 34 किमी दूर यह किला राजा मरतड वर्मा द्वारा 1729-1758 ई. दौरान बनवाया गया था। इसी किले में राजा के विश्वसनीय यूरोपियन दोस्त जनरल डी लिनोय की समाधि भी है।

चित्रदीर्घासंपादित करें

आवागमनसंपादित करें

वायुमार्ग-

नजदीकी एयरपोर्ट तिरूअनंतपुरम है जो कन्याकुमारी से 89 किलोमीटर दूर है। यहां से बस या टैक्सी के माध्यम से कन्याकुमारी पहुंचा जा सकता है। यहां से लक्जरी कार भी किराए पर उपलब्ध हैं।

रेलमार्ग-

कन्याकुमारी चैन्नई सहित भारत के प्रमुख शहरों से रेल मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। चैन्नई से कन्याकुमारी एक्सप्रेस द्वारा यहां जाया जा सकता है।

सड़क मार्ग-

बस द्वारा कन्याकुमारी जाने के लिए त्रिची, मदुरै, चैन्नई, तिरूअनंतपुरम और तिरूचेन्दूर से नियमित बस सेवाएं हैं। तमिलनाड़ पर्यटन विभाग कन्याकुमारी के लिए सिंगल डे बस टूर की व्यवस्था भी करता है। राष्ट्रीय राजमार्ग 44 का दक्षिणी छोर यहाँ है और यह उत्तर दिशा में जम्मू और कश्मीर तक जाता है।

भ्रमण समयसंपादित करें

समुद्र के किनारे होने के कारण कन्याकुमारी में साल भर मनोरम वातावरण रहता है। यूं तो पूरा साल कन्याकुमारी जाने लायक होता है लेकिन फिर भी पर्यटन के लिहाज से अक्टूबर से मार्च की अवधि सबसे बेहतर मानी जाती है।

खरीददारीसंपादित करें

पर्यटक अक्सर यहां से विभिन्न रंगों के रेत के पैकेट खरीदतें हैं। यहां से सीप और शंख के अलावा प्रवाली शैलभित्ती के टुकड़ों की खरीददारी की जा सकती है। साथ ही केरल शैली की नारियल जटाएं और लकड़ी की हैंडीक्राफ्ट भी खरीदी जा सकती हैं।

इन्हें भी देखेंसंपादित करें

सन्दर्भसंपादित करें

  1.  "Lonely Planet South India & Kerala," Isabella Noble et al, Lonely Planet, 2017, 
  2.  "Tamil Nadu, Human Development Report," Tamil Nadu Government, Berghahn Books, 2003, ISBN 

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"ॐ ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद महालक्ष्मये नमः" का जाप करें. मां लक्ष्मी जीवन की तमाम समस्याओं का समाधान कर सकती हैं. बस उनते सच्चे मन से अपनी बात पहुंचानी होगी और जब धरती पर साक्षात आएं तो इससे पावन घड़ी और क्या हो सकती है. #शरद_पूर्णिमा #राजस्थान #हरियाणा #संगरिया वर्ष के बारह महीनों में ये पूर्णिमा ऐसी है, जो तन, मन और धन तीनों के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है। इस पूर्णिमा को चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है, तो धन की देवी महालक्ष्मी रात को ये देखने के लिए निकलती हैं कि कौन जाग रहा है और वह अपने कर्मनिष्ठ भक्तों को धन-धान्य से भरपूर करती हैं। शरद_ पूर्णिमा का एक नाम *कोजागरी पूर्णिमा* भी है यानी लक्ष्मी जी पूछती हैं- कौन जाग रहा है? अश्विनी महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा अश्विनी नक्षत्र में होता है इसलिए इस महीने का नाम अश्विनी पड़ा है। एक महीने में चंद्रमा जिन 27 नक्षत्रों में भ्रमण करता है, उनमें ये सबसे पहला है और #आश्विन_नक्षत्र की पूर्णिमा आरोग्य देती है। केवल शरद_पूर्णिमा को ही चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से संपूर्ण होता है और पृथ्वी के सबसे ज्यादा निकट भी। चंद्रमा की किरणों से इस पूर्णिमा को अमृत बरसता है। #बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम वर्ष भर इस #पूर्णिमा की प्रतीक्षा करते हैं। जीवनदायिनी रोगनाशक जड़ी-बूटियों को वह शरद पूर्णिमा की चांदनी में रखते हैं। अमृत से नहाई इन जड़ी-बूटियों से जब दवा बनायी जाती है तो वह रोगी के ऊपर तुंरत असर करती है। चंद्रमा को वेदं-पुराणों में मन के समान माना गया है- चंद्रमा_मनसो_जात:।वायु पुराण में चंद्रमा को जल का कारक बताया गया है। प्राचीन ग्रंथों में चंद्रमा को औषधीश यानी औषधियों का स्वामी कहा गया है। ब्रह्मपुराण के अनुसार- सोम या चंद्रमा से जो सुधामय तेज पृथ्वी पर गिरता है उसी से औषधियों की उत्पत्ति हुई और जब औषधी 16 कला संपूर्ण हो तो अनुमान लगाइए उस दिन औषधियों को कितना बल मिलेगा। #शरद_पूर्णिमा की शीतल चांदनी में रखी खीर खाने से शरीर के सभी रोग दूर होते हैं। ज्येष्ठ, आषाढ़, सावन और भाद्रपद मास में शरीर में पित्त का जो संचय हो जाता है, शरद पूर्णिमा की शीतल धवल चांदनी में रखी #खीर खाने से पित्त बाहर निकलता है। लेकिन इस #खीर को एक विशेष विधि से बनाया जाता है। पूरी रात चांद की चांदनी में रखने के बाद सुबह खाली पेट यह खीर खाने से सभी रोग दूर होते हैं, शरीर निरोगी होता है। #शरद_पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहते हैं। स्वयं सोलह कला संपूर्ण भगवान श्रीकृष्ण से भी जुड़ी है यह पूर्णिमा। इस रात को अपनी राधा रानी और अन्य सखियों के साथ श्रीकृष्ण महारास रचाते हैं। कहते हैं जब वृन्दावन में भगवान कृष्ण महारास रचा रहे थे तो चंद्रमा आसमान से सब देख रहा था और वह इतना भाव-विभोर हुआ कि उसने अपनी शीतलता के साथ पृथ्वी पर #अमृत_की_वर्षा आरंभ कर दी। गुजरात में #शरद_पूर्णिमा को लोग रास रचाते हैं और गरबा खेलते हैं। मणिपुर में भी श्रीकृष्ण भक्त रास रचाते हैं। पश्चिम बंगाल और ओडिशा में शरद पूर्णिमा की रात को महालक्ष्मी की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस पूर्णिमा को जो महालक्ष्मी का पूजन करते हैं और रात भर जागते हैं, उनकी सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। ओडिशा में #शरद_पूर्णिमा को #कुमार_पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है। आदिदेव महादेव और देवी पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म इसी पूर्णिमा को हुआ था। गौर वर्ण, आकर्षक, सुंदर कार्तिकेय की पूजा कुंवारी लड़कियां उनके जैसा पति पाने के लिए करती हैं। #शरद_पूर्णिमा ऐसे महीने में आती है, जब वर्षा ऋतु अंतिम समय पर होती है। शरद ऋतु अपने बाल्यकाल में होती है और हेमंत ऋतु आरंभ हो चुकी होती है और इसी पूर्णिमा से कार्तिक स्नान प्रारंभ हो जाता है। #घटता_बढ़ता_चांद यहाँ हर कोई #उस चांद सा है.. जो कभी बढ़ रहा है तो कभी घट रहा है.. वो कभी #पूर्णिमा की रात सा रोशनी बिखेर रहा है.. तो कभी #अमावस की रात में एक अंधेरे सा हो रहा है.. यहाँ हर किसी की यही फितरत है.. हम खुद भी इसका अपवाद नही है.. हम सब ऐसे ही बने हैं ऐसे ही बनाये गए हैं.. यकीं न हो तो पल भर को सोचिए की आखिर क्यूँ हर सुबह जब हम सोकर उठते हैं.. तो हम पिछली सुबह से अलग होते हैं.. #कभी_कमजोर.. तो कभी_ताकतवर महसूस करते हैं.. मसला बस इतना सा है, की #हम_हर_दिन दूसरों को बस पूर्णिमा का चांद सा देखना चाहते हैं.. इस सच से बेखबर की घटना/बढ़ना हम सभी की फितरत है.. इसमें कुछ भी नया नही है.. हम खुद भी अक्सर पूर्णिमा के चाँद से अमावस का चांद होने की राह पर होते हैं.. हम खुद भी कमजोर हो रहे होते हैं.. बस हम इसे देख नही पाते.. अपनी नासमझी में हम शायद कुदरत के इस सबसे बड़े कायदे को ही भूल बैठे हैं.. अगर इस तरह घटना बढ़ना ही हमारी फितरत है.. तो आखिर सुकून क्या है.. #अपने_अहंकार, #अपनी_ज़िद्द से कहीँ दूर किसी कोने में बैठकर.. खुद में और दूसरों में घटते बढ़ते इस चांद को देखना.. उसे महसूस करना.. इस कुदरत को समझना. उसके कायदों को समझना..#फिर_हल्के_से_मुस्कुराना.. बस यही सुकून है..🙏🙏 (ये पोस्ट वनिता कासनियां पंजाब किसी ने भेजा था l) ॐ। 9 अक्तूबर २०२२ रविवार #शरद #पूर्णिमा है , #अश्विन मास की शरद पूर्णिमा बेहद खास होती है क्योंकि साल में एक बार आने वाली ये पूर्णिमा शरद पूर्णिमा कहलाती है. इसे कुछ लोग #रास पूर्णिमा के नाम से भी जानते हैं. क्योंकि #श्रीकृष्ण ने महारास किया था। कहा जाता है कि इस रात में #खीर को खुले आसमान में चंद्रमा के प्रकाश में रखा जाता है और उसे प्रसाद के रूप में खाया जाता है. बता दें इस बार शरद पूर्णिमा 5 अक्टूबर गुरुवार आज है. सनातन परंपरा के अनुसार कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि पर चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है. मान्यता है की शरद पूर्णिमा की रात चन्द्रमा 16 कलाओं से संपन्न होकर अमृत वर्षा करता है. जो स्वास्थ्य के लिए गुणकारी होती है. इस रात लोग मान्यता के अनुसार खुले में खीर बनाकर रखते हैं और सुबह उसे सब के बीच में बांटा जाता है. यही कारण है कि इस रात लोग अपनी छतों पर या चंद्रमा के आगे खीर बनाकर रखते हैं और प्रसाद के रूप में खीर को बांटा जाता है। बड़ी ही उत्तम तिथि है शरद पूर्णिमा. इसे #कोजागरी व्रत के रूप में भी मनाया जाता है. कहते हैं ये दिन इतना शुभ और सकारात्मक होता है कि छोटे से उपाय से बड़ी-बड़ी विपत्तियां टल जाती हैं. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इसी दिन मां #लक्ष्मी का जन्म हुआ था. इसलिए धन प्राप्ति के लिए भी ये तिथि सबसे उत्तम मानी जाती है. इस दिन प्रेमावतार भगवान श्रीकृष्ण, धन की देवी मां लक्ष्मी और सोलह कलाओं वाले चंद्रमा की उपासना से अलग-अलग वरदान प्राप्त किए जाते है शरद पूर्णिमा का महत्व - शरद पूर्णिमा काफी महत्वपूर्ण तिथि है, इसी तिथि से शरद ऋतु का आरम्भ होता है. - इस दिन चन्द्रमा संपूर्ण और #सोलह कलाओं से युक्त होता है. - इस दिन चन्द्रमा से #अमृत की वर्षा होती है जो धन, प्रेम और सेहत तीनों देती है. - #प्रेम और #कलाओं से परिपूर्ण होने के कारण श्री कृष्ण ने इसी दिन महारास रचाया था. - इस दिन विशेष प्रयोग करके बेहतरीन #सेहत, अपार #प्रेम और खूब सारा #धन पाया जा सकता है - पर #प्रयोगों के लिए कुछ सावधानियों और नियमों के पालन की आवश्यकता है. इस बार शरद पूर्णिमा 05 अक्टूबर को होगी शरद पूर्णिमा पर यदि आप कोई महाप्रयोग कर रहे हैं तो पहले इस तिथि के नियमों और सावधानियों के बारे में जान लेना जरूरी है. शरद पूर्णिमा #व्रत विधि - पूर्णिमा के दिन सुबह में #इष्ट #देव का पूजन करना चाहिए. - #इन्द्र और #महालक्ष्मी जी का पूजन करके घी के दीपक जलाकर उसकी गन्ध पुष्प आदि से पूजा करनी चाहिए. - #गरीब बे #सहारा को खीर का भोजन कराना चाहिए और उन्हें दान दक्षिणा प्रदान करनी चाहिए. - लक्ष्मी प्राप्ति के लिए इस व्रत को विशेष रुप से किया जाता है. इस दिन जागरण करने वालों की धन-संपत्ति में वृद्धि होती है. - रात को चन्द्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही भोजन करना चाहिए. - #गरीबों में खीर आदि #दान करने का विधि-विधान है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन चांद की चांदनी से अमृत बरसता है. शरद पूर्णिमा की सावधानियां - इस दिन पूर्ण रूप से जल और फल ग्रहण करके उपवास रखने का प्रयास करें. - उपवास ना भी रखें तो भी इस दिन सात्विक आहार ही ग्रहण करना चाहिए. - इस दिन काले रंग का प्रयोग न करें, चमकदार सफेद रंग के वस्त्र धारण करें तो ज्यादा अच्छा होगा. अगर आप शरद पूर्णिमा का पूर्ण शुभ फल पाना चाहते हैं तो ऊपर दिए गए इन नियमों को ध्यान में जरूर रखिएगा। #शरद_पूर्णिमा के दिन इस #व्रत_कथा को पढ़ने और सुनने से #मां_लक्ष्मी होती हैं प्रसन्न। #शरद_पूर्णिमा ९ अक्टूबर को है. शरद पूर्णिमा आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा को कौमुदी यानी मूनलाइट में खीर को रखा जाता है. क्योंकि चंद्रमा की किरणों से अमृत की बारिश होती है. इस दिन शाम को मां लक्ष्मी का विधि-विधान से पूजन किया जाता है. मान्यता है कि सच्चे मन ने पूजा- अराधना करने वाले भक्तों पर मां लक्ष्मी कृपा बरसाती हैं. #शरद_पूर्णिमा_की_पौराणिक_कथा #शरद_पूर्णिमा की पौराणिक कथा के अनुसार, बहुत पुराने समय की बात है एक नगर में एक सेठ (साहूकार) को दो बेटियां थीं. दोनो पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थीं. लेकिन बड़ी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधूरा व्रत करती थी. इसका परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी. उसने पंडितों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी, जिसके कारण तुम्हारी संतान पैदा होते ही मर जाती है. पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक करने से तुम्हारी संतान जीवित रह सकती है. उसने हिंदू धर्म की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया. बाद में उसे एक लड़का पैदा हुआ. जो कुछ दिनों बाद ही फिर से मर गया. उसने लड़के को एक पाटे (पीढ़ा) पर लेटा कर ऊपर से कपड़ा ढंक दिया. फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पाटा दे दिया. बड़ी बहन जब उस पर बैठने लगी जो उसका घाघरा बच्चे को छू गया. बच्चा घाघरा छूते ही रोने लगा. तब बड़ी बहन ने कहा कि तुम मुझे कलंक लगाना चाहती थी. मेरे बैठने से यह मर जाता. तब छोटी बहन बोली कि यह तो पहले से मरा हुआ था. तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है. तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है. उसके बाद नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया. . #शरद_पूर्णिमा का वैज्ञानिक महत्व रोगियों के लिए वरदान हैं शरद पूर्णिमा की रात एक अध्ययन के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन औषधियों की स्पंदन क्षमता अधिक होती है। रसाकर्षण के कारण जब अंदर का पदार्थ सांद्र होने लगता है, तब रिक्तिकाओं से विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है। लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था। इस प्रक्रिया से उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी। चांदनी रात में 10 से मध्यरात्रि 12 बजे के बीच कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है। सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है। अध्ययन के अनुसार दुग्ध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है। शोध के अनुसार खीर को चांदी के पात्र में बनाना चाहिए। चांदी में प्रतिरोधकता अधिक होती है। इससे विषाणु दूर रहते हैं। हल्दी का उपयोग निषिद्ध है। प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम 30 मिनट तक शरद पूर्णिमा का स्नान करना चाहिए। रात्रि 10 से 12 बजे तक का समय उपयुक्त रहता है। वर्ष में एक बार शरद पूर्णिमा की रात दमा रोगियों के लिए वरदान बनकर आती है। इस रात्रि में दिव्य औषधि को खीर में मिलाकर उसे चांदनी रात में रखकर प्रात: 4 बजे सेवन किया जाता है। रोगी को रात्रि जागरण करना पड़ता है और औ‍षधि सेवन के पश्चात 2-3 किमी पैदल चलना लाभदायक रहता है।

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लोहड़ी 2021: आज देशभर में मनाई जा रही लोहड़ी, जानिए क्या है इस त्यौहार का महत्व ये त्योहार सुबह से शुरू होकर शाम तक चलता है. लोग पूजा के दौरान आग में मूंगफली रेवड़ी, पॉपकॉर्न और गुड़ चढ़ाते हैं. आग में ये चीजें चढ़ाते समय 'आधार आए दिलाथेर जाए' बोला जाता है. इसका मतलब होता है कि घर में सम्मान आए और गरीबी जाए. किसान सूर्य देवता को भी नमन कर धन्यवाद देते हैं. ये भी माना जाता है कि किसान खेतों में आग जलाकर अग्नि देव से खेतों की उत्पादन क्षमता बढ़ाने की प्रार्थना करते हैं.इसके बाद मूंगफली रेवड़ी, पॉपकॉर्न और गुड़ प्रसाद के रूप में बांटा जाता हैं. लोहड़ी के दिन पकवान के तौर पर मीठे गुड के तिल के चावल, सरसों का साग, मक्के की रोटी बनाई जाती है. लोग इस दिन गुड़-गज्जक खाना शुभ मानते हैं. पूजा के बाद लोग भांगड़ा और गिद्दा करते हैं.लोहड़ी का महत्वलोहड़ी का भारत में बहुत महत्व है. लोहड़ी एक ऐसे पर्व के रूप में मनाई जाती है जो सर्दियों के जाने और बसंत के आने का संकेत है. लोहड़ी यूं तो आग लगाकर सेलिब्रेट की जाती है लेकिन लकड़ियों के अलावा उपलों से भी आग लगाना शुभ माना जाता है.लोहड़ी के पावन मौके पर लोग रबी की फसल यानि गेहूं, जौ, चना, मसूर और सरसों की फसलों को आग को समर्पित करते हैं. इस तरीके से देवताओं को चढ़ावा और धन्यवाद दिया जाता है. ये वही समय होता है जब रबी की फसलें कटघर घर आने लगती हैं. आमतौर लोहड़ी का त्योहार सूर्य देव और अग्नि को आभार प्रकट करने, फसल की उन्नति की कामना करने के लिए मनाया जाता है.लोहड़ी का महत्व एक और वजह से हैं क्योंकि इस दिन सूर्य मकर राशि से गुजर कर उत्तर की ओर रूख करता है. ज्योतिष के मुताबिक, लोहड़ी के बाद से सूर्य उत्तारायण बनाता है जिसे जीवन और सेहत से जोड़कर देखा जाता है.आखिर क्यों मनाते हैं लोहड़ीआपने लोहड़ी तो खूब मनाई होगी लेकिन क्या असल में आप जानते हैं क्यों मनाई जाती है लोहड़ी. बहुत से लोग लोहड़ी को साल का सबसे छोटा दिन और रात सबसे लंबी के तौर पर मनाते हैं. पारंपरिक मान्यता के अनुसार, लोहड़ी फसल की कटाई और बुआई के तौर पर मनाई जाती है. लोहड़ी को लेकर एक मान्यता ये भी है कि इस दिन लोहड़ी का जन्म होलिका की बहन के रूप में हुआ था. बेशक होलिका का दहन हो गया था. किसान लोहड़ी के दिन को नए साल की आर्थिक शुरुआत के रूप में भी मनाते हैं.,